कई देशों में महामारी का रूप ले चुके कोरोनावायरस (COVID-19) को लेकर पूरी दुनिया में दहशत है. देश चाहे कोई भी हो छोटा हो या बड़ा, कमजोर हो या शक्तिशाली, वो कोरोना के दंश से कराह उठा है. मगर, इन सब के बीच कुछ ऐसे देश भी हैं जिन्होंने बहुत जल्द कोरोना को करीब-करीब कंट्रोल कर लिया. इनमें से अधिकतकर वो देश हैं जो चीन के पड़ोसी हैं. बता दें कि कोरोना चीन से ही शुरू हुआ और सबसे पहले वहीं कहर बरपाया. अब चीन भी धीरे-धीरे कोरोना को कंट्रोल करने की स्थिति में है. मगर, पश्चिमी देशों में कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. भारत में कुल मामला 400 से ऊपर पहुंच गया है. भारत सहित कई देशों ने हालात को काबू करने के इरादे से कड़े कदम उठाए हैं. इनमें स्कूल-कॉलेज,ट्रेन-विमान सेवा बंद करने से लेकर अन्य कई तरह की पाबंदियां शामिल हैं. पश्चिमी देशों से तुलना करें तो सिंगापुर, हांगकांग और ताइवान में कई हफ्ते पहले ही कोरोना वायरस फैल गया था. मगर चीन के नजदीक होने के बावजूद इन एशियाई देशों में संक्रमण के मामले दुनिया के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है. इन देशों ने ऐसा क्या अलग किया जिससे बाकी देश सबक सीख सकते हैं? आइए आज आपको बताते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञ संक्रमण का फैलाव रोकने के लिए जरूरी कदमों को लेकर एकमत हैं – बड़े पैमाने पर टेस्ट करो, संक्रमित लोगो को अलग करो और सोशल डिस्टैंसिंग यानी भीड़भाड़ में जाने और लोगों के करीब जाने से बचने को बढ़ावा दो. अब पश्चिमी देशों में ये कदम उठाए जाने लगे हैं मगर समस्या यह है कि कई देश इसे लेकर तुरंत हरकत में नहीं आए. नतीजा आज सामने है. इटली में करीब 6 हजार लोगों की मौत हो चुकी है. अमरिका में हजारों लोग संक्रमण की चपेट में हैं. WHO को चीन ने बीते साल 31 दिसंबर को ही ‘सार्स जैसे रहस्यमय निमोनिया’ के मामलों की जानकारी दी थी. उस समय तक इंसानों से एक-दूसरे में इसके फैलने की पुष्टि नहीं हुई थी. वायरस को लेकर ज्यादा जानकारी भी नहीं थी मगर तीन दिनों के अंदर सिंगापुर, ताइवान और हांगकांग ने अपनी सीमाओं पर स्क्रीनिंग शुरू कर दी थी.
ताइवान ने वुहान से आने वाले विमानों के यात्रियों को नीचे उतारने से पहले उनकी जांच भी की. जैसे जैसे वैज्ञानिकों को इस वायरस के बारे में और पता चला, यह सामने आया कि जिन संक्रमित लोगों के अंदर लक्षण नहीं पाए गए हैं, वे भी दूसरों में संक्रमण फैला सका है. इसलिए कोरोना की पुष्टि के लिए टेस्ट किया जाना बेहद अहम बन गया. सिंगापुर, ताइवान और हांगकांग तुरंत अलर्ट हुए और एक्शन में आ गए. दुनिया के बाकी देशों ने एक्शन में देरी कर दी. भारत ने जरूर अपने प्रयास शुरू कर दिए थे.
गौर करें तो शुरुआत में दक्षिण कोरिया में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़े. मगर इसने संक्रमण की पुष्टि के लिए टेस्ट विकसित किया और 2 लाख 90 हजार से अधिक लोगों का परीक्षण किया. हर रोज यहां करीब 10 हजार लोगों का मुफ्त परीक्षण हो रहा है. कई लोगों ने यह माना कि जिस तरह से द. कोर्या ने इंतजाम किए और जनता के टेस्ट करवाए, वह कमाल है. दुनिया के बाकी मुल्कों में कोरोना टेस्टिंग में देरी की गई. शुरुआती टेस्ट किट ख़राब थे और प्राइवेट लैब में करवाए जाने वाले टेस्ट को मंज़ूरी मिलने में देरी हुई. बहुत सारे लोग महंगे होने के कारण टेस्ट नहीं करवा पाए. बाद में कानून बनाया गया और सभी के लिए फ्री टेस्टिंग का प्रावधान किया गया. भारत में प्राइवेट लैब में टेस्ट कराने पर 4500 रूपया चुकाना होता है. सरकारी जांच केंद्र आबादी के हिसाब से काफी कम हैं.
जिन लोगों में कोरोना के लक्षण हैं, उनकी पहचान करना ही काफी नहीं है. वे लोग किस-किस के संपर्क में आ चुके हैं, इसका पता लगाना भी काफी अहम है. सिंगापुर में जासूसों ने 6000 ऐसे लोगो को सीसीटीवी फुटेज वगैरह के माध्यम से ट्रेस किया जो संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में हो सकते थे. फिर इनका टेस्ट किया गया और उन्हें साफ नतीजा आने तक अकेले में रहने का आदेश दिया गया. हांगकांग में तो उन लोगों को भी ट्रेस किया जाता है जो किसी संक्रमित व्यक्ति में लक्षण दिखने से दो दिन पहले तक उसके संपर्क में आए हों. जिन लोगों को खुद ही अकेले रहने के लिए कहा गया है, वे ऐसा कर रहे हैं या नहीं, यह जांचने के लिए कई तरीके अपनाए गए हैं. हांगकांग में विदेश से आने वाले लोगों को बांह में एक इलेक्ट्रिक ब्रेसलेट पहनना होता है जो उनकी मूवमेंट को ट्रैक करता है.
सिंगापुर में जिन लोगों को घर पर अलग रहने के लिए कहा गया है, उनसे दिन में कई बार संपर्क किया जाता है और फोटो मंगवाया जाता है ताकि पता चल सके कि वे कहां हैं. सिंगापुर में जिन लोगों को घर पर रहने के लिए कहा गया है, अगर वे इस आदेश को उल्लंघन करते हैं तो उनपर भारी जुर्माना लगाया जाता है और जेल तक की सजा हो सकती है. एक ऐसे ही शख्स से तो सिंगापुर में रहने का अधिकार तक छीन लिया गया. कई पश्चिमी देश इस तरह के क़दम नहीं उठा पा रहे क्योंकि वहां आबादी ज्यादा है और नागरिकों को अधिकार और स्वतंत्रता भी ज्यादा है.
कोरोना को रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे बेहतर तरीका माना गया. मगर इसमें जितनी देरी की जाए, बाद में काबू पाने के लिए उतने ही अतिरिक्त प्रयास करने होंगे. चीन के वुहान में, जहां से वायरस फैला, शटडाउन शुरू होने से पहले ही 50 लाख लोग वहां से अन्य जगहों पर जा चुके थे. इटली और स्पेन दोनों को राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन करना पड़ा क्योंकि वहां पर प्रभावित लोगों की संख्या हजारों में पहुंच गई थी. न्यूयॉर्क और कैलिफ़ोर्निया ने भी अपने यहां लोगों को घरों पर रहने के लिए कहा है. दूसरी ओर सिंगापुर में स्कूल अभी भी खुले हुए हैं जबकि बड़े पैमाने पर लोगों के जुटने पर रोक लगी हुई है. हॉन्गकॉन्ग में स्कूलों को बंद किया गया है और लोगों को घर से काम करने के लिए कहा गया है. फिर भी, वहां पर रेस्तरां और बार खुले हुए हैं. सिंगापुर और हॉंगकॉग के नागरिक दिसंबर में ही सोशल डिस्टेंसिंग करने लगे थे जिसका असर ये हुआ कि कोरोना का प्रसार ज्यादा नहीं हुआ.
कोरोना मामले में चीन को इसलिए आलोचनाओं का सामना करना पड़ा क्योंकि उसने संक्रमण फैलने की बात बताने में देरी की. इसने वुहान में बड़ी राजनीतिक रैलियां होने दीं. प्रसासन ने उन डॉक्टरों को सजा दी जो बाकियों को खतरे के बारे में आगाह कर रहे थे. अब वायरस का फैलाव रोकने के लिए उठाए गए कदमों के लिए उसकी तारीफ़ हो रही है. उसने तुरंत बड़े पैमाने पर लॉकडाउन किया और अस्पतालों की क्षमता बढ़ाई. यूरोपीय देशों सहित अमेरिका ने जनता तक सही जानकारी पहुंचाने में देरी की.
हॉंगकांग ने ऑनलाइन डैशबोर्ड बनाया जहां पर मैप में दिखता है कि किन इमारतों में लोगों को कोरोना से संक्रमित पाया गया है. दक्षिण कोरिया ने लोगों को मोबाइल अलर्ट से सूचित किया कि उनके आसपास कोई मरीज मिला है. सिंगापुर में सरकार ने कोरोना वायरस को लेकर साफ जानकारियां दीं. प्रधानमंत्री ने लोगों को घबराकर अतिरिक्त साजो सामान वगैरह खरीदने से रोकने की अपील की. इस पहल को लोगों का समर्थन मिला. इसमें भारत अव्वल रहा. जैसे ही मामले की शुराआत हुई वैसे ही लोगो तक सरकार ने जानकारियां पहुंचानी शुरू कर दी. पीएम मोदी ने पहले कई ट्वीट किए फिर देश को संबोधित भी किया.
भले ही चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और हांगकांग ने संक्रमण का फैलाव रोक दिया है मगर उनकी सीमाओं में बाहर से आ रहे लोगों के कारण कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर का खतरा पैदा हो गया है. अभी तक यह साफ नहीं है कि यह आउटब्रेक कब तक बना रहेगा. चीन में लॉकडाउन के बाद जिस तरह से नए संक्रमण के मामलों में कमी आई है उससे नयी उम्मीद बंधी है. कई विशेषज्ञों का लगता है कि अगर लॉकडाउन को जल्दी ही खत्म कर दिया तो फिर से संक्रमण फैल सकता है. जब तक वैक्सिन नहीं बन जाता तब तक कोरोना का खतर मडंराता रहेगा. इसमें कितना वक्त लगेगा ये कहना मुश्कल है. दावे हैं कि चीन सहित अमेरिका, जर्मनी, रूस और ब्रिटेन जैसे देशों में वैक्सिन को लेकर जांच चल रहा है. कोरोना संक्रमण से जहां लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंच रहा है वहीं लंबे समय तक लॉकडाउन रखने से अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंच रहा है. इसके अलावा और कोई अच्छा विकल्प भी नहीं है.