Congress: इंडिया गठबंधन में एक बार फिर कांग्रेस हुई मजबूत
दिल्ली से कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह सहयोगी दलों से गठबंधन बनाना चाहती है, लेकिन अपनी शर्त पर. सहयोगी दलों को कांग्रेस को राज्यों में सम्मानजनक हिस्सेदारी देनी होगी.
Congress: दिल्ली का विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी हार चुकी है. आम आदमी पार्टी की हार के पीछे कांग्रेस के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले को जिम्मेदार माना जा रहा है. लेकिन लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने के बावजूद दिल्ली में दोनों दल एक भी सीट नहीं जीत सके. इस हार के बाद आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. हालांकि अंदरखाने दोनों दलों के बीच गठबंधन की कोशिश हुई, लेकिन आम आदमी पार्टी दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला लिया. आम आदमी पार्टी का मानना था कि दिल्ली में वह मजबूत स्थिति में है और कांग्रेस से गठबंधन का सियासी नुकसान हो सकता है.
लेकिन आम आदमी पार्टी का यह दांव उल्टा पड़ गया. दिल्ली में वैसे भी कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं था. भले ही तीसरी बार कांग्रेस को विधानसभा में जीरो सीट मिली, लेकिन पार्टी ने आम आदमी पार्टी को सत्ता से बाहर कर दिया. कांग्रेस की उपस्थिति के कारण आम आदमी पार्टी को लगभग 14 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. यही नहीं आप के दिग्गज नेता चुनाव हार गए. दिल्ली में इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों के बावजूद कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ आक्रामक प्रचार अभियान चलाया. दिल्ली से कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन के सहयोगी दलों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह सहयोगी दलों से गठबंधन बनाना चाहती है, लेकिन अपनी शर्त पर. सहयोगी दलों को कांग्रेस को राज्यों में सम्मानजनक हिस्सेदारी देनी होगी.
दिल्ली चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस की बढ़ी अहमियत
दिल्ली के चुनाव परिणाम के असर उत्तर प्रदेश, बिहार से लेकर पश्चिम बंगाल तक हो सकता है. लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश में सपा ने उपचुनाव में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दी. हालांकि कांग्रेस ने उप चुनाव में एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन सपा को उप चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा. दिल्ली की हार के बाद एक बार फिर सपा और कांग्रेस नजदीक आते दिख रहे हैं. उसी तरह बिहार में राजद लगातार कांग्रेस की उपेक्षा कर रहा था. लेकिन दिल्ली के नतीजों के बाद दोनों दलों की ओर से मिलकर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है. दिल्ली चुनाव परिणाम से साबित हुआ है कि अकेले चुनाव लड़ने पर भले कांग्रेस को सीट जीतने के मामले में फिसड्डी साबित हो, लेकिन वह दूसरे दलों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. कांग्रेस ने सहयोगी दलों को यह संदेश देने का काम किया है कि गठबंधन में पार्टी को सम्मानजनक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए, नहीं तो पार्टी अकेले चुनाव लड़ सकती है.
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. भले ही पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का जनाधार कम हो गया है, लेकिन अकेले चुनाव लड़ने पर इसका नुकसान तृणमूल कांग्रेस को हो सकता है. ममता बनर्जी लगातार 15 साल से मुख्यमंत्री है और स्वाभाविक है कि उनकी सरकार के खिलाफ भी सरकार विरोधी लहर हो सकती है. ऐसे में कांग्रेस को दरकिनार करने का नुकसान पार्टी को हो सकता है. दरअसल क्षेत्रीय दलों की समस्या मजबूत कांग्रेस है. क्षेत्रीय दलों को लगता है कि कांग्रेस के मजबूत होने से उनका सियासी जनाधार कम हो सकता है. क्योंकि क्षेत्रीय दल और कांग्रेस का वोट बैंक एक समान है. वहीं कांग्रेस का मानना है कि अगर उसे मजबूत होना है तो क्षेत्रीय दलों के खिलाफ आक्रामक रणनीति अपनानी होगी.
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