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Corona से नहीं लड़ सकता HydroxyChloroquine, जानिए क्या कह रहे एक्सपर्ट

HydroxyChloroquine is Ineffective Against Covid-19 भारत समेत दुनियाभर के लिए शुक्रवार की सुबह लेकर आयी है एक बुरी खबर. यह खबर उन सबको हैरान कर देगी जो कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. दरअसल, कोरोना से प्रभावित देशों में कुछ दिनों पहले तब उम्मीद की किरण जगी थी, जब चीन से यह खबर आयी की वहां के कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से सुधार हो रहा है.

भारत समेत दुनियाभर के लिए शुक्रवार की सुबह लेकर आयी है एक बुरी खबर. यह खबर उन सबको हैरान कर देगी जो कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. दरअसल, कोरोना से प्रभावित देशों में कुछ दिनों पहले तब उम्मीद की किरण जगी थी, जब चीन से यह खबर आयी की वहां के कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में तेजी से सुधार हो रहा है.

इसके बाद मानो, अन्य देशों ने फॅालो करना शुरू कर दिया कि आखिर चीन कौन सी तरकीब अपना रहा है, जिससे मरीजों स्थिति में सुधार हो रहा है. फिर, चीन के एक अंग्रेजी वेबसाइट ने ख्बर छापी, जिससे पता चला कि दरअसल चीन में कुछ दवाएं चलाई जा रही है, जो प्रभावी रूप से मरीजों को स्वस्थ्य कर रही है.

इसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) की ओर से भी भारत को उसी दवा के प्रयोग का सुझाव दिया गया. दरअसल यह दवा कोई और नहीं बल्कि Hydroxycloroquine हैं.

क्या है Hydroxycloroquine?

जी हां! Hydroxycloroquine वही दवा है, जिसे 1950 के दशक में विकसित किया गया था. जिसे मलेरिया के इलाज में उपयोग में लाया जाता रहा हैं. हाल ही कोरोना संक्रमित मरीजों को चीन इसी दवा को देकर परीक्षण कर रहा था. कोरोना को नियंत्रण कर रहे चीनी विशेषज्ञ झोंग नानशान ने तो यह भी दावा कर दिया था कि इससे गंभीर रोगियों का अधिक तेजी से उपचार हो सकता है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) से सुझाव मिलते ही भारत ने इसके निर्यात पर रोक लगा दी थी. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी इसी दवा का नाम सुझाया था.

लेकिन, ACCESS हेल्थ वेबसाइट के प्रेसिडेंट और चेयरमैन विलियम ए के मुताबिक, चीन ने पांच-छह दिनों तक परीक्षण में इस दवा को कारगर नहीं पाया है. दरअसल, COVID-19 के रोगियों को इसी दवा से ठीक करने के कोशिश की, लेकिन उनमें पांच दिनों के उपचार के बाद भी स्वास्थ्य में कोई बदलाव नहीं आया.

आपको बता दें कि अस्पताल में भर्ती 30 रोगियों पर यह परीक्षण किया गया. जिसमें 15 लोगों को पांच दिनों के लिए 400mg क्लोरोक्वीन के साथ इलाज किया गया और पंद्रह को अन्य दवाओं से ठीक करने की कोशिश की गई. उपचार शुरू होने के एक हफ्ते बाद दोनों समूहों का मूल्यांकन किया गया जिसमें यह खुलासा हुआ कि मरीजों के स्वास्थ्य में कोई खास प्रगति नहीं हो पाया.

अब ऐसे कंडीशन में भारत के पास दो ऑप्शन बचें हैं.

– पहला यह की नये सिरे से शोध जारी रखें और शोधकत्ताओं का हौंसला और फंड से मजबूती प्रदान करें और

– उन मरीजों पर ध्यान दें जो स्वास्थ्य होकर लौट रहे हैं, जानने की कोशिश करें की आखिर उनके स्वास्थ्य होने की वजह क्या है?

Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.

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