coronil, baba ramdev,patanjali Ayurvedic corona kit: योग गुरू स्वामी रामदेव की कंपनी पतंजलि योगपीठ ने दो दिन पहले कोरोना संक्रमित मरीजों की दवा कोरोनिल बनाने का दावा किया था. लेकिन उनके दावे के बाद से ही लगातार इस कोरोनिल को लेकर सवाल खड़ा हो रहा है. महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार ने इस दवा पर प्रतिबंध लगा दिया है. उत्तराखंड सरकार ने पतंजलि की दिव्य फार्मेसी को नोटिस जारी किया है.
सरकार के एक मंत्री ने कहा कि पतंजलि ने केवल बुखार और खांसी के खिलाफ इम्यूनिटी बूस्टर बनाने के लिए लाइसेंस के लिए आवेदन किया था. द इंडियन एक्सप्रेस ने राजस्थान सरकार के हवाले से लिखा है कि उसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च (निम्स) में क्लिनिकल ट्रायल की कोई जानकारी नहीं थी. जयपुर निम्स में कोरोना मरीज भर्ती हैं. सबसे महत्वपूर्ण ये हैं ट्रायल के दौरान जब हल्के लक्षण वाले मरीजों को बुखार हुआ तो उन्हें एलोपैथिक दवाएं दी गईं. ट्रायल सिर्फ संक्रमितों के संपर्क में आए और हल्के लक्षणों वाले मरीजों पर किया गया. गंभीर रूप से बीमार मरीजों और सांस लेने में गंभीर परेशानी से गुजर रहे मरीजों को इससे बाहर रखा गया.
मंगलवार को कोरोनिल की लॉन्चिंग के मौके पर निम्स के चांसलर प्रोफेसर बलवीर सिंह तोमर भी मौजूद थे. निमसे के मुख्य जांचकर्ता डॉक्टर गनपत देवपुत्र ने बताया कि ये सिर्फ 100 कोरोना मरीजों के सैंपल साइज वाली अंतरिम रिपोर्ट है. अंतिम रिपोर्ट और निष्कर्ष 15-25 दिनों के बाद प्रकाशित किए जाएंगे. इसके बाद इसे समीक्षा के लिए भेजा जाएगा. यह पूछने पर कि क्या एलोपैथिक दवाओं को लक्षण विकसित होने पर परीक्षण के दौरान हल्के रूप से रोगग्रस्त मरीजों को दिया जाता था. उन्होंने कहा- हां. डॉक्टर देवपुत्र के मुताबिक, ये डबल-ब्लाइंड बेतरतीब ट्रायल है. 50 मरीज प्लेसीबो पर थे और बाकी 50 एक्टिव दवाओं (आयुर्वेदिक चिकित्सा) पर थे. हमने पहले, दूसरे और सातवें दिन आरटी पीसीआर टेस्ट किया.
तीसरे दिन 69 फसीदी मरीज निगेटिव पाए गए. प्लेसीबो ग्रुप में सिर्फ पचास फीसदी मरीज निगेटिव पाए गए. उन्होंने कहा कि सातवें दिन ग्रुप में सभी मरीजों को टेस्ट निगेटिव आए. प्लेसीबो ग्रुप में 65 फीसदी मरीजों के टेस्ट निगेटिव आए और बाकी 35 फ़ीसदी मरीजों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई. हालांकि पतंजलि आयुर्वेद के बालकृष्ण ने दावा किया कि विवाद को सुलझा लिया गया है. बता दें कि कोरोनावायरस के किसी भी वैकल्पिक इलाज का कोई वैज्ञानिक प्रमाण अभी तक नहीं है, यहां तक कि कई देशों द्वारा टीकों का परीक्षण किया जा रहा है.
जानकारों के मुताबिक, किसी भी दवा के ट्रायल में ही कई महीने और साल लग जाते हैं. इमरजेंसी की स्थिति में भी सालभर तो लग ही जाता है. ऐसे में अचानक पतंजलि की ओर से कोरोना वायरस की आयुर्वेद दवा का लॉन्च होना संदेह का विषय है. दूसरी बात ये भी कही जा रही है कि उन्होंने कोरोना की दवा का लाइसेंस क्यों नहीं लिया. उत्तराखंड आयुर्वेदिक विभाग का कहना है कि पतंजलि ने बुखार-खांसी-सर्दी की दवा का लाइसेंस लिया था, न कि कोरोना की दवा का. भारत में किसी नई दवा का लाइसेंस हासिल करने के लिए कई मानकों का ध्यान रखना होता है. यह सभी मानक औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 और नियम 1945 के तहत आते हैं. कोरोनिल बनाने वाली संस्था पतंजलि पर इन्हीं मानकों की अनदेखी करने का आरोप है.