Kashmir में Bulldozer Action ने दिखाया असर, 1.87 लाख एकड़ से बेदखल हुए रसूखदार
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जनवरी में demolition drive शुरू की थी. इसका मकसद सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराना है, जिस पर कुछ प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर रखा है. इस अभियान के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहा है. यहां तक कि आतंकी संगठन भी हमले की चेतावनी जारी कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर में इस समय Bulldozer Action चर्चा में है. बुधवार को कश्मीर के लाल चौक समेत कमर्शियल इलाकों में तालाबंदी रही. कारण, प्रशासन का अतिक्रमण और अवैध कब्जे हटाओ अभियान. अनंतनाग में भी तालाबंदी रही. लगभग पूरा शहर सन्नाटे में पसरा रहा. हालांकि इस हड़ताल को बुलाने वाले संगठन का नाम सामने नहीं आया है, लेकिन हुर्रियत कांफ्रेंस के पोस्टर कुछ जगहों पर लगे पाए गए, जिसमें तालाबंदी का जिक्र था.
क्यों चल रहा अवैध कब्जे हटाओ अभियान
जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने जनवरी में demolition drive शुरू की थी. इसका मकसद सरकारी जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराना है, जिस पर कुछ प्रभावशाली लोगों ने कब्जा कर रखा है. इस अभियान के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहा है. यहां तक कि आतंकी संगठन भी हमले की चेतावनी जारी कर रहे हैं. लेकिन प्रशासन मुस्तैदी के साथ अभियान को आगे बढ़ा रहा है.
कितनी जमीन कराई मुक्त
स्थानीय प्रशासन ने अब तक करीब 1.87 लाख एकड़ जमीन मुक्त कराई है. इस अभियान के खिलाफ Congress, the People’s Democratic Party, the Apni Party और the Democratic Azad Party भी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. अब सवाल उठता है प्रशासन को इतने बड़े पैमाने पर Demolition Drive क्यों चलाना पड़ा.
Also Read: Bulldozer: बुलडोजर पर सवार होकर शादी रचाने पहुंचा दूल्हा, देखने वालों की लगी भीड़, VIDEO
LG का बयान
LG ने साफ किया है कि यह अभियान प्रभावशाली लोगों के खिलाफ चलाया जा रहा है. बयान में कहा गया है कि बीते दो दशकों में प्रभावशाली लोगों ने अपने पद का दुरुपयोग कर सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है. खबरों की मानें तो अब तक जिन लोगों का अवैध कब्जा हटाया गया है, उनमें नेता और नौकरशाह शामिल हैं.
क्या है इतिहास
खेती-बाड़ी हमेशा से कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. डोगरा शासन (1845-1947) के तहत, लोगों को चारागाहों और राज्य की भूमि पर काम करने की मुफ्त सुविधा दी गई थी. 1947 से पहले, जम्मू और कश्मीर में सरकारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा जमींदारों के कब्जे में था, जो उसे नियंत्रित करते थे और ऐसे लगभग 13000 थे. जो लोग राज्य या जमींदारों की ओर से भूमि का कामकाज देखते थे, वे मध्य वर्ग से होते थे और जो भूमि पर खेती करते थे, वे निम्न वर्ग से थे.
3960 बड़े जमींदार थे
13000 जमींदारों में से 3960 बड़े जमींदार थे और उन्हें जागीरदार के रूप में जाना जाता था और उन्हें दिया गया क्षेत्र, उनकी जागीर (जागीर) था. भूमि पर उनका कोई स्वामित्व अधिकार नहीं था क्योंकि वह महाराजा के पास था. हालांकि, वे उन्हें दिए गए क्षेत्रों के राजस्व के मालिक थे. जागीर के अलावा, राज्य ने उन्हें अपनी जागीर के लोगों पर शासन करने की शक्ति भी सौंप रखी थी. जागीरदारों को विभिन्न गांवों के लोगों से सीधे राजस्व वसूल करना होता था, जो उनकी जागीरों के अंतर्गत आते थे. इसमें भू-राजस्व, चराई शुल्क, वन शुल्क, वाटर मिल से आय और अन्य साधन शामिल थे. आमतौर पर, वे उपज का लगभग 75 प्रतिशत ले लेते थे और 25 प्रतिशत जोतने वाले के लिए छोड़ देते थे.
लगभग 2,50,000 किसान काम करते थे
बाकी बचे 8140 लोगों ने जमींदारों की अन्य श्रेणियों का गठन किया जो जागीरदारों के पद से नीचे थे और वे पट्टादार, चक्रदार, मुफदार और मुकरारी थे. उनके पास भूमि किराए पर थी और कोई स्वामित्व अधिकार नहीं था. ऐसे जमींदारों की भूमि पर काम करने वाले लगभग 2,50,000 किसान थे.
अमृतसर की संधि
जब भारत सरकार ने कश्मीर पर नियंत्रण शुरू किया तो इस व्यवस्था को खत्म कर दिया. उस दौरान डोगराओं ने जम्मू-कश्मीर में अमृतसर की संधि (Treaty of Amritsar) के तहत जमीनें खरीदीं. हालांकि बाद में यह संधि खत्म कर दी गई और नई सरकार ऐसी जमीनों की मालिक बन गई. इसके बाद जमीन को अलग-अलग बांटा गया. इसमें नजूल, शामिलत और खालसा सरकार शामिल थे. इसके बाद ही लोगों ने सरकारी जमीन पर कब्जा करना शुरू कर दिया. इसका प्रमाण राजौरी, सांबा और कठुआ में मिलता है.
अवाम भी परेशान
मीडिया रिपोर्ट की मानें तो इस ड्राइव से जम्मू-कश्मीर की अवाम भी परेशान है कि कहीं उनका आशियाना भी न छिन जाए. हालांकि प्रशासन इसे लेकर सतर्क है कि किसी के साथ अन्याय न हो. प्रशासन का कहना है कि मुक्त कराई गई सरकारी जमीन पर विकास का काम शुरू होगा. बिजली प्रोजेक्ट लगेंगे.