बचत खत्म, वेतन बंद अब खर्च चलाना मुश्किल

लॉकडाउन के कारण शहरी क्षेत्र के घरों में खाना पकाना और साफ-सफाई समेत रोजमर्रा के तमाम कामों में लगे अंशकालिक घरेलू सहायकों के सामने संकट गहराता जा रहा है . बिना वेतन के उनका भविष्य अधर में है और नौकरी बरकरार रहने को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है.

By PankajKumar Pathak | April 27, 2020 10:32 PM
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नयी दिल्ली : लॉकडाउन के कारण शहरी क्षेत्र के घरों में खाना पकाना और साफ-सफाई समेत रोजमर्रा के तमाम कामों में लगे अंशकालिक घरेलू सहायकों के सामने संकट गहराता जा रहा है. बिना वेतन के उनका भविष्य अधर में है और नौकरी बरकरार रहने को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है.

ऐसे घरेलू सहायकों में अधिकतर महिलाएं हैं. इनके नियोक्ता तो जरूर इन्हें वापस काम पर रखना पसंद करेंगे लेकिन कोरोना वायरस के प्रसार और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करने को लेकर कॉलोनीवासी और सोसाइटी के लोग इनके प्रवेश पर रोक लगा सकते हैं.

इनका भविष्य उनके नियोक्ता की अच्छाई पर निर्भर करता है क्योंकि कुछ लोग बिना काम पर आए भी वेतन का भुगतान कर सकते हैं, तो कुछ इससे इंकार भी कर सकते हैं. ऐसे में घरेलू सहायक लॉकडाउन समाप्त होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे काम पर लौट सकें. सुशीला कौशल्या देवी मदनपुर खादर में रहती हैं और अपने घर से करीब 12 किलोमीटर दूर सीआर पार्क में काम करने जाती हैं.

सुशीला ने कहा कि वह तीन घरों में काम करती हैं और लॉकडाउन की घोषणा होने पर इनमें से केवल एक नियोक्ता ने राशन खरीदने के लिए वेतन का अग्रिम भुगतान किया. उन्होंने बताया कि परिवार में पति और दो बच्चों के अलावा एक रिश्तेदार के भी दो बच्चे हैं, जोकि अचानक लॉकडाउन की घोषणा होने के कारण वापस नहीं जा सके. ऐसे में जो राशन पूरा महीना चल सकता था, वो समय से पहले खत्म हो गया और अब उसके पास में पैसे भी नहीं हैं.

बाकी दो लोगों से वेतन लेने भी नहीं जा सकती क्योंकि लॉकडाउन के कारण प्रतिबंध लागू हैं. सुशीला ने बताया कि उनके पति दिव्यांग हैं इसलिए वह भी काम करने में असमर्थ हैं और ऐसे में उनपर ही पूरे परिवार का पेट भरने की जिम्मेदारी है. घरेलू कामगार यूनियन से जुड़ी माया जॉन ने कहा कि दिल्ली-एनसीआर में सुशीला जैसी करीब 10-15 लाख महिलाएं हैं.

जॉन ने पीटीआई-भाषा से कहा कि इस क्षेत्र में काम करने वालों का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है और वास्तविकता में यह 10-15 लाख से भी कहीं अधिक हो सकता है. उन्होंने बताया कि कुछ ही भाग्यशाली घरेलू सहायक थे, जिन्हें वेतन का अग्रिम भुगतान किया गया या जिन घरों में वे काम करते थे वहां से अपना बकाया पाने में सक्षम रहे. उनमें से कुछ की ही आभासी भुगतान विकल्पों यथा बैंक खाते में अंतरण, पेटीएम और गूगल पे तक पहुंच है.

जॉन ने कहा कि घरेलू सहायकों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. सबसे पहले तो रास्ते में पुलिस की प्रताड़ना झेलनी पड़ती है और किसी तरह गलियों से होकर वेतन लेने पहुंच भी जाएं तो आरडब्ल्यूए के सदस्य प्रवेश नहीं करने देते. नोएडा के सेक्टर-39 में साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करने वाली पिंकी ने कहा कि जब भी वेतन के पैसे लेने के लिए बाहर निकलीं तो पुलिस ने रास्ते में ही रोक लिया

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