…समझे कौन रहस्य ? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल, गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल… रामधारी सिंह दीनकर की यह पंक्ति जितनी सटीक पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर बैठती है उतनी शायद ही किसी और पर.. जी हां, 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित एक छोटे से गांव चंद्रभान में जन्मे एक बच्चे के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बड़ा होकर यही बच्चा देश का एक ऐसा चमकता सितारा बनेगा, जिसकी रोशनी करोड़ों लोगों को जगमग करेगी. और हुआ भी कुछ ऐसा ही. एक साधारण परिवार में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय का पूरा जीवन दूसरों के लिए प्रेरणा, प्रबल राष्ट्रवाद और आम लोगों के लिए समर्पित था. अंत्योदय, एकात्म मानववाद और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के रूप में भारत के वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक परिवेश को किसी और विचारक, राजनेता ने इतना प्रभावित नहीं किया जितना हम सभी के प्रेरणास्रोत पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने किया है. उनकी जयंती पर पूरा देश उन्हें शत्-शत् नमन कर रहा है.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक महान विचारक थे. प्रखर राष्ट्रवादी थे. उनके विचार करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. वो अंत्योदय विचार दर्शन के प्रणेता थे जिसका उद्देश्य था समाज मे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति का उदय. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का पूरा जीवन राष्ट्र सेवा और समर्पण का विराट प्रतिबिंब है. जब भी मानवता के कल्याण की बात होगी पंडित दीनदयाल का मानववाद दर्शन का सिद्धांत सम्पूर्ण मानवजाति को सदैव ध्रुव तारे की तरह मार्गदर्शित करेगा. एक सशक्त राष्ट्र के रूप में भारत को बेहतर बनाने के लिए उनके योगदान निरंतर प्रेरित देते रहेंगे.
प्रारंभिक जीवन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म सन 1916 में उत्तर प्रदेश राज्य के चंद्रभान नामक एक छोटे से गांव में हुआ था. महज दो साल की उम्र में उनके सिर से पिता का साया उठ गया. जल्द ही उनकी मां भी इस दुनिया से चल बसीं. लेकिन दुखों का सिलसिला यहीं नहीं थमा. माता-पिता के निधन के बाद उनका और उनके छोटे भाई की परवरिश इनके नाना और मामा ने की की. लेकिन नियती में अभी और दुख लिखा था. जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय 18 साल के थे उसी समय इनके छोटे भाई का भी निधन हो गया. भाई के निधन के बाद ये एकदम अकेले हो गए. पढ़ाई में कुशाग्र होने के कारण उन्हे कई स्कॉलरशिप भी मिले.
हालात के सामने कभी झुके नहीं पंडित दीनदयाल
पंडित दीनदयाल उपाध्याय हालात के सामने कभी झुके नहीं. जीवन की परेशानियों का असर कभी भी अपनी पढ़ाई पर नहीं होने दिया. इन्होंने हर परिस्थिति में अपनी पढ़ाई जारी रखी. इन्होंने अपनी मैट्रिक स्तर की शिक्षा राजस्थान राज्य से हासिल की थी और इंटरमीडिएट स्तर की शिक्षा राजस्थान के पिलानी में स्थित बिड़ला कॉलेज से हासिल की. इसके बाद पंडित जी ने उत्तर प्रदेश के कानपुर में स्थित सनातन धर्म कॉलेज में प्रवेश ले लिया था और साल 1936 में इस कॉलेज से प्रथम स्थान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.
राजनीति में पर्दापण
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने प्रांतीय सेवा परीक्षा को पास कर सरकारी नौकरी भी हासिल कर ली थी. लेकिन आम लोगों के लिए कुछ करने की प्रेरणा ने इन्हें राजनीति की ओर झुकाव बढ़ा दिया. जिसके बाद पंडित जी ने अपनी नौकरी को छोड़ दी. समाज के लिए कुछ करने के जज्बे के कारण उन्होंने विवाह तक नहीं किया. अपना सारा जीवन अपनी पार्टी को ही समर्पित कर दिया. अपने कॉलेज के दिनों में ही पंडित जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए थे और ये आरएसएस के प्रचारक भी बन गए थे. सन 1955 में इन्हें लखीमपुर जिले में आरएसएस का प्रचारक नियुक्त किया गया था और आरएसएस का प्रचार करने की जिम्मेदारी इन्हें दी गई थी.
भारतीय जनसंघ पार्टी में निभाई अहम भूमिका
साल 1951 में भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना की गई थी. इसे राजनीतिक पटल पर सुदृढ़ बनाने में पंडित जी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. पार्टी के गठन के बाद दीनदयाल उपाध्याय को इस पार्टी का महासचिव भी चुन लिया गया था. भारतीय जनसंघ पार्टी आरएसएस से जुड़ी हुई थी. इसके बाद 1977 में इसे जनता पार्टी के नाम जाना जाने लगा. इसके बाद 1980 में इस पार्टी का नाम भारतीय जनता पार्टी कर दिया गया. बीजेपी आज भी श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सिद्धांतों पर चलकर लोगों के सरोकार से जुड़ी हुई है. पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर काम करने वाले देश के महान नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय 51 साल की उम्र में निधन हो गया था.