मेघालय के ‘चाणक्य’ के नाम से फेमस हैं मुख्यमंत्री कोनराड संगमा, जानें उनसे जुड़ी हर डीटेल
Conrad Sangma: अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़े-लिखे कोनराड संगमा ने 2004 में पहला चुनाव लड़ा था जिसमें उनकी हार हुई थी. हालांकि, उसके बाद 45 वर्षीय कोनराड संगमा एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे और हर चुनाव के साथ मजबूत होते गए.
Conrad Sangma: मेघालय के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने दूसरे कार्यकाल के लिए शपथग्रहण करने वाले कोनराड के. संगमा ने अपने पिता पूर्णो अगितोक संगमा की छाया से उभरकर स्वयं को एक कुशल नेता के रूप में स्थापित कर लिया है. विधानसभा चुनाव की घोषणा से कुछ समय पहले, कोनराड को दो बातों का एहसास हो गया था – पहला तो यह कि पिछले चुनाव में उनसे अधिक सीटें लाने वाली कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के अप्रत्याशित रूप से दलबदल करके तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो जाने के चलते और कमजोर पड़ गई है. दूसरा, मुकुल संगमा के व्यक्तिगत करिश्मे के बावजूद पर्वतीय राज्य मेघालय के लोग तृणमूल कांग्रेस जैसी नयी पार्टियों के साथ ही राज्य के बाहर से आने वाले एवं चुनाव प्रचार करने वाले उन नेताओं को लेकर संशय में रहे, जिन्हें वे अच्छी तरह से नहीं जानते.
विभिन्न आरोपों के बावजूद सत्ता बनाए रखने की उम्मीद और रणनीति
पार्टी के सहयोगियों का कहना है कि इससे उन्हें सत्ता विरोधी लहर और उनके विरोधियों द्वारा उनकी सरकार के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के विभिन्न आरोपों के बावजूद सत्ता बनाए रखने की उम्मीद और रणनीति मिली. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन से किनारा कर लिया और उनकी पार्टी अकेले ही चुनावी रण में उतरी. मेघालय में भाजपा को भी लोगों द्वारा मोटे तौर पर बाहरी लोगों की पार्टी के रूप में देखा जाता है, भले ही संगमा की पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा रही.
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संगमा की गणना सही साबित
कोनराड संगमा की गणना सही साबित हुई. अपनी पार्टी की स्थानीय जड़ों पर जोर देने वाले प्रचार अभियान पर ध्यान केंद्रित करके, वह पिछले चुनाव में 19 सीटों के मुकाबले इस बार 26 सीटें जीतने में कामयाब रहे. साथ ही उनकी पार्टी की वोट हिस्सेदारी करीब 21 प्रतिशत से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गई. हालांकि, जब उन्हें लगा कि स्थिरतापूर्ण बहुमत के लिए जरूरी 31 का जादुई आंकड़ा उनके पास नहीं है, तो उन्होंने अन्य दलों, विशेष रूप से भाजपा की ओर हाथ बढ़ाया. संगमा को भाजपा से केवल दो विधायकों के समर्थन नहीं बल्कि केंद्र सरकार से सहायता की भी उम्मीद है.
विधानसभा में तीन चौथाई समर्थन जुटाया
कोनराड संगमा एक ऐसा गठबंधन बनाने में सफल रहे जिसमें यूडीपी और एचएसपीडीपी के साथ ही निर्दलीय भी शामिल हैं. उन्होंने इस तरह से विधानसभा में तीन चौथाई समर्थन जुटा लिया. इसमें उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मुकुल संगमा को छोड़कर हर कोई शामिल है. मुकुल संगमा राज्य में टीएमसी के प्रमुख हैं. ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी केवल पांच सीटें प्राप्त करने के बावजूद लगभग 14 प्रतिशत वोट हासिल करने में कामयाब रही और कांग्रेस ने 13 प्रतिशत से अधिक वोट प्रतिशत और पांच सीटें जीती. यदि मुकुल संगमा ने कांग्रेस नहीं छोड़ी होती तो कहानी कुछ और हो सकती थी.
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शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे संगमा
अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़े-लिखे कोनराड संगमा ने 2004 में पहला चुनाव लड़ा था जिसमें उनकी हार हुई थी. हालांकि, उसके बाद 45 वर्षीय कोनराड संगमा एक शक्तिशाली नेता के रूप में उभरे और हर चुनाव के साथ मजबूत होते गए. संगमा की पार्टी एनपीपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से दो कम 19 सीटें जीतीं थीं. कांग्रेस के सबसे अधिक विधायक जीते थे. लेकिन, इसके बावजूद कोनराड संगमा ने तब भी भाजपा सहित कई अन्य दलों के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली थी.