अश्विन पाटिल (निदेशक, बायोफ्यूल्स जंक्शन) : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत अंतरिम में इस महत्वपूर्ण चुनौती पर ध्यान दिया गया है कि फसल की खूंटी को बड़े पैमाने पर संग्रहित किया जायेगा, जिसमें अच्छी मात्रा में पूंजी लगायी जायेगी. हर साल देश में लगभग 500 मिलियन टन कृषि अवशिष्ट निकलता है. इससे लगभग 50 हजार करोड़ रुपये के अनुमानित मूल्य का एक बड़ा कारोबारी अवसर पैदा होता है. यह दुर्भाग्य की बात है कि इस संसाधान के करीब 200 मिलियन टन हिस्से का उपयोग नहीं हो पाता है, जिसे अक्सर जला दिया जाता है. इस अवशिष्ट के जलाने से पर्यावरण को बहुत नुकसान होता है. इससे इंगित होता है कि इस कृषि अवशिष्ट को जैव ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना है, जिसे साकार किया जाना चाहिए.
वित्त मंत्री द्वारा की गयी बजट घोषणा में अनेक उपायों पर जोर दिया गया है, जिनमें बायोमास संग्रहण मशीनरी के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है. इस मुद्दे के संदर्भ में यह एक आवश्यक प्रोत्साहन है तथा कृषि अवशिष्टों को जैव ईंधन में बदल कर बड़े आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं. कृषि कर्कट को जैव ईंधन में बदलने पर ध्यान देने से न केवल कचरा प्रबंधन में मदद मिलेगी, बल्कि इससे हरित विकास को बढ़ावा देने तथा देश में कार्बन उत्सर्जन को घटाने में भी उल्लेखनीय सहायता मिलेगी. इससे किसान कृषि कचरे से भी आमदनी हासिल कर सकेंगे तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था और समुदायों को बेहतर करने में सहयोग मिलेगा. साथ ही, ग्रामीण उद्यमिता को भी इन प्रयासों से प्रोत्साहन मिलेगा.
बजट में कंप्रेस्ड बायो गैस और कंप्रेस्ड नैचुरल गैस (सीएनजी) एवं पाइप्ड नैचुरल गैस (पीएनजी) को चरणबद्ध तरीके से मिश्रित करने को आवश्यक बनाये जाने की घोषणा भी हुई है. इससे गैसों के यातायात और घरेलू उपयोग में बेहतरी आयेगी तथा ईंधन आपूर्ति की मुख्य धारा में स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को शामिल करने की प्रक्रिया में तेजी आयेगी. इससे पर्यावरण संरक्षण में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर हमारी निर्भरता में भी कमी आयेगी. बायो गैस और नैचुरल गैसों के मिश्रण से संबंधित घोषणा एक अधिक स्वच्छ और हरित ऊर्जा इकोसिस्टम की ओर ठोस कदम है. और, यह यातायात एवं घरेलू क्षेत्र में सतत विकास और कार्बन उत्सर्जन घटाने के व्यापक लक्ष्यों के साथ मेल खाता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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