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भारत अब मंगल की ओर बढ़ाएगा कदम! इसरो के हौसले बुलंद, जानें क्या बोले वैज्ञानिक

डॉ. टी वी वेंकटेश्वरन ने कहा कि इस सफलता से इसरो के साथ-साथ देशभर के वैज्ञानिकों का भी मनोबल बढ़ेगा. इसके अलावा, यह चंद्रमा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लगातार अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करेगा. यही तकनीक इसरो को भविष्य के मिशन में मंगल ग्रह पर उतरने में भी मदद करेगी.

भारत के महत्वाकांक्षी चंद्रयान-3 मिशन की चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की वैज्ञानिक समुदाय ने सराहना की है. प्रमुख वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने कहा कि यह शानदार उपलब्धि न केवल चंद्र अन्वेषण पर भारत की विशिष्ट छाप को दर्शाती है, बल्कि मानव सहयोग, दृढ़ संकल्प और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी की शक्ति को भी प्रदर्शित करती है. भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (आईआईए), बेंगलुरु के वैज्ञानिक डॉ. क्रिसफिन कार्तिक ने कहा कि चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग अंतरिक्ष यात्रा की दिशा में हमारी सामूहिक प्रगति का प्रमाण है. यह विविधता में एकता की सुंदरता को दर्शाता है क्योंकि हम एक साथ ब्रह्मांड में यात्रा करते हैं.

कार्तिक ने कहा कि धीमे ही सही, लक्ष्य तक पहुंचना यह कहने से बेहतर है कि हमने दौड़ जीत ली. मैं इस पर जोर देता हूं क्योंकि कई लोग इसकी तुलना हमारे मित्र राष्ट्र के कार्यक्रमों से कर रहे हैं. यह कहना अच्छा है कि हम पृथ्वीवासियों ने कई मायनों में ब्रह्मांड में जाने की दौड़ जीती है. गत 14 जुलाई को प्रक्षेपित किए गए चंद्रयान-3 से पहले चंद्रयान-2 सात सितंबर 2019 को चंद्र सतह पर पहुंचने से कुछ देर पहले ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में विफल हो गया था. भारत ने पहला चंद्र मिशन 2008 में भेजा था.

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नयी पीढ़ी के भावी वैज्ञानिक होंगे प्रेरित

शिव नादर इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस, दिल्ली-एनसीआर में प्रोफेसर और ओम्निप्रेजेंट रोबोट टेक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आकाश सिन्हा ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कामयाबी को ‘‘ऐतिहासिक उपलब्धि’’ के रूप में सराहा, जो नयी पीढ़ी के भावी वैज्ञानिकों को प्रेरित करेगी. चंद्रयान-3 के प्रज्ञान रोवर के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने में शामिल रहे सिन्हा ने बताया कि इस शानदार उपलब्धि के साथ, भारत ने चांद के दक्षिणी घ्रुव पर उतरने वाला पहला देश बनकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है. लैंडर (विक्रम) और 26 किलोग्राम के रोवर (प्रज्ञान) वाले लैंडर मॉड्यूल ने इसी तरह के रूसी लैंडर के दुर्घटनाग्रस्त होने के एक हफ्ते से भी कम समय बाद शाम 6.04 बजे चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ की.

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आकाश सिन्हा ने कहा कि इसरो का चंद्रयान मिशन, जो चंद्रमा पर पानी की खोज में अग्रणी था, नए मानक स्थापित करता रहा है. अपने तत्काल वैज्ञानिक प्रभाव से परे, यह मिशन नयी पीढ़ी की युवा प्रतिभाओं को अंतरिक्ष अन्वेषण और विज्ञान के क्षेत्र में शामिल होने के लिए प्रेरित करेगा. उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि मिशन की उपलब्धियां ‘‘बाधाओं को खत्म करेंगी और नए मानक स्थापित करेंगी’’, जिससे भारत चंद्र अनुसंधान में अग्रणी बन जाएगा. उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने प्रज्ञान रोवर के दिशासूचक का सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए इसरो के साथ लगातार काम किया. हम अपने काम और शोध को चंद्रमा तक पहुंचते हुए देखकर खुश हैं.

‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता

खगोलभौतिकीविद् संदीप चक्रवर्ती ने कहा कि चंद्रयान-3 की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता. भारतीय अंतरिक्ष भौतिक विज्ञान केंद्र, कोलकाता के निदेशक ने कहा कि सॉफ्ट लैंडिंग चंद्रमा से भविष्य की गतिविधियों के लिए एक शुरुआत है. यह बाहरी दुनिया का प्रवेश द्वार है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह उपलब्धि भारत को अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में ले जाती है, जहां वह चंद्रमा की वैज्ञानिक और खोजपूर्ण क्षमता पर अपना दावा कर सकता है.

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‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया भारत

भारत चांद की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. इससे पहले केवल तीन देश रूस, अमेरिका और चीन ने यह उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है. चक्रवर्ती ने कहा कि सफल लैंडिंग हर नागरिक में आत्मविश्वास जगाती है. छात्रों की महत्वाकांक्षा बढ़ाती है. भारत की सहमति के बिना चंद्रमा पर कोई भी भविष्य का विनियमन नहीं किया जा सकता है. इसलिए, यह भारतीय संदर्भ में एक आदर्श बदलाव की घटना होगी. इस सफलता ने इसरो और भारतीय शिक्षा जगत द्वारा विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) संचालित प्रणालियों के उल्लेखनीय योगदान को भी रेखांकित किया है.

भविष्य के मिशन में मंगल ग्रह पर उतरने में भी मदद करेगी

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन प्रणालियों ने यान को चंद्रमा की सतह पर सटीकता के साथ पहुंचाने, खतरों का पता लगाने और अंततः सुरक्षित लैंडिंग करने में सक्षम बनाया. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के तहत स्वायत्त संगठन, विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक और एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया की पब्लिक आउटरीच कमेटी के सदस्य डॉ. टी वी वेंकटेश्वरन ने प्रौद्योगिकी के इस एकीकरण की सराहना करते हुए कहा कि यह युवा प्रतिभाओं को प्रेरित करेगा और वैज्ञानिक जिज्ञासा को बढ़ावा देगा. वेंकटेश्वरन ने कहा कि सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग से पता चलता है कि एआई-संचालित एल्गोरिद्म ने अच्छा काम किया है. उसी एल्गोरिद्म को संशोधित किया जा सकता है और अन्य स्वायत्त यानों को नियंत्रित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि इस सफलता से इसरो के साथ-साथ देशभर के वैज्ञानिकों का भी मनोबल बढ़ेगा. इसके अलावा, यह चंद्रमा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लगातार अध्ययन का मार्ग प्रशस्त करेगा. यही तकनीक इसरो को भविष्य के मिशन में मंगल ग्रह पर उतरने में भी मदद करेगी.

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आगे की खोज की दिशा में एक कदम

विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हैं कि यह सफलता कोई समापन बिंदु नहीं है बल्कि आगे की खोज की दिशा में एक कदम है. चक्रवर्ती ने कहा कि चंद्र अन्वेषण नीतियों को आकार देने में देश का प्रभाव बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग महत्वाकांक्षी वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष के प्रति उत्साही खोजकर्ताओं और बड़े पैमाने पर वैश्विक समुदाय के लिए एक स्पष्ट आह्वान के रूप में गूंजती है. वेंकटेश्वरन ने कहा कि आम जनता विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लाभों का आनंद ले सकती है या उन्हें स्कूल में सामान्य विज्ञान पाठ्यक्रम का थोड़ा सा अनुभव हो सकता है. हालांकि, उन्हें इसके निर्माण के पीछे के विज्ञान का अनुभव करने का अवसर शायद ही मिलता है. उन्होंने कहा कि मीडिया के जरिये व्यापक कवरेज और उत्साह के साथ आम जनता की विज्ञान के प्रति दिलचस्पी बढ़ती है. इस तरह का उत्साह स्वाभाविक रूप से युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी की ओर आकर्षित करता है.

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