कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका… भारत के इन तीन स्तंभों में सबसे ताकतवर कौन है. यह सवाल आज इसलिए खास हो गया है क्योंकि कांग्रेस का आरोप है कि राज्यसभा के सभापति और भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका के एक फैसले पर अभूतपूर्ण टिपण्णी कर दी. दरअसल, आज यानी गुरुवार को कांग्रेस ने कहा कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का केशवानंद भारती मामले से जुड़े फैसले को गलत कहना न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला है.
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा न्यायपालिका पर हमला: कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश एक ट्वीट कर कहा कि, बतौर सांसद बीते 18 सालों से उन्होंने किसी को उच्चतम न्यायालय के केशवानंद भारती मामले के फैसले की आलोचना करते नहीं सुना. वरिष्ठ अधिवक्ता और दिवंगत बीजेपी नेता अरुण जेटली ने भी इस फैसले की सराहना करते हुए इसे मील का पत्थर बताया था. ऐसे में अब राज्यसभा के सभापति फैसले को गलत बता रहे हैं. जयराम रमेश ने इसे न्यायपालिका पर अभूतपूर्व हमला करार दिया.
संवैधानिक संस्थानों पर हमला- रमेश: यहीं नहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि एक के एक बाद संवैधानिक संस्थानों पर हमला किया जाना अप्रत्याशित है. उन्होंने कहा कि मतों की भिन्नता अलग बात है, लेकिन उपराष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के साथ टकराव को एक अलग ही स्तर पर ले गए हैं.
संसद या संविधान कौन सर्वोच्च: इसी कड़ी में पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम का कहना है कि राज्यसभा के सभापति जब यह कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है तो वह गलत हैं. सिब्बल ने कहा कि सर्वोच्च संविधान है. उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती मामले को लेकर बुनियाद थी कि संविधान के आधारभूत सिद्धांतों पर बहुसंख्यकवाद आधारित हमले को रोका जा सके. उन्होंने कहा कि विधेयक को निरस्त करने का मतलब यह नहीं है कि आधारभूत सिद्धांत ही गलत है. चिदंबरम ने यह भी कहा कि राज्यसभा के सभापति के विचार सुनने के बाद हर संविधान प्रेमी नागरिक को खतरों को लेकर सावधान हो जाने की जरूरत है.
संविधान सबसे बड़ा: इसी कड़ी में कांग्रेस के मीडिया एवं प्रचार प्रमुख पवन खेड़ा ने एक प्रेस कॉफ्रेंस में धनखड़ पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राज्यसभा के सभापति को ब्रिटिश संसद नहीं, बल्कि भारतीय पुस्तकों की तरफ लौटने की जरूरत है. खेड़ा ने कहा कि भारत का संविधान सर्वोच्च है, विधायिका नहीं. उन्होंने कहा कि संविधान सबसे बड़ा है और हमें इसी सिद्धांत का अनुसरण करने की जरूरत है. गौरतलब है कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा था कि संसद के बनाए कानून को किसी और संस्था द्वारा अमान्य किया जाना प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है.
क्या है पूरा मामला: गौरतलब है कि उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ राजस्थान विधानसभा में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. संवैधानिक संस्थाओं के अपनी सीमाओं में रहकर संचालन करने की बात करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा था, संविधान में संशोधन का संसद का अधिकार क्या किसी और संस्था पर निर्भर कर सकता है. क्या भारत के संविधान में कोई नया थियेटर (संस्था) है जो कहेगा कि संसद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मुहर लगेगी तभी कानून होगा.
उपराष्ट्रपति ने कहा था कि 1973 में एक बहुत गलत परंपरा पड़ी. 1973 में केशवानंद भारती के मामले में उच्चतम न्यायालय ने मूलभूत ढांचे का विचार रखा कि संसद, संविधान में संशोधन कर सकती है लेकिन मूलभूत ढांचे में नहीं. उन्होंने कहा था कि यदि संसद के बनाए गए कानून को किसी भी आधार पर कोई भी संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा. बल्कि यह कहना मुश्किल होगा क्या हम लोकतांत्रिक देश हैं.