Congress President Election: कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है. सामने आ रही जानकारी के मुताबिक, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद शशि थरूर 30 सितंबर को पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करेंगे. मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह जानकारी दी जा रही है. हालांकि, राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत अध्यक्ष पद के लिए इस बार सबसे प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं.
इस बार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और लोकसभा सदस्य शशि थरूर के बीच चुनावी मुकाबले के आसार हैं. हालांकि, कुछ अन्य उम्मीदवारों के मैदान में उतरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. चुनाव होने पर इस बार 9000 से अधिक डेलीगेट यानि निर्वाचक मंडल के सदस्य मतदान करेंगे.
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए इस बार चुनावी मुकाबले की प्रबल संभावना है और अगर ऐसा होता है तो आजाद हिंदुस्तान में यह चौथा मौका होगा, जब देश की सबसे पुरानी पार्टी का प्रमुख मतदान के जरिये चुना जाएगा. हालांकि, यह लगभग तय नजर आ रहा है कि अगला कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होगा और यह भी 24 साल बाद होगा कि देश के इस प्रमुख राजनीतिक परिवार से इतर कोई व्यक्ति कांग्रेस की कमान संभालेगा.
गांधी परिवार से बाहर के आखिरी अध्यक्ष सीताराम केसरी थे जिनके बाद सोनिया गांधी ने पार्टी का शीर्ष पद का संभाला था. कांग्रेस का कहना है कि वह देश की इकलौती पार्टी है जिसके अध्यक्ष का चुनाव लोकतांत्रिक ढंग से होता है. पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने इस बार के चुनाव के महत्व का उल्लेख करते हुए पीटीआई-भाषा से कहा कि मैं के कामराज के विचारों को मानने वाला व्यक्ति हूं कि चुनाव सर्वसम्मति से होना चाहिए, लेकिन सहमति नहीं बन पाए तो चुनाव जरूरी हो जाता है. कांग्रेस एकमात्र पार्टी है जहां लोकतांत्रिक और पारदर्शी ढंग से चुनाव होता है. उन्होंने कहा, फिलहाल गहलोत जी ने चुनाव लड़ने की घोषणा की है और थरूर ने संकेत दिया है कि वह चुनाव लड़ेंगे.
संभावना है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को चुनाव होगा. कांग्रेस के 137 साल के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि ज्यादातर समय अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ यानी दो या इससे अधिक उम्मीदवारों के बीच चुनावी मुकाबले की स्थिति पैदा नहीं हुई. आजादी से पहले का 1939 का कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव इस मायने में याद किया जाता है कि इसमें महात्मा गांधी समर्थित उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैया को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में बोस को 1,580 वोट मिले थे तो वहीं सीतारमैया को 1,377 ही वोट हासिल हुए थे.