नई दिल्ली : महंगाई और बढ़ती ब्याज दरों की वजह से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. इस बीच, खबर यह है कि महंगाई की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था और उसका बैंकिंग सिस्टम भी धराशायी होते नजर आ रहे हैं. आलम यह कि चीन के बैंकों से जमाकर्ता अपने पैसों की निकासी कर रहे हैं. हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था को दुनिया के विकास के इंजन के तौर पर देखा जाता है. लेकिन, धराशायी होती इसकी अर्थव्यवस्था के बीच सवाल यह भी पैदा होने लगे हैं कि नए दौर की इस मंदी में भारत खुद को कैसे संभालेगा. आइए, जानते हैं…
जब वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो सवाल यह भी पैदा होता कि इसके लिए चीन कितना महत्व रखता है या कितना महत्वपूर्ण है. एक रिपोर्ट की मानें, तो चीन ने वर्ष 2001 में जब विश्व व्यापार संगठन (WTO) का हाथ पकड़ा, उसके बाद से दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले उसकी अर्थव्यवस्था में बेतहाशा बढ़ोतरी दर्ज की गई. इसका नतीजा यह निकला अगले कुछ सालों में ही चीन ने अमेरिका को पछाड़ते हुए वैश्विक कारोबारी व्यवस्था के केंद्र में आ गया. आलम यह कि एप्पल और टेस्ला जैसी वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन में बड़े पैमाने पर अपना उत्पादन शुरू कर दिया. इसका परिणाम यह निकला कि 2001 के दौरान वैश्विक निर्यात में जहां उसकी 4 फीसदी की हिस्सेदारी थी, वह 2021 में बढ़कर 15 फीसदी तक पहुंच गई. वहीं, इसी समयांतराल में अमेरिका के शेयर बाजार 12 फीसदी से गिरकर 8 फीसदी पर पहुंच गया. इतना ही नहीं, चीन ने क्रयशक्ति के मामले में भी अमेरिका को पछाड़ते हुए वैश्विक अर्थव्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभाने लगा.
चौंकाने वाली बात यह है कि कोरोना महामारी के दौरान भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में चीन का कारोबार तेजी से बढ़ता दिखाई दिया. इसी का नतीजा रहा कि एक साल में वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की आपूर्ति शृंखला के मामले में सबसे टॉप पर पहुंच गया. महामारी के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था में डिजिटाइजेशन को अपनाने की वजह से इसके इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की मांग में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई. यह बात दीगर है कि वायरस के संक्रमण के प्रसार की रोकथाम के लिए दुनिया में लागू लॉकडाउन और सामानों की आपूर्ति बाधित होने से चीन से आपूर्ति होने वाले इलेक्टॉनिक सामानों में काफी कमी दर्ज की गई.
दुनिया भर में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ने के बाद चीन की शी जिनपिंग की सरकार ने जीरो कोविड-19 नीति को अख्तियार किया, जिसकी वजह से बीजिंग और शंघाई जैसे प्रमुख शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया. इसका दुष्परिणाम यह निकला की चीन की अर्थव्यवस्था में वित्तीय वर्ष 2022-23 में गिरावट आने की आशंका जाहिर की जा रही है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने चीन के 2022 जीडीपी विकास अनुमान को अप्रैल-2022 के मुकाबले 4.4 फीसदी से घटाकर जुलाई-2022 में 3.3 फीसदी कर दिया है. आईएमएफ ने चीन के 2023 जीडीपी विकास अनुमान को 5.1 फीसदी से घटाकर 4.6% कर दिया है. इसमें कहा गया है कि लॉकडाउन और गहराते आर्थिक संकट ने विकास को 1.1 फीसदी तक कमजोर कर दिया है.
आर्थिक विशेषज्ञों की मानें, तो चीन का आर्थिक संकट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अवसर और चुनौतियां पेश कर रहा है. पिछले एक साल के दौरान भारत का चीन के साथ व्यापार खासकर आयात के क्षेत्र में बढ़ा है. वर्ष 2013-14 में भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी 10.7 फीसदी था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 16.6 फीसदी तक पहुंच गई. इसी समीक्षाधीन अवधि में भारत की ओर से चीन में किए गए निर्यात में 6.4 फीसदी से 7.2 फीसदी तक बढ़ोतरी दर्ज की गई. मुख्य रूप से भारत केमिकल्स और खनिज पदार्थों का निर्यात करता है, जबकि चीन से इलेक्ट्रिकल मशीन, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि का आयात करता है. अब चीन की अर्थव्यवस्था में पैदा हुआ संकट भारत के कारोबारी क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है.
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भारत की ओर से किया जाने वाला निर्यात चीन के लिए मायने नहीं रखता, लेकिन भारत में होने वाला आयात उसकी ताकत और विकास के लिए महत्वपूर्ण जरूर साबित हो सकता है. ऐसे में, भारत चीन के बजाय दूसरे देशों से आयात करके पेश होने वाली चुनौती को अवसर के रूप में तब्दील कर सकता है. इसके अतिरिक्त भारत स्थानीय स्तर पर उन सामानों का उत्पादन करके अपनी चुनौतियों को कम कर सकता है. ऐसा करने पर नौकरी की तलाश करने वाले युवाओं को रोजगार मिलेगा और यदि भारत के वैश्विक निवेश को आकर्षित करने में सफल हो जाता है, तो यह उसके लिए जीत के समान होगा.