क्या डेल्टा प्लस वैरिएंट के खिलाफ काम नहीं करेगा कोरोना वैक्सीन? डॉ रणदीप गुलेरिया ने आखिर क्यों कहा- अगर हम आक्रामक नहीं हुए तो वायरस हमें पीछे छोड़ देगा…
Third wave of Coronavirus : एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना का डेल्टा वैरिएंट भारत में दूसरे वेव का कारण बना और अब उसका म्यूटेशन K417N डेल्टा प्लस में हो चुका है, यह म्यूटेशन भारत के लिए चिंताजनक हो सकता है अगर इसपर नियंत्रण नहीं किया गया.
Third wave of Coronavirus : एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि कोरोना का डेल्टा वैरिएंट भारत में दूसरे वेव का कारण बना और अब उसका म्यूटेशन K417N डेल्टा प्लस में हो चुका है, यह म्यूटेशन भारत के लिए चिंताजनक हो सकता है अगर इसपर नियंत्रण नहीं किया गया.
एनडीटीवी के साथ बातचीत में डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि कोरोना पर नियंत्रण के लिए उचित कोरोना व्यवहार की जरूरत है. उन्होंने कहा कि जहां लॉकडाउन है वहां भी यह देखा जाना चाहिए कि उचित व्यवहार किया जाये.
डॉ गुलेरिया ने कहा डेल्टा प्लस एक वैरिएंट है जो डेल्टा वैरिएंट का म्यूटेशन है. डेल्टा प्लस में थोड़े बदलाव के साथ एक और म्यूटेशन पाया गया है, जो चिंता का कारण हो सकता है क्योंकि यह म्यूटेशन, K417N, कुछ ऐसा है जो वायरस को कुछ हद तक बदल सकता है पॉजिटिवटी के मामले में. ऐसे में हमें यह ध्यान रखना होगा कि जब देश में कोरोना संक्रमण के मामले घट रहे हैं यह फिर से उन्हें बढ़ाने का कारण ना बन जाये.
हमें इस वायरस को लापरवाही से लेने की आवश्यकता नहीं है. K417N म्यूटेशन इंसान के इम्यून सिस्टम से बचकर शरीर में प्रवेश कर सकता है और यह भी कहा जा रहा है कि इसपर कोरोना की वैक्सीन और दवाइयां भी कुछ खास असर नहीं कर पा रही हैं. ऐसे में हमें यह समझने की आवश्यकता है कि यह वायरस अधिक से अधिक लोगों को संक्रमित करने के लिए बदल रहा है और लगातार बदल रहा है, इसलिए हमें आक्रामक होना होगा और कोशिश करनी होगी हम वायरस को पीछे छोड़ें .
अगर हम ऐसा नहीं कर पायें तो तीन-चार महीने बाद ही फिर वहीं स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे हम गुजर चुके हैं. डॉ गुलेरिया ने कहा कि जीनोम सिक्वेंसिंग में तेजी लाने की आवश्यकता है, यह देखने के लिए कि क्या डेल्टा या डेल्टा प्लस मामले अधिक हैं और इन दो प्रकार के म्यूटेशन में वायरस कैसे व्यवहार कर रहा है.
क्या डेल्टा या डेल्टा प्लस से संक्रमित व्यक्ति में वैक्सीन की प्रभावकारिता कम हो जाती है, क्या मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उपचार को यह वायरस फेल कर देता है? हमें यह सब कुछ समझना होगा और वह भी जल्दी ही महज कुछ हफ्तों में अन्यथा फिर हम लाचार साबित हो सकते हैं.
Posted By : Rajneesh Anand