Sedition Law: देशद्रोह कानून के प्रावधानों पर किया जाएगा पुनर्विचार, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
Sedition Law: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने देशद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच करने के साथ ही पुनर्विचार करने का फैसला किया है. साथ ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती, तब तक देशद्रोह मामले पर सुनवाई नहीं किया जाए.
Sedition Law: केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि उसने देशद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच करने के साथ ही पुनर्विचार करने का फैसला किया है. साथ ही केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि जब तक सरकार इस मामले की जांच नहीं कर लेती, तब तक देशद्रोह मामले पर सुनवाई नहीं किया जाए.
केंद्र ने याचिका खारिज करने का किया था अनुरोध
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने देशद्रोह कानून को सही करार देते हुए इसे बरकरार रखने की बात कही थी. देशद्रोह कानून का बचाव करते हुए केंद्र सरकार ने बीते शनिवार को सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करने का अनुरोध किया था.
Centre tells Supreme Court that it has decided to re-examine and reconsider the provisions of sedition law and requests it not to take up the sedition case till the matter is examined by the government.
— ANI (@ANI) May 9, 2022
तीन जजों की संवैधानिक पीठ कर रही सुनवाई
चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना की अध्यक्षता में तीन जजों की संवैधानिक पीठ देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे हैं. चीफ जस्टिस, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली को ये भी तय करना था कि इस याचिका को पांच या सात जजों की संवैधानिक पीठ के पास रेफर किया जाए या फिर तीन जजों की बेंच ही इस याचिका पर सुनवाई करे.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने क्या कुछ था, यहां जानें…
केंद्र सरकार ने लिखित तौर पर केदार नाथ बनाम स्टेट ऑफ बिहार केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बेंच से कहा था कि देशद्रोह कानून को लेकर पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था, ऐसे में अब इस फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत नहीं है. उल्लेखनीय है कि साल 1962 में केदार नाथ बनाम स्टेट ऑफ बिहार केस में शीर्ष अदालत के पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि देशद्रोह कानून के दुरुपयोग की संभावना के बावजूद इस कानून की उपयोगिता जरूरी है.