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देश को नमक खिलाने वाले गुजरात के नमक मजदूरों और मछुआरों की सुध लेगी बीजेपी की नयी सरकार ?

नमक. कहने को काफी सस्ती चीज है, लेकिन भोजन में इसका काफी अहम रोल है. बिना नमक आप स्वादिष्ट भोजन की कल्पना नहीं कर सकते. क्या कभी आपने सोचा है कि देश को नमक खिलाने वाले गुजरात के मजदूरों का क्या दर्द है ? क्या बीजेपी की नयी सरकार इनकी सुध लेगी ?

गुजरात के नमक मजदूर अपनी जान जोखिम में डालकर देश को नमक खिलाते हैं. खारा पानी में रहकर नमक बनाने के कारण वे कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैं. इसके बाद भी उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. वे अपने बच्चों को भी ठीक से पढ़ा नहीं पाते. कुछ ऐसा ही हाल मछुआरों का है. इनकी अच्छी संख्या है. इस कारण सियासी दलों की नजर इन पर रहती है, लेकिन इनका आरोप है कि कोई इनकी सुध नहीं लेता है. चुनावी वादे तो करते हैं, लेकिन उसे पूरा नहीं करते हैं.

जोखिम में नमक मजदूरों की जान

नमक. कहने को काफी सस्ती चीज है, लेकिन भोजन में इसका काफी अहम रोल है. बिना नमक आप स्वादिष्ट भोजन की कल्पना नहीं कर सकते. क्या कभी आपने सोचा है कि देश को नमक खिलाने वाले गुजरात के मजदूरों का क्या दर्द है ? वे किन परेशानियों से गुजरते हैं. वे अपनी जान तक जोखिम में डाल देते हैं. इसके बावजूद उनकी तस्वीर नहीं बदली. क्या बीजेपी की नयी सरकार इनकी सुध लेगी ?

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बेहाल हैं नमक मजदूर

सरकार की रिपोर्ट की मानें, तो देश में नमक मजदूरों की संख्या 9 लाख से अधिक है. गुजरात में करीब 4.5 लाख मजदूर हैं. कच्छ के नमक मजदूर अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहते हैं कि वे देश को नमक तो खिलाते हैं, लेकिन कोई उनकी सुध नहीं लेता. नमक बनाने के दौरान खारा पानी में रहने के कारण उनकी लाशें ठीक से जलती तक नहीं. घुटने के ऊपर का हिस्सा तो किसी तरह जल जाता है, लेकिन निचले भाग को गड्ढा खोदकर दबा दिया जाता है. शव गल जाए, इसके लिए ऊपर से नमक दे दिया जाता है. जिंदा रहते भी नमक और मरने के बाद भी नमक साथ रहता है. वे अपने बच्चों को भी ठीक से पढ़ा नहीं पाते. खारा पानी में रहने के कारण कई बीमारियों से भी वे ग्रसित हो जाते हैं. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी की नयी सरकार उनकी सुध लेगी?

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क्यों नाराज हैं मछुआरे

गुजरात में मछली के कारोबार से करीब डेढ़ करोड़ लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं, जबकि मछुआरों की संख्या पांच लाख से अधिक है. कई सीटों पर इनकी अच्छी संख्या है. इस वजह से इन पर सबकी नजर होती है. हर दल इन्हें लुभाने की हर संभव कोशिश करता है. बीजेपी, कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने इन्हें चुनाव प्रचार के दौरान काफी लुभाया, लेकिन मछुआरे काफी नाराज हैं. उनका कहना है कि कोई उनकी सुध नहीं लेता. वे कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. योजनाओं का लाभ भी उन्हें ठीक से नहीं मिलता. चुनावी घोषणाएं कागजों में ही रह जाती हैं. खरवस, मोहिला कोली, मछियारा मुस्लिम, भील, टंडेल, मच्छी, कहार, वाघेर और सेलर समेत करीब 18 जाति समूह पारंपरिक मछुआरे हैं.

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