Project Cheetah: दक्षिण अफ्रीका से बीते कुछ समय में कई चीतों को भारत में पुनर्वास के लिए लाया गया है. सिरुआती दौर में यहां 8 चीतों को बसाने के लिए लाया गया था और उसके कुछ ही दिनों बाद अन्य 12 चीतों को भी देश में लाया गया था. इन सभी चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया है. रिपोर्ट्स की माने तो देश में बाहर से लाकर इन चीतों को बसाने की योजना को झटका लग सकता है. ऐसा भी हो सकता है कि आने वाले समय में दक्षिण अफ्रीका से और चीतों को भारत न लाया जाए. ऐसा होने की आशंका इसलिए जताई जा रही है क्योंकि, एनिमल राइट्स ग्रुप ने इस योजना का विरोध कर दिया है. मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो दक्षिण अफ्रीका में एनिमल राइट्स ग्रुप ने अपनी सरकार के मछली पालन, जंगल और पर्यावरण विभाग से भारत में चीतों के आगे ट्रांसफर करने से रोकने के लिए अपील कर दी है.
दक्षिण अफ्रीका की एक NGO ने इन चीतों को भारत भेजने पर रोक लगाने के लिए अपनी सरकार को एक चिट्ठी भी लिखी है. इस चिट्ठि में EMS फाउंडेशन ने आने वाले 10 वर्षों के दौरान दक्षिण अफ्रीका से 120 जंगली चीतों को हटाने और उन्हें भारत ट्रांसफर करने की प्रस्तावित परियोजना के बारे में अपनी चिंताओं का भी जिक्र किया है. इन चीतों को भारत भेजने पर बात करते हुए EMS फाउंडेशन ने बताया है कि आने वाले समय के लिए बिना ठोस वैज्ञानिक जानकारी के ऐसा करना सही नहीं है.
Also Read: Coronavirus New Variant: भारत में तेजी से फैल रहा कोरोना का नया वेरिएंट XBB1.16, कर्नाटक में सबसे अधिक मामले
दक्षिण अफ्रीका से इन चीतों को भारत भेजे जाने का विरोध करते हुए EMS फाउंडेशन ने अनुरोध किया कि दक्षिण अफ्रीका की मंत्रालय इस मुद्दे पर एहतियाती दृष्टिकोण अपनाएं और इस योजना पर तब तक के लिए रोक लगा दिया जाए जब तक इन चीतों के ट्रांसफर से जुड़ी अधिक मजबूत जानकरी प्राप्त न हो जाए. मुद्दे पर बात करते हुए NGO ने बताया कि यह दक्षिण अफ्रिका में चीतों की आबादी और व्यक्तिगत जानवरों के कल्याण का मुद्दा है. इस मामले में लापरवाही भी नहीं बरती जा सकती. EMS फाउंडेशन सभी जानवरों के हित, जैव विविधता के बचाव और प्राकृतिक संसाधनों में स्थिरता से जुड़े मुद्दे उठाता रहता है.
चीता मेटापोपुलेशन प्रोजेक्ट के प्रबंधक विन्सेंट वैन डेर मेरवे ने मुद्दे पर बात करते हुए तर्क दिया कि- कंजर्वेशन एक वैश्विक कोशिश है और दक्षिण अफ्रीका ने जंगली चीता के प्रजनन से एनवायरनमेंटल, सामाजिक और धन संबंधी फायदा उठाया हैं. आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि यह मेरा मानना है कि दक्षिण अफ्रीका का कर्तव्यपरायण जिम्मेदारी है कि वह इस प्राकृतिक संपदा वेल्थ को अन्य देशों के साथ भी शेयर करे.