वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से इसका देश के समाज और कानून पर व्यापक असर होगा, इसलिए इस मसले पर विशेष परामर्श की जरूरत है. उक्त बातें आज केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष कही.
केंद्र सरकार ने आज दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा कि वह प्रत्येक महिला की स्वतंत्रता, सम्मान और अधिकार की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं, जोकि सभ्य समाज की नींव और स्तंभ है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने से पहले विभिन्न पक्षकारों और राज्य सरकारों के साथ अर्थपूर्ण परामर्श करना बहुत जरूरी है.
सरकार ने कहा कि विवाह में बलात्कार को अपराध की श्रेणी लाने से देश में व्यापक सामाजिक-कानूनी प्रभाव होगा और इस मुद्दे पर सरकार की कोई भी सहायता सभी पक्षों के साथ परामर्श प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही अर्थपूर्ण साबित होगी.
इसी वजह से केंद्र सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई को कुछ समय के लिए रोकने का अनुरोध किया और जस्टिस राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरी शंकर की पीठ के समक्ष दायर हलफनामे में कहा कि वह अदालत को एक समयबद्ध कार्यक्रम सौंपेगा जिसमें वह इस मुद्दे पर प्रभावी परामर्श प्रक्रिया पूरी करेगा.
वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर रोजाना सुनवाई कर रही अदालत में शुक्रवार को भी बहस जारी रहेगी. केंद्र की ओर से अधिवक्ता मोनिका अरोड़ा ने हलफनामा दायर किया था, जिसमें यह कहा गया कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार और प्रतिबद्ध है लेकिन इस गंभीर मसले पर सभी पक्षों और राज्य सरकारों के साथ परामर्श करने के बाद ही केंद्र सरकार अदालत के सामने वास्तविक स्थिति रख सकेगा.
गौरतलब है कि पहले भी केंद्र की ओर से न्यायालय में यह कहा जा चुका है कि अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाया गया तो देश में परिवार नाम की संस्था बिखर सकती है. वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाया जाये या नहीं इस मसले को लेकर देश में काफी बहस होती रही है.
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