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वैक्सीन की एक खुराक से किया जा सकता 5 लोगों को वैक्सीनेट, एक्सपर्ट ने बताया ये तरीका

Covid 19 Vaccine One Dose Vaccinate Five कोरोना की तीसरी और चौथी लहर की चर्चा के बीच भारत में कोविड 19 वैक्सीनेशन मिशन में तेजी लाने की मांग जोर पकड़ रही है. केंद्र और राज्य की सरकारें वैक्सीनेशन अभियान को सफल बनाने में जुटी हैं. वहीं, अभी भी कुछ राज्यों से कोविड वैक्सीन की कमी को लेकर शिकायतें सामने आ रही है. इन सबके बीच, एक्पर्ट लगातार वैक्सीन को लेकर रिसर्च कर रहे है, ताकि कोरोना के खिलाफ जंग में सफलता हासिल किया जा सकें. इसी कड़ी में कोविड वैक्सीन की भारी कमी को देखते हुए विशेषज्ञों ने एक नया तरीका खोजा है.

Covid 19 Vaccine One Dose Vaccinate Five कोरोना की तीसरी और चौथी लहर की चर्चा के बीच भारत में कोविड 19 वैक्सीनेशन मिशन में तेजी लाने की मांग जोर पकड़ रही है. केंद्र और राज्य की सरकारें वैक्सीनेशन अभियान को सफल बनाने में जुटी हैं. वहीं, अभी भी कुछ राज्यों से कोविड वैक्सीन की कमी को लेकर शिकायतें सामने आ रही है. इन सबके बीच, एक्पर्ट लगातार वैक्सीन को लेकर रिसर्च कर रहे है, ताकि कोरोना के खिलाफ जंग में सफलता हासिल किया जा सकें. इसी कड़ी में कोविड वैक्सीन की भारी कमी को देखते हुए विशेषज्ञों ने एक नया तरीका खोजा है.

प्रमुख अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया है कि वैक्सीनेशन अभियान में तेजी लाने के लिए इंट्राडर्मल (Intradermal ) तरीके से वैक्सीनेट करने का रास्ता अपनाया जा सकता है. विशेषज्ञों के मुताबिक, यह एक इंजेक्शन का प्रकार है, जिसमें इंजेक्शन से दवा को शरीर के अंदर गहराई में मौजूद मांसपेशियों में पहुंचाया जाता है. इसके लिए एक बड़ी सुई का उपयोग किया जाता है, जो त्वचा के अंदर गहराई तक जा सके. इसके तहत त्वचा में 0.1 एमएल डोज का इंजेक्शन, जो कंधे में इंट्रामस्क्युलर रूप से दी गई 0.5 एमएल की वर्तमान खुराक की मात्रा का 5वां हिस्सा होगा. यानि इस तरीके की मदद से अब एक व्यक्ति को दी जाने वाली खुराक पांच व्यक्तियों का टीकाकरण करने में सक्षम होगी.

टेक्निकल एडवाइजरी कमिटी के चेयरमैन डॉ एमके सुदर्शन के मुताबिक, इंजेक्शन के इस तरीके का इस्तेमाल फिलहाल सिर्फ एलर्जी टेस्टिंग और रैबीज व बीसीजी वैक्सीन लगाने के लिए किया जाता है. हालांकि, इस तरीके के इस्तेमाल को लेकर एक बार फिर से दिलचस्पी बढ़ गई है, क्योंकि त्वचा में बड़ी संख्या में एंटीजेन-प्रेजेंटिंग सेल होते हैं. इस कारण इंट्राडर्मल इंजेक्शन ज्यादा कारगर हो सकते हैं. इससे समान प्रभाव पैदा करने के लिए कम वैक्सीन की जरूरत पड़ती है. उन्होंने आगे कहा कि केंद्र सरकार को इसके प्रभाव के बार में जानने के लिए वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों के साथ मिलकर अध्ययन करना होगा. डॉ एमके सुदर्शन ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1980 के दशक में इंट्राडर्मल रेबीज टीकाकरण को मंजूरी दी और भारत ने इसे 2006 में पेश किया गया था.

वहीं, केआईएमएस के डिपार्टमेंट ऑफ कम्यूनिटी मेडिसीन के प्रोफेसर और हेड डॉ. डीएच ए नारायण (Dr DH Ashwath Narayan) ने कहा कि कोविड वैक्सीन के लिए इंट्राडर्मल तरीके के इस्तेमाल और प्रभाव को लेकर अध्ययन करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार और वैक्सीन बनाने वाले मैनूफ्रैक्चरर से मंजूरी की जरूरत होगी. उन्होंने कहा कि इसके लिए नर्सों को भी ट्रेनिंग देनी होगी.

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