देश में कोरोना की दूसरी लहर के कहर से लोग परेशान हो रहे हैं. जो संक्रमित हो चुके हैं या जिनके घर में संक्रमण है, वे मानसिक तनाव में अधिक हैं. महामारी के डर के बीच लोगों में मानसिक तनाव और अवसाद का स्तर बढ़ता हुआ देखा जा रहा है. ऐसे में लोगों को कैसे संभालना चाहिए? मानसिक तनाव से खुद को और अपने परिजनों को कैसे बचा सकते हैं? इस पर जानिए क्या कहते हैं बेंगलुरु के निमहांस (एनआईएमएचएमएस) के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ दिनाकरन…
महामारी या किसी दर्दनाक घटना के बाद मानसिक तनाव होना सामान्य और स्वाभाविक है. उदास या भयभीत महसूस करना किसी भी प्रतिकूलता के लिए एक सामान्य मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है. महामारी के दौरान लोग संक्रमित होने से डरे हुए हैं. साथ ही, इस बात का भी भय है कि कहीं कोई उनका अपना न संक्रमित हो जाए. यह भय और परेशानी नींद, चिंता, अवसाद, शराब या धूम्रपान के अधिक सेवन के रूप में प्रकट हो सकते हैं. फिर ऐसे लोग हैं, जो संक्रमित हैं और अस्पताल में आइसोलेशन में हैं. वे घातक परिणामों के बारे में अत्यधिक भय का अनुभव कर सकते हैं.
तनाव से गुजरने वाले हर किसी को एक विनाशकारी महामारी के दौरान उचित सलाह की आवश्यकता होती है. इस समय लोगों को एक-दूसरे का सहयोग और एक-दूसरे का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है. हमें भौतिक रूप से दूरी बनाए रखने की जरूरत हैं, जबकि सामाजिक रूप से हम एक साथ हो सकते हैं.
इंसान एक सामाजिक प्राणी है. दुर्भाग्य से, इस संक्रामक महामारी का प्रबंधन करने के लिए हमें कुछ सामाजिक प्रतिबंधों का पालन करने की आवश्यकता होती है. कुछ लोगों के लिए पृथक, अलग या आइसोलेशन में रहना कठिन हो सकता है. इनमें भावनाओं का मिश्रण हो सकता है – वे अपनी दिनचर्या की गतिविधियों को याद कर सकते हैं, अपने प्रियजनों से दूर होने की चिंता कर सकते हैं, गुस्सा करते हैं कि उनकी स्वतंत्रता प्रतिबंधित है और उन्हें इस बात का भी डर सताता है कि वह एक प्राणघातक बीमारी की गिरफ्त में हैं.
मुझे लगता है कि जब आप क्वारंटाइन में होते हैं, तब भी एक निर्धारित दिनचर्या का पालन करने से मदद मिलती है. जैसे कि सुबह उठकर कुछ हल्के व्यायाम या सांस लेने का व्यायाम करें. अच्छा पढ़े, संगीत सुनें, एक अच्छी फिल्म देखें, वीडियो कॉल पर अपने दोस्तों या रिश्तेदारों से बातचीत करें. यदि आपका स्वास्थ्य अनुमति देता है, तो अपना नियमित काम करें. खास बात यह भी है कि आपको सात से आठ घंटे की नींद अवश्य लेनी है.
क्वारंटाइन केंद्रों या अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मचारी मरीजों से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं, उनके इलाज संबंधी कई विषयों पर बात कर सकते हैं. यदि मरीज अति गंभीर नहीं है, तो कर्मचारी उन्हें इस बात की जानकारी दे सकते हैं कि उनको कब छुट्टी दी जा सकती है. इस तरह की बात से मरीजों में ठीक होने की उम्मीद जागेगी और बीमारी के संदर्भ में उनकी अनिश्चितता कम होगी.
केवल कोविड के मरीज ही नहीं, यहां तक कि सामान्य लोग भी हल्के मस्तिष्क भ्रम, खराब ध्यान, एकाग्रता की कमी और मामूली भूलने की बीमारी का सामना कर रहे हैं. ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शारीरिक थकान और मानसिक तनाव किसी के ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं. अनियंत्रित तनाव शरीर में हार्मोनल असंतुलन की ओर ले जाता है, जो मस्तिष्क की क्रियाशीलता को प्रभावित कर सकता है.
कोरोना संक्रमण के मामले में हम जानते हैं कि वायरस मस्तिष्क में प्रवेश कर सकता है. इसके अलावा, संक्रमण मरीज के गंध और स्वाद को भी बदल देता है. कुछ कमजोर व्यक्तियों के मस्तिष्क में यह रक्त के थक्के और मस्तिष्क में रक्तस्राव का कारण बन सकता है, लेकिन हम अभी इस बात पर शोध किया जा रहा है कि यह वायरस मस्तिष्क को कैसे प्रभावित कर सकता है.
महामारी का लंबा समय स्वास्थ्यकर्मियों पर भारी पड़ रहा है. अपने सहयोगियों से बात किए बिना, बिना वॉशरूम के, बिना पीने के पानी के पीपीई में लगातार काम करना मुश्किल है. कोई आश्चर्य नहीं, कई मरीजों की स्वास्थ्य देखभाल करने वाले कई स्वास्थ्य कर्मचारी संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं.
हालांकि, चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने का पूरा जिम्मा अस्पताल प्रबंधन का होना चाहिए. इसके लिए वह चिकित्सकों के कम घंटे के काम का रोस्टर, काम के बीच छोटे-छोटे ब्रेक करने चाहिए. इससे उन्हें तनाव मुक्त होने में काफी मदद मिल सकती है. हमारे स्वास्थ्यकर्मियों को अपने काम या ड्यूटी के बीच आराम करने के लिए एक उचित समय मिलना चाहिए. उनकी व्यक्तिगत और परिवार संबंधी परेशानियों को समझना जाना चाहिए, कहीं वह किसी व्यक्तिगत समस्या से तो नहीं जूझ रहे. उनकी समस्याओं को सुनकर निवारण की कोशिश की जानी चाहिए. हम निमहंस में स्वास्थ्य सेवा और फ्रंटलाइन श्रमिकों के लिए राष्ट्रीय टोल फ्री हेल्पलाइन सेवा चला रहे हैं.
सकारात्मक दृष्टिकोण से व्यक्ति को तेजी से ठीक होने में मदद मिल सकती है. हालांकि, हमने कोरोना रोगियों पर किसी विशेष अभ्यास के प्रभाव का अध्ययन नहीं किया है, लेकिन पहले के अध्ययनों ने सुझाव दिया था कि नियमित शारीरिक गतिविधि, संतुलित आहार, योग, ध्यान और प्राणायाम शरीर और दिमाग पर शांत और उपचार प्रभाव डाल सकते हैं. इसलिए, यदि स्वास्थ्य अनुमति देता है, तो एक रोगी कुछ श्वांस और स्ट्रेचिंग अभ्यास कर सकते हैं.
पिछली महामारियों से हमने सीखा है कि कुछ लोग जो इससे बुरी तरह प्रभावित हैं, वे लंबे समय तक मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे अवसाद और बाद के तनाव संबंधी तनाव विकार का विकास कर सकते हैं. कुछ रोगियों, विशेषकर जिन्हें आईसीयू में कई दिन बिताने पड़ते हैं, उनके लिए आघात से उबरना मुश्किल हो सकता है. इन रोगियों को सलाह और चिकित्सा के संदर्भ में अब निरंतर सहयोग कीआवश्यकता है. केवल कुछ ही मरीजों को पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से उबरने के लिए दवाओं की आवश्यकता हो सकती है.
यह समझें कि आप जिस तनाव का सामना कर रहे हैं, वह महामारी के दौरान होना स्वाभाविक और आम है. इसलिए, याद रखें कि आप अकेले नहीं हैं, और आपकी सहायता के लिए लोग हैं। बावजूद इसके कुछ अहम चीजों को अपनी दिनचर्या में शामिल करें.
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काम पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें. इससे आपका मन रोग और मृत्यु के डर से दूर हो जाएगा.
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केवल चिकित्सकों द्वारा कहीं प्रमाणित सलाह को सुनें. फर्जी समाचारों से दूर रहें.
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कुछ शारीरिक गतिविधि करें और सोशल मीडिया पर समय कम दें.
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इनडोर खेल को शुरू करें, एक नया कौशल या शौक विकसित करें, घरेलू कामों में मदद करें.
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अपने प्रियजनों के संपर्क में रहें.
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दूसरों की मदद करने और उन तरीकों से मदद करने की कोशिश करें, जो आप कर सकते हैं.
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संतुलित आहार लें.
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7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लें.
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अगर आपकी आशंका या तनाव भारी है, तो चिकित्सीय सलाह अवश्य ले सकते हैं.
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Posted by : Vishwat Sen