प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 मार्च को 21 दिनों का लॉक डाउन रखा जिसे बाद में सभी लोगों के सुझाव पर बढ़ा कर 3 मई कर दिया गया. प्रधानमंत्री के द्वारा लिए गए इस कदम का असर अब धीरे धीरे जमीन पर दिखाई पड़ता जा रहा है. प्रोफेसर शमिका रवि नामक ट्विटर यूजर ने एक ग्राफिक्स के जरिए के पोस्ट शेयर की जिसमें उन्होंने बताया कि किस तरह भारत में लॉकडाउन का असर दिखने लगा है. उन्होंने ने लिखा कि भारत में कोरोना के मामले में लगातार कमी आ रही है, पिछले 5 दिनों में कोरोना के सक्रिय मामले वृद्धि 6.6 प्रतिशत है, इसलिए 11 दिनों में ये मामले दोगुने हो जाएंगे.
#DailyUpdate #Covid19India
— Prof Shamika Ravi (@ShamikaRavi) April 19, 2020
The growth rate is declining consistently in India. The growth of Active cases in last 5 days is 6.6% – so doubling every 11 days. pic.twitter.com/CNe0ZfT5LT
हम इस ग्राफिक्स को ध्यान से देखेंगे तो हम पाएंगे कि अगर लॉक डाउन नहीं रहता तो यही मामले बढ़कर 2 लाख के पार पहुँच जाता.
जैसा कि ग्राफिक्स में दिखाया गया है लॉकडाउन के तुरंत बाद इसका असर देखने को नहीं मिला लेकिन जैसे ही लॉक डाउन का सख्ती से पालन कराया गया तो इसका परिणाम अब धीरे धीरे दिखाई पड़ने लगा है, 29 मार्च तक जो केस 5 दिन में बढ़ रहे थे वो 4 ही दिन के अंतराल में बढ़ने लगे.
क्योंकि ग्राफिक्स के दिखाए गए चार्ट के अनुसार निजामुद्दीन में जो तबलीगी जमात के कार्यक्रम हुए थे उसके कारण बढ़ने लगे थे. लेकिन 6 मार्च के बाद फिर से कोरोना मरीजों की संख्या घटने लगी और जो संख्या 4 दिन में बढ़ रही थी वो 6 दिन में बढ़ने लगी.
और अब तक भारत में 15722 मरीज अब तक इस बीमारी से संक्रमित हैं.
लेकिन अगर हम इस मामले से होने वाली मृत्यु पर नजर डालेंगे तो हम पाएंगे कि दिल्ली इस मामले में सबसे आगे है जहां प्रति 150 केस में 1.95 लोग इस बीमारी से मर रहे हैं जबकि दूसरे नंबर महाराष्ट्र का है जहां प्रति 150 केस में 1.72 लोग मर रहे हैं, तीसरे नंबर पर इतने ही केस में 0.88 लोग मध्य प्रदेश में मर रहे हैं.
अगर इस लिस्ट को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि केरल काफी सुधार किया है, जहां पर 150 केस में 0.06 लोग मरते हैं. इस लिस्ट में अंतिम स्थान पर है. आपको बता दें कि केरल ही वो राज्य है जहां पर कोरोना का पहला मामला सामने आया था.
अगर आज की तारीख में 100 टेस्ट कर रहे हैं तो उसमें 4.4 केस सामने आ रहे हैं जबकि आँकड़े के अनुसार हम 18 मार्च तक का रिकॉर्ड उठायें तो पता चलता है कि उस वक्त प्रति 100 टेस्ट में 1.1 केस बाहर आते थे.