छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में मिली जीत के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं. अब लोकसभा चुनाव (Lok sabha Election 2024) में पार्टी पूरा दमखम लगाकर मैदान में उतरने जा रही है ताकि पिछले लोकसभा चुनाव में जिन सीटों पर उसका प्रदर्शन खराब रहा, उसे इस बार हासिल किया जा सके. ऐसी ही एक सीट बस्तर है जो बीजेपी का गढ़ मानी जाती है लेकिन पिछली बार इस सीट को कांग्रेस ने अपने पाले में ले लाया था. इस सीट से बीजेपी लगातार 6 बार से जीतती आ रही थी, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार दीपक बैज (Deepak Baij) ने यहां से जीत का परचम लहराया.
दीपक बैज की बात करें तो उन्होंने बस्तर जिले के चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र (अनुसूचित जनजाति आरक्षित) से दो बार जीत दर्ज की और विधायक बनें. 2019 के संसदीय चुनावों में बस्तर लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने विधायक पद छोड़ दिया था. बैज पहली बार 2013 में और फिर 2018 में लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए थे. इस बार विधानसभा चुनाव में वे छत्तीसगढ़ के चित्रकोट विधानसभा सीट से मैदान में उतरे थे लेकिन इस बार उन्हें बीजेपी के विनायक गोयल के हाथों हार का सामना करना पड़ा.
मोदी लहर को बस्तर में किया था फेल
लोकसभा चुनाव 2019 में देश और राज्य में ‘मोदी लहर’ चल रही थी. इस बीच संसदीय चुनाव में जीत दर्ज करके बैज सुर्खियों में आ गये थे. छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटों में से जिन दो सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी उसमें बस्तर लोकसभा सीट भी थी. लेकिन इस बार कांग्रेस को मिली विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हैं. इस विधानसभा चुना में बस्तर संभाग की 12 सीट में से कांग्रेस को 8 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है. 8 में से 7 आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में कांग्रेस को बड़े मार्जिन से हार का सामना करना पड़ा है जिसने पार्टी की चिंता ज्यादा बढ़ा दी है. खासकर पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज को चित्रकोट विधानसभा से करारी हार का सामना करना पड़ा है.
जानकारों की मानें तो बस्तर की इन सीटों में मिली हार की वजह आदिवासियों की कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से नाराजगी है. लंबे समय से स्थानीय भर्ती में आदिवासी युवाओं को प्राथमिकता देने की मांग की जा रही थी. सर्व आदिवासी समाज कांग्रेस सरकार के खिलाफ लगातार धरना प्रदर्शन करता नजर आ रहा था.
बस्तर की खास बातें जानें
बस्तर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र छत्तीसगढ़ 11 संसदीय क्षेत्रों में से एक है जिस पर बार कांग्रेस और बीजेपी पूरा दम लगा रही है. इस संसदीय क्षेत्र में आठ विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है. इस वनीय क्षेत्र का जिला मुख्यालय जगदलपुर है. यहां के इतिहास पर नजर डालें तो 14वीं सदी में यहां पर काकतीय वंश का राज था. इस क्षेत्र की खास बात यह है कि यहां अंग्रेज कभी अपना राज स्थापित नहीं कर पाए. इस क्षेत्र में गोंड एवं अन्य आदिवासी जातियां निवास करती है. इंद्रावती के मुहाने पर बसा यह इलाका वनीय क्षेत्र है. यहां पर टीक तथा साल के पेड़ बड़ी संख्या में पाये जाते हैं. इस इलाके की खूबसूरती यहां के झरने और बढ़ाते हैं. यहां खनिज पदार्थों में लोहा और अभ्रक सबसे ज्यादा पाये जाते हैं.