हसदेव जंगल बचाने को लेकर क्यों तेज हो रहा है आंदोलन, कट जायेंगे 2 लाख से ज्यादा पेड़ ?
छत्तीसगढ़ का हसदेव जंगल चर्चा में है ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों से भी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इन तस्वीरों में लिखा है HasdeoBachao आखिर इसे बचाने के लिए क्यों इतना आंदोलन हो रहा है. छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार ने 6 अप्रैल 2022 को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है.
छत्तीसगढ़ का हसदेव जंगल चर्चा में है, ना सिर्फ देश में बल्कि विदेशों से भी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इन तस्वीरों में लिखा है HasdeoBachao आखिर इसे बचाने के लिए क्यों आंदोलन हो रहा है ? आइये इसे विस्तार से समझते हैं
छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार का फैसला जिसमें 6 अप्रैल 2022 को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इसके तहत, हसदेव क्षेत्र में स्थित परसा कोल ब्लॉक परसा ईस्ट और केते बासन कोल ब्लॉक का विस्तार होगा. इस विस्तार का सीधा अर्थ है जंगलों की कटाई. सरकारी आंकड़े के अनुसार लगभग 95 हजार पेड़ और विरोध कर रहे लोगों के अनुसार लगभग 2 लाख पेड़ों के कटाई की तैयारी है. . कोई पेड़ से लिपटकर ‘चिपको आंदोलन’ के तर्ज पर पेड़ों को बचाने में लगा है तो कोई लंबे समय से विरोध प्रदर्शन कर इसका विरोध कर रहा है. छत्तीसगढ़ में घने जंगलों वाले इलाके में कोयले की खदानों का विस्तार किए जाने की वजह से स्थानीय लोग विरोध पर उतर आए हैं.
छत्तीसगढ़ के उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा और सूरजपुर जिले के बीच में स्थित है. लगभग 1,70,000 हेक्टेयर में फैला यह जंगल अपनी जैव विविधता के लिए जाना जाता है. वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, हसदेव अरण्य गोंड, लोहार और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है. यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं. इनमें से 18 वनस्पतियों खतरे में है.
हसदेव का बचाने का प्रयास नया नहीं है पिछले 10 सालों में हसदेव के अलग-अलग इलाकों में जंगल काटने का विरोध किया जा रहा है. विरोध के बावजूद कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिए जाने से यह आंदोलन तेज हो गया है.
कोल ब्लॉक के विस्तार की वजह से जंगलों को काटा जाना है. सरकारी अनुमान के मुताबिक, लगभग 95 हजार पेड़ काटेगें . वहीं स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हसदेव इलाके में कोल ब्लॉक के विस्तार के लिए 2 लाख से साढ़े चार लाख पेड़ तक काटे जा सकते हैं.
छत्तीसगढ़ और सूरजपुर जिले में परसा कोयला खदान का इलाका 1252.447 हेक्टेयर का है. इसमें से 841.538 हेक्टेयर जंगल में है. यह खदान राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को आवंटित है. राजस्थान की सरकार ने अडानी ग्रुप से करार करते हुए खदान का काम उसके हवाले कर दिया है. मतलब इस जगह अडाणी ग्रुप खनन करेगा.
खदान के विस्तार के चलते लगभग आधा दर्जन गांव सीधे तौर पर और डेढ़ दर्जन गांव आंशिक तौर पर प्रभावित होंगे. लगभग 10 हजार आदिवासियों को अपना घर जाने का डर सता रहा है. दिसंबर 2021 में पदयात्रा और विरोध प्रदर्शन हुआ नतीजा अप्रैल में आवंटन को मंजूरी दे दी गयी .
साल 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश के केवल 1 फीसदी हाथी ही छत्तीसगढ़ में हैं नई खदानों को मंजूरी से हाथियों के रहने की जगह खत्म हो जाएगी. जंगली जानवर और इंसानों के बीच संघर्ष बढ़ेगा हसदेव अरण्य क्षेत्र में पहले से ही कोयले की 23 खदाने मौजूद हैं. साल 2009 में केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इसे ‘नो-गो जोन’ की कैटगरी में डाल दिया था. इसके बावजूद, कई माइनिंग प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई.
आदिवासियों के मुताबिक, पंचायत एक्सटेंशन ऑन शेड्यूल्ड एरिया (पेसा) कानून 1996 के तहत बिना उनकी मर्जी के उनकी जमीन पर खनन नहीं किया जा सकता. पेसा कानून के मुताबिक, खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी ज़रूरी है. आरोप है कि इस प्रोजेक्ट के लिए जो मंजूरी ली ही नहीं गयी जो कागज दिखाया जा रहा है वो फर्जी है. आदिवासियों का कहना है 700 लोगों को उनके घरों से विस्थापित किया जाएगा और 840 हेक्टेयर घना जंगल नष्ट होगा.
इसे बचाने के लिए आंदोलन तेज है, जल, जंगल और जमीन बचाने वाली आदिवासी समाज की इस लडाई में कई लोग शामिल हो रहे हैं बिलासपुर में अनिश्चितकालीन धरना और रायपुर में पैदल मार्च की तैयारी है. प्रभावित क्षेत्र में भी ग्रामीण 20 मई को बड़े आंदोलन कर सकते हैं. एक स्वस्थ पेड़ हर दिन लगभग 230 लीटर ऑक्सीजन छोड़ता है, जिससे सात लोगों को ऑक्सीजन मिलता है.
आज से 12 हज़ार साल पहले खेती करना शुरू किया, तब से हम ने दुनिया के कुल क़रीब छह ख़रब पेड़ों में से आधे को काट डाला गया. दुनिया के जंगलों की तादाद 32 प्रतिशत घट गई है और हम इसी दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं जब सांस लेना और मुश्किल होगा.