भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने परामर्श जारी कर कहा है कि कोविड-19 रोगियों के उपचार में प्लाज्मा पद्धति (corona plasma therapy) का अंधाधुंध इस्तेमाल उचित नहीं है. इस पद्धति में महामारी को मात देकर ठीक हुए रोगियों के प्लाज्मा (plasma) का इस्तेमाल दूसरे रोगियों के उपचार में किया जाता है.
इस बीच, भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 89 लाख के पार चली गई है. देश की शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान इकाई ने प्लाज्मा पद्धति के अनुचित इस्तेमाल को लेकर साक्ष्य आधारित परामर्श में कहा है कि प्लाज्मा दान करने वाले व्यक्ति के शरीर में कोविड-19 के खिलाफ काम करने वाली एंटीबॉडीज का पर्याप्त सांद्रण होना चाहिए.
चिकित्सकीय परिणामों में सुधार, बीमारी की गंभीरता, अस्पताल में रहने की अवधि और मृत्युदर में कमी प्लाज्मा में विशिष्ट एंटीबॉडीज की सांद्रता पर निर्भर करती है जो सार्स-कोव-2 के प्रभावों को खत्म कर सकती हैं. इस पद्धति का इस्तेमाल पूर्व में एच1एन1, इबोला और सार्स-कोव-1 जैसे विषाणु संक्रमण के उपचार में किया जा चुका है.
Also Read: Coronavirus: कैसे खुलें स्कूल? हरियाणा के 9 सरकारी स्कूलों में 81 छात्र कोरोना पॉजिटिव मिले
आईसीएमआर ने हाल में 39 निजी और सरकारी अस्पतालों में एक अध्ययन के बाद कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण के गंभीर मरीजों का इलाज करने और मृत्यु दर को कम करने में प्लाज्मा पद्धति कोई खास कारगर साबित नहीं हो रही है. परामर्श में कहा गया है कि इसी तरह के अध्ययन चीन और नीदरलैंड में किए गए जिनमें इस पद्धति का कोई खास लाभ नजर नहीं आया.
इसमें कहा गया है कि कोरोना वायरस संक्रमण के रोगियों के उपचार में प्लाज्मा पद्धति का अंधाधुंध इस्तेमाल उचित नहीं है. कहा जाता है कि कोविड-19 रोगियों के उपचार में सार्स-कोव-2 के खिलाफ कम सांद्रता वाली विशिष्ट एंटीबॉडीज अधिक सांद्रता वाली एंटीबॉडीज की तुलना में कम लाभकारी हो सकती हैं.
परामर्श में कहा गया है कि इसलिए प्लाज्मा के संभावित दानदाता के शरीर में कोविड-19 के खिलाफ काम करने वाले एंटीबॉडीज में पर्याप्त सांद्रता होनी चाहिए. इसमें कहा गया है कि इस पद्धति का इस्तेमाल विशिष्ट मानक पूरा होने पर आईसीएमआर के परामर्श के अनुसार ही होना चाहिए.
Posted By – Arbind Kumar Mishra