रांची : कोरोना वायरस की वजह से पूरा देश लॉकडाउन है इस लॉकडाउन में भूखों तक अनाज पहुंचाने वाले लोग भी हैं जो दूसरों की मदद किये बगैर नहीं रह सके. लॉकडाउन में कई लोग घरों से बाहर निकले जिन्होंने यह अहसास करा दिया कि देश में एकता, मानवता और भारतीयता खत्म नहीं हुई है.
अगर ऐसे लोगों को आप तलाशने की कोशिश करेंगे, तो आपके आसपास भी बहुत सारे लोग मिलेंगे जो मदद करना चाहते हैं, मदद कर रहे हैं. हमने भी कुछ ऐसे लोगों की तलाश की है, जो अपने घरों से राशन, खाने का पैकेट, चाय लेकर निकले और उनलोगों की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया जिन्हें सबसे ज्यादा जरूरत है.
इस लॉकडाउन से कोरोना वायरस की बीमारी से तो बचा जो सकता है लेकिन भूख से नहीं. जिनके पास पैसा है, संसाधन है, उन्हें तो दिक्कत नहीं है लेकिन जिनके पास पैसा नहीं है, संसाधन नहीं है वह परेशान है. रोज कमाने – खाने वालों के लिए संकट की घड़ी है. मजदूर शहर से गांव का रुख कर रहे हैं. ऐसे समय में इनकी मदद सिर्फ सरकार ही नहीं कर रही है कुछ ऐसे लोग भी कर रहे हैं जो ऐसे वक्त में अपनी जिम्मेदारियों का महत्व समझते हैं. पढ़ें
झारखंड के मददगार – झारखंड में ना सिर्फ घरों में बल्कि गावों में भी लोग इस बामारी से दूर रहने के लिए एक दूसरे की मदद कर रहे हैं. झारखंड के ज्यादातर मजदूर जो दूसरे शहरों में काम करते हैं वह पत्रकारों से बात करते हुए भी कहते हैं गांव में तो कोई भी खाना खिला देगा शहर में कौन खिलायेगा ?
सरकार पर सब नहीं छो़ड़ सकते
झारखंड के बोकारो जिले में रहने वाली प्रगति शंकर कहती है कि देखिये इस बीमारी का एक ही इलाज है घर पर रहना. हमें पता है कि बहुत सारे लोग हैं जिन्हें मदद की जरूरत होगी. हमने पहला काम किया कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी राशन दिलाने की कोशिश की. हमने डीसी से बात की और वह भी हमारी बात समझ गये. हमारी दुसरी कोशिश थी कि लोग इस बीमारी को लेकर जागरुक रहे हमने देखा की शाम के वक्त लोग घर से बाहर निकल जाते हैं.
हमने ऐसे इलाकों को चिन्हित किया वहां स्टे होम का स्टीकर चिपकाया, रंगोली बनायी. इसी तरह हमने वैसे लोगों को चिन्हित किया जिनका घर नहीं है उन्हें सुरक्षित जगह पर ले जाया जा सके. जिनके पास राशन नहीं है उनके पास राशन पहुंचा सकें. हम खाने के पैकेट और सूखा अनाज दोनों बांट रहे हैं. प्रगति कहतीं हैं अगर एक संपन्न परिवार एक व्यक्ति का खाना देने लगे तो हमारे यहां कोई भूखा नहीं सोने वाला बचेगा.
लॉकडाउन में भूख को हरा रहे हैं प्रदीप
रांची के रहने वाले प्रदीप कुमार जैन लॉकडाउन के तुरंत बादमें लोगों की मदद के लिए अपनी गाड़ी से निकल पड़े. आज छठा दिन है जब वह सड़क पर लोगों की मदद कर रहे हैं प्रदीप कहते हैं कि देखिये लॉकडाउन है लेकिन बहुत सारे लोग हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. सड़क पर हमारी सुरक्षा के लिए पुलिस के जवान है, उन्हें भी मदद की जरूरत है. वह घंटों धूप में सड़क पर खड़े रहते हैं हमने कोशिश की है कि उन्हें भी खिचड़ी ,पानी दी जाए.
मैं पांच दिनों तक बगैर किसी मदद के खुद के दम पर यह काम करता रहा लेकिन अब लोग मदद कर रहे हैं किसी ने चावल दिया है तो कोई पानी के लिए पैसे दे रहा है. हमने चॉय, कॉफी बिस्किट उन तक भी पहुंचाया है जिनके पास खाना नहीं है. मेरा लक्ष्य है कि हर दिन कम से कम 200 लोगों की मदद कर सकूं. ऐसे वक्त में हम ही एक दूसरे का सहारा हैं और हमें ही एक दूसरे के साथ खड़ा रहना है.
बंगाल – यहां भी बहुत सारे लोग मदद के लिए बाहर हैं. बड़ाबाजर में कृष्णा जयसवाल हैं तो काशीपुर में अनवर हालांकि बंगाल में भी बहुत सारे लोग हैं जो अपने स्तर पर कोशिश कर रहे हैं. इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है उन लोगों पर जिनके पास राशन नहीं है.
लोग भूखे ना मरें
हाजी अनवर खान काशीपुर इलाके के रहने वाले हैं. अनवर संयुक्त परिवार में रहते हैं और इनके परिवार के लोग आपस में चंदा जमाकर मदद कर रहे हैं. घर में ही लोगों की मदद के लिए सूखा राशन का पैकेट तैयार किया जा रहा है. अनवर कहते हैं इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा जरूरत है खाने की, राशन की. हमने चावल पांच किलो, आलू 2 किलो दाल और साबून का एक पैकेट तैयार किया है.
शीपुर इलाका ट्रासपोर्ट का है तो यहां मजदूर भी हैं हम कोशिश कर रहे हैं उनतक पहुंचे उन्हें मदद करें . सरकार भी कोशिश कर रही है हमने अपनी क्षमता के अनुसार प्रधानमंत्री राहत कोष और मुख्यमंत्री राहत कोष में कुछ दान दिया है. यही वक्त है जब हमें एक दूसरे की मदद करके मिशाल कायम करनी है. हमारे इलाके में सभी धर्म के लोग रहते हैं इस वक्त हमें एकजुट रहना है एक दूसरे की मदद करनी है.
घर में रहने वाले सुरक्षित हैं सड़क पर रहने वालों का ध्यान रखना जरूरी
कोलकाता में बड़ा बाजार के रहने वाले कृष्णा जयसवाल कहते हैं जो घर पर हैं वह सुरक्षित हैं. जो सड़क पर है उनके दो वक्त के खाने का ध्यान भी हम सभी को रखना है. हम लोगों को सूखा खाना दे रहे हैं. बहुत सारे मजदूर हैं जो रास्ते पर हैं कोई अपने पूरे परिवार के साथ निकला है हम उनतक खाना पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. हम तीन जगहों पर भी खाने की व्यस्था कर रहे हैं जहां आकर मजदूर खाना खा सकते हैं. हम उसी दिन से काम कर रहे हैं जिस दिन लॉकडाउन हुआ. हमें खुशी होती है कि किसी के भी काम आ सकते हैं.
बिहार – बाहर काम करने वालों में बिहार राज्य के मजूदरों की संख्या अधिक है. बहुत सारे लोग हैं जो इस लॉकडाउन की वजह से घर लौट रहे हैं. इस लॉकडाउन में रिक्शा चलाने वाले, मजदूरी करके अपना पेट भरने वालों के परेशानी ना हो इसके लिए सरकार तो काम कर रही है लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो इनकी मदद के लिए आगे बढ़े हैं
छोटी सी मदद भी बड़ी राहत देती है
अगर चाह हो तो राह निकल जाती है. मुरली ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर इसी कहावत को सच कर दिखाया है. मुरली झा इस वक्त बिहार की राजधानी पटना में नौबतपुर इलाके में हैं. इस लॉकडाउन में इनलोगों ने मिलकर कुछ मदद करने की ठानी.
अपने ऐसे दोस्तों से संपर्क किया जिनकी नौकरी हो गयी है. मुरली कहते हैं हम चाहते तो फंड आसानी से जमा कर लेते, नेताओं से मदद ले लेते लेकिन हम चाहते थे कि आम लोग अपनी क्षमता के आधार पर मदद करें. ऐसे लोग जो अपनी क्षमता के अनुसार 100 रुपये भी दान कर पाते हैं उन्हें खुशी होती है.
उनकी खुशी भी जरूरी है उन्हें लगता है कि उन्होंन कुछ किया है. मैंने उनसे मदद की और अपने व्हाट्सएप पर उन्हें धन्यवाद लिखते हुए स्टेट्स डाल दिया. बहुत सारे लोग हैं जो अब मदद के लिए सामने आ गये हैं. हमने एक टीम तैयार कर ली है. एक टीम फिल्ड में लोगों की मदद कर रही है जिनमें अमित राघ, बिट्टू, रवि राकेश और नवीन
दूसरी टीम फंड जमा कर रही है जिसमें राजेश श्रीवास्तव, कन्हैया सिंह, गौतम झा, राहुल गुप्ता और रजनीश झा. हम जहां से राशन ले रहे हैं वह भी हमारी मदद कर रहे हैं वह जानते हैं कि हम किस काम में लगे है तो वह हमें साधारण कीमतों पर ही सामान उपलब्ध करा रहे हैं.
मुरली बताते हैं कि हम उन लोगों की पहचान कर रहे हैं जिन्हें मदद की ज्यादा जरूरत है. अगर कोई रिक्शा वाला इस लॉकडाउन में भी रिक्सा लेकर बाहर है उसे मदद की जरूरत है हम ऐसे लोगों तक राशन पहुंचा रहे हैं. इसमें चावल, दाल, तेल, आलू और साबून है. हम लॉकडाउन के दौरान सरकार के द्वारा दिये गये प्रोटोकॉल का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं अनाज बांटते वक्त हम दूरी का ध्यान रख रहे हैं ज्यादा से ज्यादा दो लोग ही फिल्ड पर मदद के लिए है.