Uma Bharti: बीजेपी नेता उमा भारती ने यह ऐलान किया कि आगामी 17 नवंबर से वो सभी रिश्तों को त्याग देंगी. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने अब यह स्पष्ट किया है कि उन्होंने 17 नवंबर, 1992 को अमरकंटक में ‘संन्यास’ लिया था, जब उनका नाम उमा भारती से बदलकर उमाश्री भारती कर दिया गया था. उन्होंने बताया कि अब 30 साल पूरे होने के अवसर पर बीजेपी नेता को अब उनके वर्तमान गुरु विद्यासागर जी महाराज की सलाह के अनुसार ‘दीदी मां’ के रूप में जाना जाएगा. उमा भारती ने ट्वीट किया, “उन्होंने (गुरुजी) मुझसे कहा कि भारती भारत की है, सबकी दीदी मां बनो.”
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जब उन्होंने संन्यास लिया, तो उनका नाम आधिकारिक रूप से नहीं बदला जा सका था क्योंकि वह संसद की सदस्य थीं. आगे उन्होंने कहा कि “जिस परिवार में मैं पैदा हुई थी वहां मेरे भाइयों और भतीजों ने मेरी राजनीतिक यात्रा में मेरा बहुत साथ दिया. उन्होंने कहा कि वास्तव में, उन्होंने अपना जीवन दांव पर लगा दिया और बीजेपी और कांग्रेस दोनों के समय में झूठे मामलों के कई मुद्दों का सामना किया. सब अपने दम पर तरक्की कर रहे हैं. बेटियां बड़े कॉलेजों में हैं, बहू पायलट हैं, डॉक्टर हैं, वकील हैं. लेकिन अब पूरी दुनिया मेरा परिवार है. हां, वे भी शामिल हैं. अब एक परिवार के बजाय, आप सभी हैं मेरा परिवार. अब मेरा परिवार भी मुझसे मुक्त है और मैं भी अपने परिवार से मुक्त हूं.”
बता दें कि राजनीतिक मोर्चे पर उमा भारती ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रशंसा की और कहा कि मैं खुश हूं कि सिंधिया अब बीजेपी में हैं. मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय को बंगाल में बीजेपी की भारी पैठ का श्रेय देते हुए, उमा भारती ने कहा कि वह पार्टी के लिए बहुत अच्छा काम कर रही हैं. हालांकि उमा भारती अब सक्रिय राजनीति से दूर रहती हैं, लेकिन वह सक्रिय सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन को बनाए रखती हैं. 3 नवंबर को, जैसा कि चुनाव आयोग ने गुजरात चुनावों की तारीखों की घोषणा की, उमा भारती ने पार्टी की भारी जीत की भविष्यवाणी की.
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बीते 4 नवंबर को उमा भारती ने ट्विटर पर अपने संन्यास के बारे में बात की और कहा कि कैसे 1992 में 3 दिनों के लिए उनका संन्यास समारोह आयोजित किया गया था. राजमाता जी, तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा और उस समय राज्य के लगभग सभी बीजेपी नेता उनके संन्यास में मौजूद थे. उन्होंने आगे बताया, “मेरी दीक्षा के तुरंत बाद, मुझे अयोध्या में भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी दी गई. फिर 6 दिसंबर की घटना हुई. अमरकंटक से, मैं अयोध्या गयी जहां बाबरी संरचना को ध्वस्त कर दिया गया और वहां से मुझे आडवाणी के साथ जेल भेज दिया गया. जब हम जेल से बाहर आए तो दुनिया बदल गई. हमारी सरकार गिर गई. उन्होंने कहा कि 1992 से 2019 तक हमने कड़ी मेहनत की. मैं कभी उन चीजों के बारे में विस्तार से लिखूंगी.”