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कोरोना के हर वेरिएंट को हरा सकती है आपकी सजगता और व्यवहार, जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट

बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स की निदेशक और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की निदेशक डॉ सौमित्रा दास ने बताया कि प्रत्येक वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर में अपने जैसी कई प्रतिकृतियां बनाते करते हुए उत्परिवर्तित या म्यूटेंट करता है. वायरस तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं और जब यह अपने ही तरह की कई अन्य कॉपी (प्रतिकृतियां) बना रहे होते हैं, तो संभव है कि प्रत्येक नई प्रतिकृति बिल्कुल पहले जैसी ही हो. ऐसा कोई भी छोटा या बड़ा बदलाव जो वायरस की संरचना को बदल दे, उसे म्यूटेशन कहा जाता है. एक वायरस में इस तरह के कई सौ और हजार म्यूटेशन हो सकते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2021 11:35 AM
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Corona pandemic : भारत में कोरोना मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि के कारण लोगों के बीच डर का माहौल है. वायरस का रोजाना बदलता स्ट्रेन लोगों के मन के डर को और भी इजाफा कर रहा है कि वायरस का नया म्यूटेंट उन्हें किस तरह नुकसान पहुंचाएगा. इस बीच, वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस में म्यूटेशन होना एक सामान्य प्रक्रिया है और म्यूटेंट का टीकाकरण, इलाज, और बचाव पर कोई असर नहीं पड़ता है. ऐसे में, कोरोना के हर वेरिएंट से आपकी सजगता और आपका कोरोना अनुरूप व्यवहार डटकर मुकाबला कर सकता है. आइए, जानते हैं क्या कहते हैं एक्सपर्ट…

वायरस कैसे करता है म्यूटेशन

बेंगलुरु स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स की निदेशक और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की निदेशक डॉ सौमित्रा दास ने बताया कि प्रत्येक वायरस संक्रमित व्यक्ति के शरीर में अपने जैसी कई प्रतिकृतियां बनाते करते हुए उत्परिवर्तित या म्यूटेंट करता है. वायरस तेजी से अपनी संख्या बढ़ाते हैं और जब यह अपने ही तरह की कई अन्य कॉपी (प्रतिकृतियां) बना रहे होते हैं, तो संभव है कि प्रत्येक नई प्रतिकृति बिल्कुल पहले जैसी ही हो. ऐसा कोई भी छोटा या बड़ा बदलाव जो वायरस की संरचना को बदल दे, उसे म्यूटेशन कहा जाता है. एक वायरस में इस तरह के कई सौ और हजार म्यूटेशन हो सकते हैं.

वायरस का हर बदलाव नहीं होता खतरनाक

डॉ दास कहती हैं कि वायरस में सभी तरह के बदलाव वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय नहीं होते हैं. कौन सा म्यूटेंट अधिक घातक या खतरनाक हो सकता है. इसका पता लगाने के लिए वह वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग करते हैं. ध्यान देने वाली बात यह होती है कि क्या म्यूटेंट वायरस को अधिक संक्रामक या विषैला बना रहा है? क्या म्यूटेशन इतनी अधिक क्षमता का है कि वह वायरस के प्रति दवाओं और वैक्सीन के प्रभाव को कम कर सकता है? यदि ऐसा है, तो म्यूटेंट को वेरिएंट ऑफ कंसर्न माना जाता है.

इलाज और वैक्सीन पर ज्यादा नहीं है म्यूटेशन का प्रभाव

कम्यूनिटी मेडिसिन विशेषज्ञ और आईसीएमआर के जोधपुर स्थित एनआईआईआरएनसीडी के निदेशक डॉ अरुण शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस में हुए म्यूटेशन का असर इलाज और वैक्सीन के प्रभाव को कम नहीं कर रहा है. आज हम तकनीकी रूप से इतने सक्षम हैं कि दवा या वैक्सीन को कम समय में म्यूटेंट से लड़ने के लिए तैयार कर सकते हैं, लेकिन यह उनकी प्रभावकारिता के लिए खतरा हो सकता है.

कोरोना अप्रोप्रिएट बिहेवियर सबसे कारगर हथियार

डॉ शर्मा ने कहा कि अधिकांश मामलों में हमने म्यूटेशन को हराया है, लेकिन कोरोना के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई और इस गति के कारण वैज्ञानिकों को इतना समय नहीं मिल पा रहा कि वह हर तरह के म्यूटेशन को पहचान सकें. इसलिए कोरोना अप्रोप्रिएट बिहेवियर को ही कोरोना से लड़ने करने के लिए सबसे कारगर हथियार माना गया है.

रोग प्रतिरोधक क्षमता कम कर सकता है वायरस का म्यूटेंट

म्यूटेंट वायरस शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता या इम्यूनिटी को कम कर सकता है, यह वायरस के प्रति वैक्सीन और दवा के जरिए शरीर में बनने वाले रक्षा कवच के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना अप्रोप्रिएट बिहेवियर संक्रमण के खतरे से बचाने के लिए ढाल का काम करता है. डॉ अरुण शर्मा कहते हैं कि थ्री लेयर मास्क, लगातार हाथ धोना, सैनेटाइज करना और निर्धारित दूरी बनाकर रखना, भीड़ वाली जगह पर जाने से बचना और विशेष रूप से कमरे के अंदर भी इन बातों का ध्यान रखना यह सभी बातें अब भी कोरोना संक्रमण को बढ़ने से रोकने और संक्रमण से बचाव का असरदार उपाय हैं.

नई लहर को कैसे समझें

कोई भी वायरस सबसे कमजोर आबादी को संक्रमित करके संक्रमण की एक शृंखला या चेन की शुरुआत करता है. यह तब तक लोगों को संक्रमित करता रहता है, जब तक की अतिसंवेदनशील या जोखिम के दायरे में आने वाला हर व्यक्ति संक्रमित नहीं हो जाता. इसके बाद वायरस खुद खत्म हो जाता है. डॉ अरुण शर्मा कहते हैं कि हम मरीजों का इलाज एंटी वायरल दवाओं से करते हैं और एक बड़ी आबादी की रक्षा वैक्सीन के माध्यम से करते हैं. यह उपाय वायरस के संक्रमण की चेन को तोड़ने में मदद करते हैं.

लापरवाही से तीसरी बार बढ़ सकता है संक्रमण का खतरा

उन्होंने कहा कि कुछ महीनों के अंतराल में जब लोगों में वायस के प्रति प्राकृतिक या वैक्सीनेशन के जरिए इम्यूनिटी बन जाती है. तब कुछ मामलों एंटीबॉडी बनने के बाद वायरस फिर से हमला कर देता है. वायरस हम पर दोबारा हमला न करे, इसका सिर्फ एक ही उपाय है कि इस बात पर ध्यान दिया जाए कि लोग संक्रमण से बचने के लिए खुद को किस तरह तैयार कर रहे हैं. इस साल की शुरुआत में जब संक्रमण के नये मामलों में कुछ कमी देखी गई, तो लोगों ने इस तरह व्यवहार करना शुरू कर दिया जैसे कि अब कोई वायरस है ही नहीं. लोगों ने सामूहिक कार्यक्रम आयोजित किए और मास्क लगाना छोड़ दिया, जिससे वायरस को दोबारा हमला करने का भरपूर मौका मिला.

कोरोना की तीसरी लहर का प्रभाव हो सकता है कम

इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक डॉ अनुराग अग्रवाल कहते हैं कि अब जबकि हम कोरोना की तीसरे लहर आने की उम्मीद कर रहे हैं, तब हम यह नहीं कह सकते कि यह कब तक आएगी और यह कितनी गंभीर होगी. लेकिन, आने वाले कुछ महीनों में यदि लोग कोरोना अनुरूपी व्यवहार का नियमित पालन करते रहें, तो हम एक बड़ी आबादी का टीकाकरण करने में सफल हो सकेंगे और इस तरह कोरोना की तीसरी लहर के प्रभाव को कम किया जा सकेगा.

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Posted by : Vishwat Sen

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