CPA: विधानमंडलों में हंगामा और कटुता चिंता का विषय
विधान मंडलों के प्रभावी कामकाज के लिए नए सदस्यों को सदन के कामकाज, सदन की गरिमा और शिष्टाचार तथा जनसाधारण के मुद्दों को उठाने के लिए उपलब्ध विधायी साधनों के बारे में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.
CPA: संसद भवन में दो दिवसीय राष्ट्रमंडल संसदीय संघ(सीपीए) भारत क्षेत्र सम्मेलन का मंगलवार को समापन हो गया. सम्मेलन में राज्यों और संघ शासित प्रदेशों के पीठासीन अधिकारी, विधानसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष, विधान सभा के सभापति व उपसभापति सहित राज्य के प्रधान सचिवों सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया. सम्मेलन में सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों पर शालीनता पूर्वक चर्चा, पीठासीन अधिकारियों को दलों के बीच निरंतर और सुसंगत संवाद बनाए रखने पर जोर और राजनीति के नए मानक स्थापित करने पर सभी के सहयोग पर चर्चा की गयी. सम्मेलन में सतत और समावेशी विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने इस पर विशेष रूप से फोकस किया गया.सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश भी बैठक में मौजूद रहें.
एक भारत श्रेष्ठ भारत का लक्ष्य
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विधानमंडलों में हंगामा और कटुता चिंता का विषय है. इस मुद्दे पर समय-समय पर पीठासीन अधिकारियों के साथ चर्चा की गई है और पीठासीन अधिकारियों से सदन की कार्यवाही का संचालन गरिमा और शिष्टाचार के साथ तथा भारतीय मूल्यों और मानकों के अनुसार करने का आग्रह किया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि सदन की परंपराओं और प्रणालियों का स्वरूप भारतीय हो तथा नीतियां और कानून भारतीयता की भावना को मजबूत करें ताकि ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का लक्ष्य प्राप्त हो सके. उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि विधान मंडलों के प्रभावी कामकाज के लिए नए सदस्यों को सदन के कामकाज, सदन की गरिमा और शिष्टाचार तथा जनसाधारण के मुद्दों को उठाने के लिए उपलब्ध विधायी साधनों के बारे में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए.
एक राष्ट्र एक डिजिटल प्लेटफार्म की जरूरत
लोकसभा अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि जहां आवश्यक हो, राज्य विधानमंडलों को डिजिटलीकरण की गति को बढ़ाना चाहिए ताकि ‘एक राष्ट्र, एक डिजिटल प्लेटफॉर्म’ के सपने को साकार किया जा सके. सम्मेलन के दौरान पीठासीन अधिकारियों द्वारा उठाए गए मुद्दों जैसे वित्तीय स्वायत्तता, सदनों के सत्रों के दिनों की संख्या में कमी, ई-विधान आदि पर आगे चर्चा की जाएगी और स्वीकार्य समाधान निकाले जाएंगे. पीठासीन अधिकारियों को नई सोच, नई विजन के साथ काम करना चाहिए और भविष्य के लिए अनुकूल नए नियम और नीतियां बनानी चाहिए.