भारतीय सीमा के बेहद करीब चीन ने बुलेट ट्रेन का परिचालन शुरू किया है. तिब्बत के हिमालयी क्षेत्रों में अब चीन की बुलेट ट्रेन रफ्तार पकड़ेगी. तिब्बत के सुदूर इलाकों में यह बुलेट ट्रेन चलेगी. इस ट्रेन के परिचालन से चीन इन इलाकों में अपनी धमक और मजबूत करने की कोशिश में है.
चीन के बुलेट ट्रेन से तिब्बत की प्रांतीय राजधानी ल्हासा (Lhasa) और न्यिंगची (Nyingchi) जुड़ गये हैं. भारत के अरुणाचल प्रदेश से यह बहुत नजदीक है. 435.5 किमी लंबे सेक्शन ल्हासा-न्यिंगची का उद्घाटन चीन की सत्तारूढ़ पार्टी कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के शताब्दी समारोह से छह दिन पहले किया गया है. चीन की सत्तारूढ़ पार्टी का शताब्दी समारोह 1 जुलाई को है.
आज ( 25 जुलाई ) इसका परिचालन शुरू हो गया है. सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने इस संबंध में जानकारी दी है कि ल्हासा से न्यिंगची के बीच फूक्सिंग बुलेट ट्रेन का परिचालन हिमालय के पठारी क्षेत्रों में आज शुरू हो गया है.
यह तिब्बत में चीन की दूसरी परियोजना है इससे पहले किंगहई-तिब्बत रेलवे का परिचालन हो रहा है. नयी रेलवे लाइन किंगहई-तिब्बत पठार के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र से होकर गुजरेगी इसकी सबसे खास बात यह है कि यह क्षेत्र दुनिया के सबसे सक्रिय भौगोलिक क्षेत्रों में एक माना जाता है.
इस ट्रेन की खासियत का जिक्र करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने बताया है कि सिचुआन-तिब्बत रेल मार्ग सिचुआन प्रांत की राजधानी चेंगदू से शुरू होकर तिब्बत में दाखिल होगा और तिब्बत से होते हुए ये रेलमार्ग चमदो तक जाएगा. पहले जो दूरी यानि चेंकदू से ल्हासा तक की दूरी पहले 48 घंटे में पूरी होती थी अब इस हाई स्पीड बुलेट ट्रेन के आने से सिर्फ 13 घंटे में पूरी हो जायेगी
चीन तिब्बत में अपनी पकड़ और मजबूत कर रहा है उसकी नजर भारत के अरुणचाल प्रदेश पर भी है.भारत सरकार ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का महत्वपूर्ण हिस्सा है. चीन तिब्बत के इन इलाकों पर अपनी पकड़ मजबूत करके इस तरफ भी देख रहा है.
चीन ने अरूणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताया था जिस पर भारत ने कड़ा विरोध दर्ज कराया था. भारत-चीन सीमा विवाद में 3 हजार 488 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल शामिल है, जिसे हम आम भाषा में एलएसी कहते हैं. चीन रणनीतिक दौर पर इन रेल लाइंस को मजबूत कर रहा है.
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अगर भारत और चीन के बीच युद्ध जैसी स्थिति होती है तो इन रेल लाइंस से चीन को मदद मिलेगी. शिंहुआ यूनिवर्सिटी के नेशनल स्ट्रेटजी इंस्टीट्यूट के रिसर्च विभाग के निदेशक कियान फेंक ने भी इस बात की पुष्टि की है कि यह चीन की रणनीति का अहम हिस्सा है.