नयी दिल्ली : इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (IRIA) ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया (Dr Randeep Guleria) के उन दावों को खारिज कर दिया है कि एक सीटी स्कैन 300-400 एक्स-रे (X-Ray) के बराबर है. और कोरोना के हल्के लक्षण वालों को इससे बचना चाहिए आईआरआईए ने इन दावों को भ्रामक बताया और कहा कि एसोसिएशन डॉ गुलेरिया जैसे वरिष्ठ चिकित्सक की ऐसी टिप्पणियों से हैरान और निराश है.
बुधवार को जारी सात बिंदुओं के खंडन में आईआरआईए ने तर्क दिया है कि सीटी स्कैन कोविड के निदान का एक महत्वपूर्ण घटक होने के साथ-साथ बीमारी की गंभीरता को भी निर्धारित करता है. आईआरआईए ने कहा कि भले ही आरटी-पीसीआर परीक्षण का मानक है, लेकिन सीटी स्कैन उन मामलों में मदद करता है जहां आरटी-पीसीआर के नतीजे तकनीकी त्रुटियों या कम वायरल लोड के कारण नकारात्मक आते हैं.
आईआरआईए ने कहा कि सीटी-स्कैन चेस्ट रोग को हल्के, मध्यम या गंभीर रूप को पहचानने में मदद करता है. साथ ही इसके प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान देता है. बयान में कहा गया है कि बीमारी की प्रगति पर सीटी-स्कैन के जरिए हालत बिगड़ने वाले रोगियों पर विशेष रूप से नजर रखी जा सकती है. यह भी कहा गया कि एक सीटी 300-400 नहीं, बल्कि 5-10 एक्स रे के बराबर होता है.
द प्रिंट के एक रिपोर्ट के मुताबिक आईआरआईए ने कहा कि सीटी स्कैन फेफड़ों की क्षति का पता लगाने में पल्स ऑक्सीमेट्री द्वारा सैचुरेशन निगरानी की तुलना में अधिक संवेदनशील है, और स्टेरॉयड के समय पर प्रबंधन में भी मदद कर सकता है. कहा गया कि पहले से ही अस्पतालों में काफी भीड़ है. ऐसे में सीटी से फेफड़ों की स्थिति देखकर मरीज की शुरुआत में ही इलाज की जा सकती है और उन्हें अचाना आसान हो जाता है.
डॉ गुलेरिया ने मंगलवार को दिये बयान में कहा था कि एक सीटी स्कैन 300-400 चेस्ट एक्सरे के बराबर है. बार बार सीटी स्कैन कराने से युवा आने वाले समय में कैंसर का शिकार भी हो सकते हैं. अपने आप को रेडिएशन से बचाएं. उन्होंने कहा था कि अगर आपका ऑक्सीजन लेवल ठीक है और कोविड के हल्के लक्षण हैं तो सीटी स्कैन की कोई जरूरत नहीं है.
आईआरआईए ने कहा है कि गुलेरिया की टिप्पणी अवैज्ञानिक, खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना है. यह 30 से 40 साल पहले की स्थिति थी. अधुनिक सीटी स्कैनर्स अल्ट्रा लो डोज सीटी का उपयोग करते हैं, जिसमें केवल 5-10 एक्स-रे की तुलना में विकिरण होता है. दुनियाभर के रेडियोलॉजिस्ट इस तकनीक का उपयोग करते हैं. इससे काफी कम रेडिएशन होता है.
एसोसिएशन ने कहा कि डॉ गुलेरिया जैसे वरिष्ठ चिकित्सक के इस अवैज्ञानिक और भ्रामक बयान से आने वाले समय में कोरोना से निपटने और उसके इलाज में परेशानी आ सकती है. आईआरआईए ने इस बयान को बड़ी ही गैरजिम्मेदाराना बताया है और कहा कि ऐसे लोगों में भ्रम फैलेगा और बीमारी को सही तरीके से पकड़ पाने में चिकित्सक सफल नहीं हो पायेंगे.
Posted By: Amlesh Nandan.