यह अटल बिहारी वाजपेयी की वाकपटुता थी कि कठिन प्रसंगों को भी बड़ी सहजता से हल कर देते थे. ऐसे अनेक प्रसंग उनके राजनीतिक और पत्रकारीय जीवन से जुड़े रहे, जिन्हें आज भी सम्मान की दृष्टि से सुना-सुनाया जाता है. इसमें भाषा का चमत्कार और शब्दों की व्यंजना खूब उभरती थी. बात 1957 की है. अटल जी पहली बार निर्वाचित हो कर संसद पहुंचे. तब जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री हुआ करते थे. अटल को संसद में बोलने का बहुत कम वक्त मिलता था, पर अपनी अच्छी हिंदी और वक्ततृत्व कला से उन्होंने अपनी पहचान बना ली थी. एक बार नेहरू जी ने जनसंघ की आलोचना की, तो अटल ने कहा, मैं जानता हूं कि पंडित जी रोज शीर्षासन करते हैं. वह शीर्षासन करें, पर मेरी पार्टी की तस्वीर उल्टी न देखें. इस बात पर नेहरू भी ठहाका मार कर हंस पड़े.
पद और यात्रा
अस्सी के दशक में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं, अटल जी उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार की घटना को लेकर पदयात्रा पर थे. वाजपेयी जी के मित्र अप्पा घटाटे ने उनसे पूछा, आपकी यह पदयात्रा कब तक चलेगी? जवाब मिला, जब तक ‘पद‘ नहीं मिलता, ‘यात्रा’ चलती रहेगी.
मूर्तियां पत्थर की क्यों होती हैं
सत्तर के दशक में पुणे में वाजपेयी जी को एक सभा में तीन लाख रुपये भेंट किये जाने थे. इस राशि को मेहनत से जुटाने वाले कार्यकर्ताओं को एक-एक करके वाजपेयी को माला पहनाने का अवसर दिया गया. बार-बार गले तक मालाएं भर जातीं, तो वाजपेयी जी उन्हें उतार कर रख देते. जब उन्हें संबोधित करने का अवसर आया, तो उन्होंने कहा, ‘अब समझ आया कि ईश्वर की मूर्ति पत्थर की क्यों होती है. ताकि वह भक्तों के प्यार के बोझ को सहन कर सके.’
दूल्हे को पहचानिए
सन 1984 में इंदिरा गांधी की मौत के बाद कांग्रेस को 401 सीटों पर प्रचंड जीत मिली थी. कांग्रेस इतनी मजबूत थी कि अगले चुनाव में कांग्रेस को हराने के लिए गठबंधन जरूरी था. विश्वनाथ प्रताप सिंह भाजपा से गठबंधन नहीं चाहते थे, लेकिन कुछ मध्यस्थों के समझाने पर सीटों के समझौते के लिए राजी हो गये थे. चुनाव प्रचार के दौरान एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में, जिसमें वाजपेयी जी और वीपी सिंह दोनों मौजूद थे, पत्रकार विजय त्रिवेदी ने वाजपेयी जी से पूछा, चुनावों के बाद अगर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरती है, तो क्या आप प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी लेने को तैयार होंगे? वाजपेयी जी थोड़ा मुस्कुराए और जवाब दिया, ‘इस बारात का दूल्हा वीपी सिंह हैं.’
मार्जिन का इस्तेमाल
फरवरी, 1991 में जयपुर में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई. बैठक के आखिरी दिन जब अटल बिहारी वाजपेयी जी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे, तो वरिष्ठ पत्रकार नीना व्यास ने उनसे पूछा, सुना है वाजपेयी जी आजकल आप पार्टी में मार्जिनलाइज हो गये हैं, हाशिये पर आ गये हैं? वाजपेयी ने सवाल अनसुना कर दिया. दोबारा वही सवाल पूछा गया, तो वाजपेयी ने कहा, ‘नहीं नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’ लेकिन नीना व्यास कहां मानने वाली थीं. उन्होंने फिर कहा कि अब तो ज्यादाजर लोग मानने लगे हैं कि आप पार्टी में मार्जिनलाइज हो गये हैं. वाजपेयी जी ने तब अपने ही अंदाज में जवाब दिया, ‘कभी-कभी करेक्शन करने के लिए मार्जिन का इस्तेमाल करना पड़ता है.’
अटल जी की वे किताबें, जो अमूल्य धरोहर हैं
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संकल्प काल
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नयी चुनौती, नया अवसर
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गठबंधन की राजनीति
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विचार विन्दु
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न दैन्यं न पलायनम्
कविताएं
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मेरी इक्यावन कविताएं
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क्या खोया क्या पाया
जगजीत सिंह के साथ दो अल्बम
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संवेदना
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नयी दिशा
अटल जी पर भी खूब लिखी गयीं किताबें
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हार नहीं मानूंगा, एक अटल जीवन गाथा
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राष्ट्रवादी पत्रकारिता के शिखर पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी
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युग पुरुष, भारत रत्न, अटल जी
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इंडिया अंडर अटल बिहारी वाजपेयी : द बीजेपी ईरा (1999)
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अटल बिहारी वाजपेयी : द आर्क ऑफ इंडिया (2001)
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मेंडेंट फॉर पॉलिटिकल ट्रांजिशन- रीइमरजेंस ऑफ वाजपेयी
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अटल बिहारी वाजपेयी (2004)
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कवि राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी बायोग्राफी (1998)
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अटल बिहारी वाजपेयी : द मैन इंडिया नीड्स : द मोस्ट अप्रोपिएट लीडर फॉर द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी (2000)
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द अनटोल्ड वाजपेयी : पॉलिटिशियन एंड ए पैराडोक्स
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भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी
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अटल बिहारी वाजपेयी : कमिटमेंट टू पावर
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कश्मीर : द वाजपेयी इयर्स
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अटल बिहारी वाजपेयी
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गठबंधन की राजनीति
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मोटिवेटिंग थॉट ऑफ अटल बिहारी वाजपेयी
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गीत नया गाता हूं
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अटल बिहारी वाजपेयी : द मैन एंड हिज विजन
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द अनटोल्ड वाजपेयी
कविताओं में जीवन दर्शन के सूत्र
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आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझें मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्त्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएं
आओ फिर से दिया जलाएं…
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कवि आज सुना वह गान रे
कवि आज सुना वह गान रे
जिससे खुल जायें, अलस पलक
नस-नस में जीवन झंकृत हो
हो अंग-अंग में जोश झलक…
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हिंदी घर में दासी
बनने वाली विश्व भाषा जो, अपने घर में दासी
सिंहासन अंग्रेजी को यह देखकर, दुनिया हांसी
देखकर दुनिया हांसी, हिंदी वाले हैं चपरासी?
यह कैदी कवि राय विश्व की चिंता छोड़ो
पहले घर में अंग्रेजी के गढ़ को तोड़ो…
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गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नयी ठानूंगा
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं…
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कदम मिला कर चलना होगा
बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा
कदम मिलाकर चलना होगा..