बॉम्बे हाईकोर्ट ने बागियों के खिलाफ याचिका को किया खारिज, उद्धव-आदित्य पर FIR दर्ज करने का अनुरोध ठुकराया

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी के अन्य असंतुष्ट विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए सात नागरिकों जनहित याचिका को गुरुवार को राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमा बताते हुए खारिज कर दिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2022 2:40 PM
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मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को शिवसेना के बागी नेताओं के खिलाफ सात नागरिकों द्वारा दायर याचिका को राजनीति से प्रेरित बताते हुए खारिज कर दिया है. हालांकि, अदालत ने याचिकाकर्ताओं द्वारा एक लाख रुपये की जमानत राशि जमा कराने की शर्त पर सुनवाई करने की बात कही है. यह याचिका शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी के दूसरे असंतुष्ट नेताओं के खिलाफ दायर की गई थी. इसके साथ ही, अदालत ने एक सामाजिक कार्यकर्ता की ओर से दायर उस याचिका को भी खारिज कर दिया, जिसमें राजद्रोह और शांति भंग करने करने के लिए उद्धव ठाकरे, आदित्य ठाकरे और संजय राउत पर प्राथमिक दर्ज करने के आदेश देने का अनुरोध किया गया था.

एक लाख की जमानत राशि पर करेंगे सुनवाई : हाईकोर्ट

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे और पार्टी के अन्य असंतुष्ट विधायकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करते हुए सात नागरिकों जनहित याचिका को गुरुवार को राजनीतिक रूप से प्रेरित मुकदमा बताते हुए खारिज कर दिया. हालांकि, अदालत ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता जमानत राशि के तौर पर एक लाख रुपये जमा कराते हैं तो वह याचिका पर सुनवाई करेगा.

उद्धव-आदित्य पर प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध ठुकराया

बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कार्णिक की पीठ ने राजद्रोह और सार्वजनिक शांति भंग करने के लिए शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे, उनके बेटे आदित्य ठाकरे और पार्टी नेता संजय राउत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने का अनुरोध करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत पाटिल द्वारा दायर एक अन्य जनहित याचिका भी खारिज कर दी. दोनों याचिकाएं इस हफ्ते की शुरुआत में दायर की गई थीं.

बागी विधायकों ने राजनीतिक उथल-पुथल पैदा की

सात नागरिकों द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि शिंदे और अन्य बागी विधायकों ने राजनीतिक उथल-पुथल पैदा की और आंतरिक अव्यवस्था को भड़काया. सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत पाटिल ने अपनी जनहित याचिका में ठाकरे पिता-पुत्र और राउत को बागी विधायकों के खिलाफ कोई और बयान देने से रोकने का अनुरोध किया. हाईकोर्ट ने पाटिल की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के पास एक निजी शिकायत के साथ मजिस्ट्रेट की अदालत का रुख करने का कानूनी उपाय था.

अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा सवाल

सात नागरिकों द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने उनके वकील आसिम सरोडे से पूछा कि क्या बुधवार को हुए घटनाक्रम (उद्धव ठाकरे के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने) के मद्देनजर अब भी याचिकाओं पर सुनवाई की जानी चाहिए. सरोडे ने कहा कि अदालत को काम से दूर रहने और अपने कर्तव्यों की अनदेखी करने के लिए बागी विधायकों के खिलाफ संज्ञान लेना चाहिए. इस पर पीठ ने पूछा कि अदालत को इसका संज्ञान क्यों लेना चाहिए.

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दो हफ्ते में जमानत राशि जमा कराने का आदेश

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आपने मंत्रियों को चुना, आप कार्रवाई करिए. हमें क्यों संज्ञान लेना चाहिए? इसके बाद अदालत ने सरोडे ने पूछा कि कौन-सा नियम कहता है कि विधायकों या मंत्रियों को हर वक्त शहर या राज्य में रहना होगा. अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया हमारा यह मानना है कि यह पूरी तरह राजनीति से प्रेरित मुकदमा है. याचिकाकर्ताओं ने आवश्यक शोध नहीं किया. हम याचिकाकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर जमानत राशि के तौर पर एक लाख रुपये जमा कराने का निर्देश देते हैं. पीठ ने कहा कि अगर पैसे जमा करा दिए जाते हैं तो जनहित याचिका पर तीन सप्ताह बाद सुनवाई की जा सकती है और अगर पैसे जमा नहीं कराए जाते तो इसका निस्तारण समझा जाए.

भाषा इनपुट

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