वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध श्रेणी में लाने की दलीलों का केंद्र ने किया विरोध, कहा- वैवाहिक संबंधों पर पड़ेगा असर
Marital molestation: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ किये गये यौन कृत्य को ‘दुष्कर्म’ की श्रेणी में लाकर उसे दंडनीय बना दिया जाता है, तो इसका वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है और इससे विवाह नामक संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है.
Marital Molestation: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में लाये जाने का विरोध करते हुये केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक जवाबी हलफनामा दाखिल किया है. कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर वैवाहिक बलात्कार को अपराध के दायरे में लाने का अनुरोध किया है. कोर्ट में इस जटिल कानूनी प्रश्न को उठाने वाली याचिकाएं लंबित हैं कि क्या पति को दुष्कर्म के अपराध के लिए अभियोजन से छूट मिलनी चाहिए, यदि वह अपनी पत्नी को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है जो नाबालिग नहीं है.
Marital Molestation: धारा 375 के अपवाद खंड के तहत पत्नी के साथ संभोग करना दुष्कर्म नहीं
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के अपवाद खंड के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग करना या यौन कृत्य करना दुष्कर्म नहीं है, यदि पत्नी नाबालिग नहीं है. आईपीसी को अब निष्प्रभावी कर दिया गया है और उसके स्थान पर अब नये कानून भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) को लागू किया गया है. नए कानून के तहत भी, धारा 63 (दुष्कर्म) के अपवाद दो में कहा गया है कि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य करना बलात्कार नहीं है, यदि उसकी पत्नी अठारह वर्ष से कम आयु की न हो.
वैवाहिक संबंध पर जबरदस्त प्रभाव पड़ सकता है
केंद्र ने अपने हलफनामें में कहा, इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को उसकी संवैधानिक वैधता के आधार पर निरस्त करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, यदि किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध या यौन कृत्य को ‘दुष्कर्म’ के रूप में दंडनीय बना दिया जाता है. इसमें कहा गया है, इससे वैवाहिक संबंध पर जबरदस्त प्रभाव पड़ सकता है, और विवाह संस्था में गंभीर गड़बड़ी पैदा हो सकती है. केंद्र ने कहा कि तेजी से बढ़ते और लगातार बदलते सामाजिक एवं पारिवारिक ढांचे में संशोधित प्रावधानों के दुरुपयोग की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि किसी व्यक्ति के लिए यह साबित करना मुश्किल और चुनौतीपूर्ण होगा कि सहमति थी या नहीं.