Dhanbad IIT में दलित युवक ए़़डमिशन के लिए नहीं दे पाया 17,500 रुपए, गंवाई सीट, चीफ जस्टिस ने की सुनवाई

यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले दलित युवक अतुल को पैसों की कमी के कारण धनबाद आईआईटी की सीट गंवानी पड़ी. इसके बाद अतुल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और सुप्रीम कोर्ट ने मदद का आश्वासन दिया है.

By Kunal Kishore | September 26, 2024 10:31 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी मेहनत से अपने अंतिम प्रयास में आइआइटी की परीक्षा उत्तीर्ण करनेवाले गरीब दलित युवक अतुल कुमार(18) को मदद का आश्वासन दिया है. अतुल आइआइटी, धनबाद में अंतिम तिथि तक “17,500 फीस जमा नहीं करा पाया और सीट गवां दी. सीजेआइ डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला व जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मंगलवार को अतुल के वकील से कहा कि हम आपकी यथासंभव मदद करेंगे. हालांकि पीठ ने पूछा कि आप पिछले तीन महीनों से क्या कर रहे थे? शुल्क जमा करने की निर्धारित समय सीमा 24 जून को समाप्त हो गयी है. अतुल के माता-पिता सीट पक्की करने के लिए “17,500 की फीस 24 जून तक जमा करने में विफल रहे थे.

अतुल के पिता हैं दिहाड़ी मजदूर

अतुल के वकील ने पीठ को बताया कि उसने अपने दूसरे और अंतिम प्रयास में जेइइ एडवांस्ड पास कर लिया है और अगर शीर्ष अदालत उसकी मदद नहीं करती है, तो वह परीक्षा में फिर से शामिल नहीं हो पायेगा. वकील ने युवक के परिवार की आर्थिक स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि वह (अतुल) एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा है और यूपी के मुजफ्फरनगर जिले के टिटोरा गांव में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले (बीपीएल) परिवार से है.

सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

वकील ने दलील दी कि आइआइटी, धनबाद में सीट आवंटित होने के महज चार दिन बाद यानी 24 जून की शाम पांच बजे तक 17,500 रुपये का इंतजाम करना छात्र के लिए बहुत मुश्किल काम था. पीठ ने दलीलें सुनने के बाद इस वर्ष की प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाले आइआइटी, मद्रास के संयुक्त सीट आवंटन प्राधिकरण को नोटिस जारी किया.

अतुल खटखटा चुका है झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का दरवाजा

अतुल ने झारखंड के एक केंद्र से जेइइ की परीक्षा दी थी, इसलिए युवक ने झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का रुख किया. प्राधिकरण ने उसे मद्रास हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का सुझाव दिया, क्योंकि परीक्षा आइआइटी, मद्रास ने आयोजित की थी. हाइकोर्ट ने उसे शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा. उसके माता-पिता ने सीट बचाने के लिए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति का भी दरवाजा खटखटाया था. पर आयोग ने भी उसकी मदद करने में असमर्थता जतायी.

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