Climate Change:फसलों की 109 किस्में रविवार को प्रधानमंत्री करेंगे जारी
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में उच्च उपज देने वाली, जलवायु अनुकूलन और जैव-सशक्त 61 फसलों की 109 किस्मों को रविवार को प्रधानमंत्री करेंगे जारी. इसमें 34 खेती की फसलें और 27 बागवानी फसलें शामिल होंगी.
मौसम में बदलाव का असर कृषि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. क्लाइमेट चेंज का कृषि पर पड़ने वाले असर का पता लगाने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च(आईसीएआर) नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट शुरू किया गया. प्रोजेक्ट का मकसद क्लाइमेट चेंज के कारण फसल, पशु, हॉर्टिकल्चर और मत्स्य पालन पर पड़ने वाले असर का आकलन करना था. इस कड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 अगस्त को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में उच्च उपज देने वाली, जलवायु अनुकूलन और जैव-सशक्त फसलों की 109 किस्मों को जारी करेंगे.
खेती और बागवानी की फसलें शामिल
प्रधानमंत्री 61 फसलों की 109 किस्मों को जारी करेंगे, जिनमें 34 खेती की फसलें और 27 बागवानी फसलें शामिल होंगी. खेती की फसलों में मोटे अनाज, चारा फसलें, तिलहन, दलहन, गन्ना, कपास, रेशा और अन्य संभावित फसलों सहित विभिन्न अनाजों के बीज जारी किए जायेंगे. बागवानी फसलों में फलों, सब्जियों, बागान फसलों, कंद, मसालों, फूलों और औषधीय फसलों की विभिन्न किस्में भी जारी होगी.
क्यों है ऐसे फसलों के बीज की जरूरत
हाल में लोकसभा में सरकार की ओर से बताया गया था कि क्लाइमेट चेंज का का पता लगाकर आपदा जैसे बाढ़, सुखाड़, भीषण गर्मी वाले इलाके में कृषि को क्लाइमेट चेंज के असर से बचने के लिए नयी तकनीक और ऐसे किस्म के बीज के खाेज पर ध्यान दिया गया. समस्या से निपटने के लिए पिछले 10 साल में आईसीएआर ने कुल 2593 किस्मों का इजाद किया, जिसमें 2177 किस्म दो तरह के मौसम के खतरे से निपटने में सक्षम पाए गए. इसके अलावा कृषि पर क्लाइमेट चेंज के प्रतिकूल प्रभाव का असर जाने के लिए देश के कृषि प्रधान 651 जिलों में इंटर गवर्नमेंट पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज के प्रोटोकॉल के अनुसार जिला स्तर पर समीक्षा की गयी. इस समीक्षा के आधार पर देश के 109 जिलों को मौसम के लिहाज से बेहद संवेदनशील, 201 को संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है. देश के 651 जिलों के लिए सूखा, बाढ़, बेमौसम बरसात, आंधी-तूफान, गर्मी, ठंड से निपटने के लिए डिस्ट्रिक्ट एग्रीकल्चर कंटीजेंसी प्लान तैयार किया गया है और क्षेत्र के हिसाब से इन मौसम से निपटने वाले फसलों की खेती करने की सिफारिश की गयी है.