छत्तीसगढ़: DRG के वो जवान जिनसे थर-थर कांपते हैं नक्सली, जानिए कैसे कर रहे नक्सलवाद का सफाया
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलसी हमले में 10 DRG के जवान शहीद हो गए हैं. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ लगातार चालए जा रहे अभियान डीआरजी के सबसे यहां भूमिका है. यही वजह है आज यहां नक्सलवाद खात्मे कीओर है.
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलसी हमले में 10 DRG के जवान शहीद हो गए हैं. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ लगातार चालए जा रहे अभियान डीआरजी के सबसे यहां भूमिका है. यही वजह है आज यहां नक्सलवाद खात्मे की ओर है, यहां नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए स्थानीय आदिवासी लड़कों की भर्ती कर डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड का गठन किया गया था, जो बखूबी अपने काम को अंजाम दे रहा है.
2008 में हुआ था DRG का गठनवर्ष 2008 में हुई डीआरजी के गठन की शुरुआत हुई. करीब 40 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में फैले बस्तर क्षेत्र के 7 जिलों में नक्सलियों से मुकाबले के लिए डीआरजी के गठन की शुरुआत 2008 में हुई थी. सबसे पहले कांकेर और नारायणपुर जिलों में नक्सल विरोधी अभियान में इसे शामिल किया गया था. वर्ष 2013 में बीजापुर और बस्तर में इसका गठन किया गया. 2014 में सुकमा और कोंडागांव के बाद 2015 में दंतेवाड़ा में यह अस्तित्व में आया.
डीआरजी में स्थानीय युवकों को शामिल किया जाता है, जिन्हें इलाके की पूरी जानकारी होती है. कई बार आत्मसमर्पण कर चुके नक्सली भी इसका हिस्सा बनते हैं. स्थनीय होने के कारण वे यहां की संस्कृति और भाषा से परिचित होते हैं. =आदिवासियों से जुड़ाव होने के चलते वे नक्सलियों से मुकाबले के लिए उनका सहयोग आसानी से हासिल कर लेते हैं. सबसे बड़ी बात यह कि नक्सलियों के खून-खराबे से पीड़ित जवानों को उनसे लड़ने के लिए किसी अतिरिक्त प्रेरणा की जरूरत नहीं होती.
डीआरजी ने नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजामअपने गठन के बाद से डीआरजी नक्सलियों के खिलाफ कई अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुका है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे नक्सलियों की गुरिल्ला लड़ाई का उन्हीं की भाषा में जवाब देते हैं. उन्हें जंगल के रास्तों का पता होता है, उन्हें नक्सलियों की आवाजाही, आदतें और काम करने के तरीकों की भी जानकारी होती है. इलाके में नक्सलियों की मदद करने वालों के बारे में भी उन्हें पता होता है. इसकी मदद से वे नक्सलियों के खिलाफ अभियान की योजना बनाते हैं जो अक्सर सफल होते हैं.
DRG के जवान आधुनिक शैली के साथ गोरिल्ला वार में माहिरडीआरजी के जवानों को लड़ाई की आधुनिक शैली के साथ जंगलों में मुठभेड़ की ट्रेनिंग भी दी जाती है. इसके लिए उन्हें दूसरे राज्यों में सेना के कैंप में भेजा जाता है. =सुरक्षाबलों के विपरीत इनके काम करने का तरीका भी अलग होता है. डीआरजी के जवान अक्सर छोटे समूहों में जंगलों में प्रवेश करते हैं. इससे गोपनीयता बनी रहती है और जान-माल की हानि की भी कम आशंका होती है.