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छह अप्रैल 1980 में हुआ था पार्टी का गठन
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1951 में हुआ था जनसंघ का गठन
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सोमनाथ से अयोध्या तक की रथयात्रा निकाली गयी थी
भारतीय जनता पार्टी का आज स्थापना दिवस है. आज से 41 साल पहले यानी 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई थी. पार्टी ने अभी अपनी स्थापना का अर्द्धशत भी पूरा नहीं किया है, लेकिन सदस्यों के लिहाज से वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बन गयी है. पूर्णबहुमत में सरकार बनाकर भाजपा दूसरी बार भारत की केंद्रीय सत्ता तक पहुंची है.
भाजपा ने पूरे देश को भगवा रंग में रंग लिया है. दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ बहुत ढीली थी लेकिन अब भाजपा ने कर्नाटक में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है. कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और इस बार भाजपा को उम्मीद है कि केरल और तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव में उसे कुछ सीटें मिल सकती हैं. पुडुचेरी से भी भाजपा को उम्मीदें हैं. आज भाजपा इस स्थिति में है कि वो पूरे देश पर शासन कर रही है और दक्षिण भारत में भी उसकी पकड़ बन रही है,लेकिन ये वही भाजपा है, जिसे 1984 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो सीटें मिलीं थीं और उसके दिग्गज नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गये थे. लेकिन रामजन्मभूमि आंदोलन के बाद पार्टी की प्रसिद्धि बढ़ने लगी और यह आम लोगों की पार्टी बनती गयी. पार्टी ने हिंदुत्व को मुद्दा बनाया और आगे बढ़ती ही गयी. पार्टी को शिखर तक पहुंचाने वाले कई नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं और कई अब राजनीति से अलग-थलग हो गये हैं. आइए जानते हैं ऐसे ही कई नेताओं के बारे में-
लालकृष्ण आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी के खास मित्र हैं और इन्होंने पार्टी को मजबूत करने में खास भूमिका निभाई थी. आडवाणी 1951 से जनसंघ से जुड़े रहे वे उस वक्त वे पार्टी के सचिव थे. डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी. 1980 में जनसंघ भारतीय जनता पार्टी बन गयी और जनता पार्टी से खुद को अलग कर लिया. आडवाणी 1986 से 91 तक पार्टी के अध्यक्ष रहे. लेकिन उनका कद इसके बाद बढ़ा जब उन्होंने रामजन्मभूमि के लिए रथयात्रा निकाली. इस यात्रा ने ना सिर्फ आडवाणी का कद बढ़ा बल्कि भाजपा का भी विस्तार हुआ. उन्हें प्रधानमंत्री पद का सबसे योग्य कैंडिटेड माना गया, लेकिन वे कभी पीएम नहीं बन सके.
1990 के राम मंदिर आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जोशी भी अब राजनीति से दूर हो चुके हैं. इसका कारण उम्र भी है. जब राम मंदिर आंदोलन चरम पर था उस वक्त वे पार्टी के अध्यक्ष थे. उन्होंने 1980 में पार्टी के गठन में भी अहम भूमिका अदा की थी. इन्होंने 2014 के चुनाव में अपनी सीट वाराणसी नरेंद्र मोदी के लिए छोड़ दी थी.
कभी भाजपा की फायरब्रांड नेता रहीं उमा भारती आज राजनीति में हाशिये पर हैं. लेकिन रामजन्मभूमि आंदोलन के वक्त वे पहली पंक्ति की नेता थीं. जब बाबरी मस्जिद को ढाया गया उस वक्त भी वे अयोध्या में थीं. उमा भारती उस वक्त ऐसी युवा नेता थीं, जिसके भाषणों का जनता पर व्यापक प्रभाव पड़ता था.
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भाजपा को शिखर तक पहुंचाने में कल्याण सिंह की भी अहम भूमिका है. जिस वक्त रामजन्मभूमि का आंदोलन चल रहा था उस वक्त उन्होंने इस आंदोलन में सक्रियता के साथ भाग लिया. 1991 में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और उनके शासनकाल में ही छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था. बाद मं कल्याण सिंह को राजस्थान का गवर्नर बनाया गया, लेकिन आज कल्याण सिंह भी राजनीति से एक तरह से संन्यास ही ले चुके हैं.
Posted By : Rajneesh Anand