Coronavirus Pandemic: हर्ड इम्युनिटी पर बड़ा खुलासा, 5 में से 1 कोविड-19 मरीज में नहीं बनते एंटी-बॉडी

नयी दिल्ली : कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के इस दौर में हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity)पर किये गये एक शोध में बड़ा खुलासा हुआ है. शोध में पता चला है कि हर 5 मरीजों में से 1 मरीज के शरीर में एंटी बॉडी (Anti Body) डेवलप नहीं होती है. ऐसे में इसे कोरोना के इलाज में ज्यादा प्रभावी नहीं माना जा सकता. इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंसेज के निदेशक डॉ एसके सरीन ने यह बात कही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 3, 2020 9:09 PM

नयी दिल्ली : कोरोनावायरस महामारी (Coronavirus Pandemic) के इस दौर में हर्ड इम्युनिटी (Herd Immunity)पर किये गये एक शोध में बड़ा खुलासा हुआ है. शोध में पता चला है कि हर 5 मरीजों में से 1 मरीज के शरीर में एंटी बॉडी (Anti Body) डेवलप नहीं होती है. ऐसे में इसे कोरोना के इलाज में ज्यादा प्रभावी नहीं माना जा सकता. इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलीरी साइंसेज के निदेशक डॉ एसके सरीन ने यह बात कही है.

डॉ सरीन उस पांच सदस्यीय समिति का भी नेतृत्व कर रहे हैं जो महामारी से निपटने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री की सहायता के लिए बनायी गयी है. सीएनएन को दिये इंटरव्यू में डॉ सरीन ने बताया कि क्यों ‘हर्ड इम्युनिटी’ विकसित करने के लिए वायरस के संचरण के माध्यम से समुदाय को संक्रमित होने देने की अनुमति देना महामारी से निपटने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है. इसमें कई खतरे हैं.

उन्होंने कहा कि प्रत्येक चार या पांच कोविड-19 रोगियों में से एक, नोवल कोरोनो वायरस से दीर्घकालिक प्रतिरक्षा प्रदान करने के लिए प्रभावी एंटी बॉडी (Anti Body) विकसित नहीं करता है. सवाल ‘हर्ड इम्युनिटी’ पर उठता है, जिसका अर्थ है कि हर कोई चुपचाप वायरस के संपर्क में आ गया है और अब वायरस संक्रमित नहीं कर सकता है. लेकिन यह एक उच्च कीमत है. यह प्राकृतिक तरीका नहीं है क्योंकि हमें ये मिलेगा क्योंकि किसी में भी इसका पता नहीं चला है.

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डॉ सरीन ने हर्ड इम्युनिटी के भरोसे लोगों को छोड़ने को सही नहीं बताया. उनका कहना है कि हम नहीं चाहते हैं कि हमारे लोग प्रतिरक्षा प्राप्त करने के लिए संक्रमित हो जाएं जो कि अल्पकालिक हो सकती है, स्थायी नहीं. अधिक मौतें हो सकती हैं. मुझे नहीं लगता कि ‘हर्ड इम्युनिटी’ की अनुमति देने की अवधारणा सबसे अच्छा तरीका है. संरक्षण के लिए, वैक्सीन हमारी एकमात्र उम्मीद बनी हुई है. जब तक वैक्सीन नहीं आती है, तब तक यह मत सोचो कि ‘हर्ड इम्युनिटी’ एक विकल्प है. यह नहीं है.

क्या होता है हर्ड इम्युनिटी

हर्ड इम्युनिटी होने का मतलब है कि एक बड़े हिस्से या आमतौर पर 70 से 90 फीसदी लोगों में किसी वायरस से लड़ने की ताकत को पैदा करना होता है. ऐसे लोग बीमारी के लिए इम्‍यून हो जाते हैं. जैसे-जैसे इम्यून (रोगप्रति‍रोधक क्षमता) वाले लोगों की संख्या में इजाफा होता जायेगा. वैसे-वैसे वायरस का खतरा कम होता जायेगा. इस वजह से वायरस के संक्रमण की जो चेन बनी हुई है वो टूट जायेगी.

यानी वो लोग भी बच सकते हैं जि‍नकी इम्युनिटी कमजोर है. हर्ड का अर्थ अंग्रेजी में झुंड होता है और हर्ड इम्युनिटी यानी सामुहिक रोग प्रति‍रोधक क्षमता. कोरोना वायरस में सबसे ज्‍यादा चर्चा इम्युनिटी की है. यानी जब तक कोरोना वायरस की वैक्‍सीन नहीं आ जाती तब तक हमें अपनी इम्युनिटी को ही मजबूत रखना होगा.

कि‍सी भी वायरस को रहने के लिए एक शरीर की जरूरत होती है, तभी वो जिंदा रह पाता है. डॉक्‍टर या वैज्ञानिक की भाषा में वायरस को एक नया होस्‍ट चाहिए. ऐसे में वायरस कमजोर इम्‍यूनिटी वाला शरीर ढूंढता है. जैसे ही उसे वो मि‍लता है उसे संक्रमित कर देता है. ऐसे में अगर ज्‍यादातर लोगों की इम्‍यूनिटी मजबूत होगी तो वायरस को शरीर नहीं मिलेगा और वो एक वक्‍त के बाद खुद ब खुद ही नष्‍ट हो जायेगा. क्‍योंकि वायरस की भी एक उम्र होती है, उसके बाद वो मर जाता है.

Posted by: Amlesh Nandan Sinha.

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