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कोविशील्ड का ‘शील्ड’ तीन महीने बाद ही होने लगता है कमजोर, पांच महीने बाद मृत्यु तक का खतरा : शोध

लांसेट जर्नल के अध्ययन में यह दावा किया गया है एस्ट्राजेनेका का टीका लगवा चुके लोगों में सुरक्षा घट जाती है इसलिए लोगों को कोरोना वायरस के गंभीर प्रभाव से बचाने के लिए बूस्टर डोज की सख्त जरूरत है.

कोरोना वायरस के ओमिक्रॉन वैरिएंट के खतरे के बीच सभी देश यह जानने की कोशिश में जुटे हैं कि कोविड वैक्सीन कितने कारगर हैं और क्या वैक्सीन की दो डोज के बाद तीसरे बूस्टर डोज की जरूरत है. इस खबरों के बीच लांसेट जर्नल में एक अध्ययन प्रकाशित हुई है जिसके अनुसार यह कहा जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका के कोविड-19 टीके की दो खुराक लगने के तीन महीने बाद इससे मिलने वाली सुरक्षा घट जाती है.

लांसेट जर्नल के अध्ययन में यह दावा किया गया है कि ब्राजील और स्कॉटलैंड से जो आंकड़े प्राप्त हुए हैं उनके अनुसार चूंकि एस्ट्राजेनेका का टीका लगवा चुके लोगों में सुरक्षा घट जाती है इसलिए लोगों को कोरोना वायरस के गंभीर प्रभाव से बचाने के लिए बूस्टर डोज की सख्त जरूरत है. भारत में एस्ट्राजेनेका के टीके को कोविशील्ड के नाम से जाना जाता है और इसका निर्माण सीरम इंस्टीट्‌यूट आफ इंडिया ने किया है.

अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं ने एस्ट्राजेनेका का टीका लगवा चुके लगभग 25 लाख लोगों का अध्ययन किया जिसमें इस बात का खुलासा हुआ है कि दोनों डोज लगने के पांच महीने के बाद गंभीर रोगों और मौत का खतरा पांच गुणा बढ़ गया.

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अध्ययन के अनुसार वैक्सीन का प्रभाव कम होने के संकेत तीन महीने बाद ही नजर आने लगे. स्कॉटलैंड और ब्राजील के शोधकर्ताओं ने पाया कि दूसरी खुराक के बाद महज चार महीने पर अस्पताल में भर्ती होने की संभावना और मौत का खतरा तीन गुना बढ़ गया.

गौरतलब है कि कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट का खतरा इसलिए ज्यादा हो गया है क्योंकि यह वैक्सीन का दोनों डोज ले चुके लोगों को भी अपना शिकार बना रहा है. यही वजह है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक वैक्सीन और उसके प्रभाव पर शोध कर रहे हैं. यूनिवसिर्टी ऑफ एडिनबर्ग,यूके के प्रोफेसर अजीज शेख का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोविड महामारी से लड़ने में वैक्सीन एक महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन इसका प्रभाव घटना चिंता का विषय है.

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