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Coronavirus in India: कोरोना से दोबारा संक्रमित हो रहे हैं लोग, स्वास्थ्य मंत्रालय उठाने जा रहा ये कदम

Coronavirus in India: कोविड-19 से उबर चुके मरीजों के फिर से संक्रमित होने का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसकी सत्यता की पुष्टि करने के लिए ऐसे मामलों का आंकड़ा जुटाने की सोच रहा है.

By Agency | September 20, 2020 10:04 PM

Coronavirus in India: तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र में कोविड-19 से उबर चुके मरीजों के फिर से संक्रमित होने का संज्ञान लेते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय इसकी सत्यता की पुष्टि करने के लिए ऐसे मामलों का आंकड़ा जुटाने की सोच रहा है. सूत्रों ने बताया कि यह पुष्टि करने की जरूरत है कि क्या दोबारा संक्रमण हुआ है या कहीं पहले के संक्रमण का तो प्रभाव नहीं है. आनुवंशिक क्रम के विश्लेषण से ही इस बारे में पता चल पाएगा कि वायरस का वही स्वरूप है, जिसके कारण पहले संक्रमण हुआ था या वह उससे अलग है.

सूत्रों ने बताया कि कोविड-19 के दोबारा संक्रमण के मामलों का आंकड़ा जुटाने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय दिशा-निर्देश और एक प्रारूप जारी कर सकता है। इसके तहत राज्य निगरानी इकाइयों (एसएसयू) और जिला निगरानी इकाइयों (डीएसयू) को ऐसे सभी मामलों का आंकड़ा एक जगह जमा करके रखना होगा। एम्स में मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नीरज निश्चल ने बताया कि दुनिया में दोबारा संक्रमण के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं है। ज्यादातर वैज्ञानिकों का कहना है कि यह मृत वायरस का अंश हो सकता है जो कि पहले संक्रमण से तीन महीने तक रह सकता है . उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में आरटी-पीसीआर जांच में संक्रमण की पुष्टि हो सकती है . उन्होंने कहा दूसरी संभावना है कि यह पहले संक्रमण से अलग स्वरूप वाला वायरस हो.

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दोबारा संक्रमण के मामलों का पता लगाने के लिए आनुवांशिक क्रम का विश्लेषण करना होगा। लेकिन, ऐसे मामलों के विश्लेषण के लिए काफी तकनीकी दक्षता की जरूरत होती है और यह आसानी से उपलब्ध नहीं है. आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने पिछले सप्ताह कहा था कि कोविड-19 के मामले में दोबारा संक्रमण संभव है, हालांकि यह बहुत-बहुत दुर्लभ मामला होता है. मगर, उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात नहीं है. कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक कोरोना वायरस के मरीजों में प्रतिरोधी क्षमता कम से कम तीन महीने या उससे ज्यादा समय तक रहती है लेकिन वैज्ञानिक तरीके से अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि कितने समय तक यह शरीर में कायम रहती है.

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