-रामकिशोर साहू-
महात्मा गांधी की हत्या होने पर ‘अमेरिकन रिपोर्ट’ के वरीय पत्रकार अलबर्ट ड्यूटसे ने संपादकीय कॉलम में लिखा था- “ पूरी दुनिया आज सूखे पुआलों की ढेर है. यह ढेर दियासलाई की एक तीली की प्रतीक्षा कर रही है, किंतु कल महात्मा गांधी की हत्या किये जाने से दुनियाभर के देशों ने जो प्रतिक्रिया और पीड़ा व्यक्त की, उससे यह साबित होता है कि महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चल कर ही विश्वशांति कायम हो सकती है….. ”
आज पूरी दुनिया में सत्य, अहिंसा, मैत्री, समानता, मानवता जैसे उद्दात गुणों की अनिवार्यता है. ये सभी गांधीवाद में समाहित होने के कारण आज पूरी दुनिया में गांधीवाद की नितांत आवश्यकता है. गांधीवाद के बिना आज कहीं भी लोकतंत्र सुरक्षित नहीं है. ‘नैतिकता के बिना राजनीति सुगंधित शव’ कहनेवाले महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के प्रति अहिंसा का व्यवहार करते हुए उनका जबरदस्त विरोध किया था. यह एक ऐसा प्रयोग था, जिसे देखकर दुनिया दंग थी.
रॉलेट एक्ट, जालियांवाला बाग का हत्या कांड, खिलाफत नेताओं की अनसुनी जैसी समस्याओं के विरोध में एक अगस्त 1921 को ब्रिटिश सरकार का बायकाॅट करने के लिए महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन चलाया था. पूर्व में चलाये गये आंदोलनों से यह काफी प्रभावकारी था. सरकार मानो पंगुता की स्थिति में आ गयी थी. लगता था, अब हम जल्द ही भारत माता को स्वतंत्रता की माला पहना सकेंगे. किंतु, गोरखपुर के चौराचौरी थाने की पुलिस के गोली चलाने से उग्र भीड़ ने थाने में आग लगा दी. 22 पुलिसकर्मी जल मरे. इस हिंसात्मक कांड ने महात्मा गांधी को झकझोर दिया. उन्होंने असहयोग आंदोलन को रोक दिया. इसकी बड़ी आलोचना हुई.
सुभाषचंद्र बोस ने ‘इंडियन स्ट्रगल’ में लिखा- “ जिस समय जनता का उत्साह अपनी चरम सीमा को छूनेवाला था, उस समय पीछे हट जाने का आदेश राष्ट्रीय अनर्थ से कम नहीं था.” इन आलोचनाओं से गांधी जी को तकलीफ नहीं हुई,पर उन्हें तकलीफ इस बात पर हुई कि राष्ट्रवादी कार्यकर्ता अभी भी अहिंसा के महत्व को नहीं समझ सके हैं. बगैर अहिंसा के कोई भी आंदोलन सफल नहीं हो सकता. बुराई के साथ असहयोग उतना ही पुनीत कर्तव्य है, जितना कि भलाई के लिए सहयोग. ब्रिटिश सरकार भारत को इतना कमजोर बना रही है कि वह किसी भी आंदोलन को कुचलने में समर्थ है. सरकार के प्रति असंतोष भड़काने के आरोप में उन्हें छह वर्ष कैद की सजा दी गयी. अभियोग पक्ष के आरोपों को स्वीकारते हुए उन्होंने कहा था-“ ब्रिटिश सरकार का बायकाॅट मुझ नागरिक का पुनीत कर्तव्य था.”
जेल में मिलने की परिपाटी पूरी करने एक दिन कस्तूरबा जेल आयीं. दोनों से थोड़ा हटकर एक जेल अधिकारी मौजूद था. वह वहां से खिसक गया, ताकि यह दंपती खुलकर आपस में बतिया सके. थोड़ी देर बाद जेल अधिकारी आया तो देखा, बा और बापू पीठापीठी चुपचाप बैठे हैं. “ आप दोनों इस प्रकार चुपचाप बैठे हैं, बतिया नहीं रहे हैं”, पुलिस अधिकारी के पूछने पर गांधीजी ने बताया “ हमारे साथ मिलने के जेल मैनुअल अनुसार हमारे मिलने के समय एक जेल अधिकारी अगल-बगल रहेगा, आप नहीं थे तो हम कैसे बात करते,” “ आप धन्य हैं”, कहकर जेल अधिकारी चलता बना.
नमक कानून तोड़ने का दांडी मार्च 25 दिन पैदल 375 किलोमीटर चलकर इन्होंने पूरा किया, आंदोलनों को जन-जन तक पहुंचाने, इन्हें राष्ट्रीय आंदोलन बनाने में ये सफल रहे. अपने विरोधियों को दुखी बनाने के बदले स्वयं अपने ऊपर दुख डालकर सत्य की विजय के लिए प्रयत्न करना ही सत्याग्रह है. समाज व संप्रदाय की कटुता के वे प्रबल विरोधी थे. एक बार उन्होंने कहा था-“ मैं फिर से जन्म लेना नहीं चाहता, पर जन्म लेना ही पड़े तो मैं एक अछूत के रूप में जन्म ग्रहण करना चाहूंगा, ताकि मैं उनके कष्टों, क्लेशों और अपमानों में भाग ले सकूं और इस दंडनीय स्थिति से स्वयं अपने को उबार सकूं.”
विभाजन और आजादी के साथ बर्बरता आयी. भारत-पाकिस्तान के लाखों लोग मारे गये. बंगाल में गांधीजी शांति व राहत पहुंचाने में व्यस्त थे. नोआखली में आमरण अनशन से हिंसा रुकी. 30 जनवरी 1948 को घृणा से सराबोर एक हिंदू चरमपंथी ने उनकी हत्या कर दी. महात्मा गांधी आजीवन एकता व सद्भाव के लिए संलग्न रहे और उसी के लिए शहीद हो गये. डॉ जॉन स्टेनले ने कहा था-“ हत्यारे ने गोलियां गांधी और उनके विचारों को खत्म करने के लिए चलायी थीं, परंतु उनका प्रतिफल यह हु्आ कि वे विचार मानव जाति की थाती बन गये. मृत्यु में वे जीवन की अपेक्षा अधिक बलशाली हो गये.” प्रसिद्ध वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा है- “ हमारी आनेवाली पीढ़ी कदाचित् विश्वास करे कि इस धरती पर महात्मा गांधी नाम का कोई हाड़-मांस का आदमी भी हुआ था.”
(लेखक राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत अवकाशप्राप्त प्रधानाध्यापक हैं.)