-सीमा जावेद-
जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी (Intergovernmental Panel on Climate Change) की नवीनतम रिपोर्ट में यह बताया गया है कि जलवायु के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील कौन हैं, यह साबित करने के लिए देशों में होड़ लग गयी है. इसकी वजह यह है कि जो देश जलवायु के प्रति संवेदनशील के रूप में अपनी पहचान बना लेंगे उन्हें क्लाइमेट फाइनेंस और योजना अनुकूलन (एडेप्टेशन) रणनीतियों तक पहुंचने में मदद मिल सकती है, खासकर यह फायदा कमजोर देशों को मिलेगा.
पिछले साल Cop27 जलवायु सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी थी कि जलवायु पीड़ितों के लिए एक नया कोष उन देशों को लक्षित करके बनाया जाना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन के लिए विशेष रूप से कमजोर हैं. इसके लिए एक लॉस एंड डैमेज कमेटी गठित हुई थी. इस कमेटी में जलवायु पीड़ितों के लिए एक कोष स्थापित करने पर काम शुरू करने की योजना बनी थी. इस कमेटी में छह एशियाई देशों को प्रतिनिधित्व मिलेगा जो यूएन के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के प्रति सबसे संवेदनशील देशों को चिन्हित करते हुए उन तक क्लाइमेट फाइनेंस पहुंचाने में मदद करेंगे. इसका उद्देश्य है सबसे कमजोर वर्ग को इस फंड का लाभ दिलाना. Cop27 जलवायु वार्ता में सभी देश कमजोर देशों का समर्थन करने के लिए एक समर्पित कोष स्थापित करने पर सहमत हुए थे.
इस योजना पर काम करने के लिए संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित होने वाली आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ता के अगले दौर Cop28 से पहले 24 सदस्यीय लॉस एंड डैमेज समिति को संयुक्त राष्ट्र को अपनी सिफारिशें देनी हैं. ऐसे में अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और लघु द्विपीय देशों सहित विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील के रूप में परिभाषित किए जाने के लिए कड़ा संघर्ष किया है. तंजानिया और तिमोर-लेस्ते ने कहा कि दुनिया के सबसे गरीब देशों, जिन्हें सबसे कम विकसित देशों (LDCs) के रूप में जाना जाता है, उन्हें प्रभावित समुदायों की सूची में जोड़ा जाये और उन्हें जलवायु के लिए विशेष रूप से संवेदनशील बनने में मदद मुहैया करायी जाये. मेक्सिको और चिली लैटिन अमेरिका को उन क्षेत्रों की सूची में जोड़ना चाहते थे जो विशेष रूप से कमजोर हैं, जबकि भारत एशिया को शामिल करना चाहता था.
(लेखिका पर्यावरणविद् हैं)