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कैंसर, तुमने मेरी जिंदगी बदल दी, कैंसर से लड़ रहे वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश की चिट्ठी

लगता है कि तुम अपना और हम अपना काम कर रहे हैं. काम करने की यह फ्रीक्वेंसी बनी रहे, तो तुम्हारे साथ कुछ और साल गुजारने का मौका मिल सकता है. मुझे भरोसा है कि तुम नाउम्मीद नहीं करोगे. हम कई और साल साथ गुजारेंगे.

प्रभात खबर समेत देश के कई अखबारों के संपादक रहे वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश कैंसर के चौथे स्टेज से लड़ रहे हैं. 21 कीमोथेरेपी हो चुकी है. उन्होंने कैंसर को एक पत्र लिखा है. पत्र में कैंसर से कोई शिकायत नहीं की है. कैंसर को वरदान के रूप में अंगीकार कर लिया है. रवि प्रकाश की यह चिट्ठी इस बीमारी से जूझ रहे लोगों को ही नहीं, बल्कि जीवन से निराश हो चुके लोगों को जीने का संबल प्रदान करती है. इस चिट्ठी को आप भी पढ़ें…

प्रिय कैंसर,

तुम्हारे साथ रहते हुए करीब सवा साल गुजर गये. कुछ दिनों के असहनीय कष्टों को भूल जायें, तो बाकी के महीने शानदार रहे. इसकी वजह तुम हो. तुम्हारे कारण मैंने अपने लिए वक्त निकालना सीखा. हमने अपने हर दुख के बीच छिपी बहुसंख्य खुशियां तलाशनी शुरू कर दी. इन खुशियों ने हमें बीमारी के शोक से बाहर आने का रास्ता दिखाया. तुम कितने अच्छे हो. तुम्हारा शुक्रिया. तुमने मेरी जिंदगी बदल दी है.

अब तक कीमोथेरेपी के 21 सत्र पूरे हो चुके हैं. साइड इफेक्ट के ग्रेड 2 में पहुंच जाने के कारण टारगेटेड थेरेपी 10 दिनों के लिए रोकी गयी है. 22 तारीख से वह फिर से शुरू हो जायेगी. ये दोनों थेरेपीज चलती हैं, तो आत्मविश्वास बना रहता है. लगता है कि तुम अपना और हम अपना काम कर रहे हैं. काम करने की यह फ्रीक्वेंसी बनी रहे, तो तुम्हारे साथ कुछ और साल गुजारने का मौका मिल सकता है. मुझे भरोसा है कि तुम नाउम्मीद नहीं करोगे. हम कई और साल साथ गुजारेंगे.

मैं दरअसल कीमोथेरेपी का शतक बनाना चाहता हूं, ताकि आने वाले वक्त में लोग कहें कि कीमोथेरेपी से क्या डरना. देखो उसने तो 100 या उससे अधिक बार कीमोथेरेपी ली. कैंसर के दूसरे मरीजों का विश्वास इस उदाहरण से और पुख्ता हो कि कीमो सिर्फ एक थेरेपी है, किसी को तकलीफ में डालने की कवायद नहीं. इसी तरह टारगेटेड थेरेपी उस म्यूटेशन को टारगेट करती है, जिसके कारण हमारे शरीर में कैंसर की कोशिकाएं पल्लवित होती हैं.

कैंसर का इलाज कराने के दौरान डॉक्टर्स से हुई बातचीत और कैंसर से संबंधित कई किताबों को पढ़ने के बाद मैं लिख सकता हूं कि कीमोथेरेपी व टारगेटेड थेरेपी की ही तरह इम्यूनोथेरेपी, रेडिएशन थेरेपी, सर्जरी या इलाज की दूसरी मानक पद्धतियां भी हमें ठीक करने (क्यूरेटिव) या ठीक रखने (पैलियेटिव) के लिए हैं. तकलीफ में डालने के लिए नहीं. भारत सरकार ने इन तरीकों की स्वीकृति कई मरीजों पर किये गये क्लिनिकल ट्रायल्स के बाद दी है. इसलिए इन पर संदेह की गुंजाइश नहीं बचती. मैंने यह समझा है कि कैंसर का इलाज दरअसल एक मेडिकल प्रोटोकॉल है, इसका पालन करना ही चाहिए.

प्रिय कैंसर, तुम तो यह सारी बातें जानते-समझते हो. तुम हमारे शरीर में आये भी, तो इसमें तुम्हारा क्या दोष. शरीर के जीन्स में कुछ नये म्यूटेशंस हुए और हमारी कुछ कोशिकाएं तुम पर आसक्त हो गयीं. बस इतनी-सी कहानी है. लिहाजा, मैं तुम्हें दोषी नहीं मानता.

मैं तो तुम्हारा एहसानमंद हूं, क्योंकि तुमने जीने का तजुर्बा दिया है. ये अच्छा हुआ कि तुम चुपके से आये. जब तुम्हारे आने की मुनादी हुई, तब तक स्टेज 4 था. मेडिकल की भाषा में इसे कैंसर का अंतिम स्टेज कहते हैं. अब मैं चाहकर भी सर्जरी नहीं करा सकता. तुम मेरे साथ ही रहोगे.

मशहूर अमेरिकी साइक्लिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग जैसे कई लोगों के साथ तुम चौथे स्टेज में भी लंबा साथ निभा रहे हो. स्टार भारतीय क्रिकेटर युवराज सिंह और बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोईराला भी कैंसर के चौथे स्टेज से बाहर आयीं हैं. मेरे और इनमें सिर्फ इतना फर्क है कि इन सबका ऑपरेशन संभव था. इसलिए उनलोगों ने सर्जरी कराकर तुम्हें बाय कर दिया. लेकिन, तुम मेरे फेफड़ों में हो. मैं सर्जरी नहीं करा सकता. तुम्हारे साथ ही रहना है अब. सो, मैंने पहले ही दिन तुम्हें दोस्ती का प्रस्ताव दिया, प्रेम प्रस्ताव दिया और तुम मान गये. हम सवा साल से साथ हैं. इस साथ को यथासंभव लंबा रखना है. उदाहरण बनाना है. उदाहरण बनना है. बशर्ते तुम मेरा साथ दो. क्योंकि, मेरे साथ कुछ और लोग भी रहते हैं. उनके वास्ते तुमसे कुछ वक्त की गुजारिश है. अभी के लिए बस इतना ही. यह खतो-खितावत यदा-कदा चलती रहेगी.

तुम्हारा, रवि प्रकाश

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