23 जून को पटना मे होने वाली विपक्ष के महाजुटाना पर हर किसी की निगाहें टिकी हैं. ऐसा माना जा रहा हैं कि पटना में जुटने वाले इन 18 विपक्षी दलों के बीच अगर समन्वय बन जाता है तो 2024 लोकसभा चुनाव की तस्वीर कुछ और हो सकती है. मगर इन सब से इतर BJD, BSP, YRS, BRS और JDS ये पांच ऐसे दल हैं जो विपक्षी खेमे में नहीं शामिल तो नहीं हैं मगर बीजेपी के साथ भी इनके संबंध खुल कर सामने नहीं आ रहे हैं. ऐसे में अगर ये क्षेत्रीय दल अगर बेहतर प्रदर्शन करते हैं तो निश्चित ही ये उन 18 विपक्षी दलों के लिए चिंता का विषय होगा जो सत्ता पर काबिज बीजेपी के लिए लामबंद हो रहे हैं.
आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी की सरकार है. 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में पार्टी ने 175 सीटों में से 151 सीटें जीत हासिल थी. उनकी पार्टी 84 नई सीटों पर कब्जा किया था यानी मौजूदा समय में प्रदेश में उनकी मजबूत पकड़ है. वहीं क्षेत्रीय पार्टियों में तुलना की जाए तो लोकसभा में उनके 22 सांसद हैं यानी विपक्षी दलों के साथ न आने पर विपक्षी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है. जगन मोहन रेड्डी की राजनीति ताकत के कारण ही बीजेपी उन पर नजर गढ़ाए हुए हैं. वैसे जगन भी बीजेपी ने नजदीकी बनाए रखने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं. ऐसे में भले ही वह एनडीए में शामिल न हों, लेकिन कई मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन करते रहे हैं. वह ऐसे विपक्षी मुद्दों पर भी किनारा करते रहे हैं, जिनके साथ कांग्रेस खड़ी होती रही है.
अगर पटनायक की राजनीतिक ताकत की बात की जाए तो लोकसभा में उनके 12 सांसद हैं. क्षेत्रीय दलों में अगर तुलना की जाए तो यह संख्या काफी ज्यादा है. वहीं मौजूदा समय में राज्य की 146 विधानसभा सीटों में से नवीन पटनायक की पार्टी 112 सीट पर कब्जा कर रखा है. यानी केंद्र और राज्य दोनों की जगहों पर पटनायक मजबूत स्थिति में हैं. ऐसे में बीजद का विपक्ष के साथ न होना लोकसभा चुनाव में नुकसान पहुंचा सकता है.
तेलंगाना के सीएम केसीआर और कांग्रेस में राजनीतिक टकराव किसी से छुपा नहीं है. कर्नाटक में चुनाव जीतने के बाद शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने कई विपक्षी दलों को न्योता दिया था लेकिन उसने केसीआर को नियमंत्रण नहीं भेजा था. केसीआर पहले से विपक्षी एकजुटता से दूरी बनाने का मन बना चुके थे. वैसे तेलंगाना की 119 विधानसभा सीटों में 88 पर बीआरएस का कब्जा है. इससे पहले उसकी राज्य में 63 सीटें थी. यानी केसीआर की राजनीतिक ताकत बढ़ी है. वहीं लोकसभा में भी टीआरएस के 9 सांसद हैं यानी टीआरएस का सपोर्ट किसी भी दल के मायने रखता है
कर्नाटक में जेडीएस की अच्छी पकड़ मानी जाती है लेकिन इस बार हुए विधानसभा चुनावों में उसकी सीटें कम हो गईं. उसे 19 सीटों मिली यानी उसे 13.3 फीसदी वोट मिले. जबकि 2018 में उसे 37 सीटें मिली थीं. इससे पहले 2013 में 40 सीटें, 2008 में 28 सीटें और 2004 में 58 सीटें मिली थीं यानी 1999 में गठित हुई पार्टी लगातार अपना जनाधार खो रही है. वहीं लोकसभा में मौजूदा समय में जेडीएस का केवल एक सांसद ही है. कांग्रेस और बाकी दल मजबूत हो रहे हैं यानी जेडीएस अब किंगमेकर राज्य में उसकी रिश्ते कांग्रेस से सही नहीं हैं. वैसे एचडी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं.
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर पक्ष-विपक्ष सबकी निगाहें टिकी हैं. जहां साल 2019 में हुई लोकसभा चुनाव में बीजेपी को एतिहासिक रूप 62 सीटें जीती थी वहीं बसपा को महज 10 सीटों पर संतोष करना पड़ा था, गौतलब है 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा दोनों ने मिलकर लड़ा था. वहीं 2024 की परिपाठी कुछ अलग है, इस मायवाती हर एक कदम फूंक-फूंक रख रही हैं.