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Defense: उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये ‘अडप्टिव डिफेंस’ तैयार कर रही है सरकार

सरकार ने बदलते भू-राजनीतिक और तकनीकी परिदृश्य में एक अनुकूल रक्षा रणनीति की आवश्यकता को चिन्हित किया है और एक मजबूत तथा आत्मनिर्भर इकोसिस्टम बनाने के लिए कई पहल की हैं, जिसमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की संस्था की स्थापना, तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार करना और दुनिया भर में नई रक्षा साझेदारियां बनाना शामिल है.

Defense: आज के समय में तेजी से बदलती दुनिया में उत्पन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए देश में ‘अडप्टिव डिफेंस’ बनाने की तैयारी की जा रही है. ‘अडप्टिव डिफेंस’ एक रणनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें किसी देश की सैन्य और रक्षा प्रणाली उभरते खतरों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए निरंतर विकसित होती है.“अडप्टिव डिफेंस में केवल जो हुआ है, उसका जवाब देना नहीं है, बल्कि जो हो सकता है, उसका पूर्वानुमान लगाना और उसके लिए सक्रिय रूप से तैयारी करना शामिल है. इसमें अप्रत्याशित और बदलती परिस्थितियों के बावजूद अनुकूलन, नवाचार और विकास करने की मानसिकता और क्षमता विकसित करना शामिल है.

परिस्थितिजन्य जागरूकता, रणनीतिक और सामरिक स्तरों पर लचीलापन, मजबूती और भविष्य की प्रौद्योगिकियों के साथ एकीकरण अडप्टिव डिफेंस को समझने और बनाने की कुंजी हैं. मंगलवार को नयी दिल्ली में मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान (एमपी-आईडीएसए) द्वारा आयोजित दिल्ली डिफेंस डायलॉग (डीडीडी) के उद्घाटन समारोह में ‘‘अडप्टिव डिफेंस: आधुनिक युद्ध के बदलते परिदृश्य को समझना’ विषय पर चर्चा की गई. इस अवसर पर बोलते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘अडप्टिव डिफेंस’ न केवल एक रणनीतिक विकल्प बल्कि एक आवश्यकता है.

जैसे-जैसे हमारे राष्ट्र के लिए खतरे सामने आते हैं, वैसे-वैसे हमारी रक्षा प्रणाली और रणनीतियां भी तैयार होनी चाहिए. हमें भविष्य की सभी आकस्मिकताओं के लिए तैयार रहना चाहिए. यह सिर्फ हमारी सीमाओं की रक्षा करने से कहीं अधिक है; यह हमारे भविष्य को सुरक्षित करने के संदर्भ में है” यह हमारे रणनीतिक निर्माण और परिचालन प्रतिक्रियाओं का मंत्र होना चाहिए.”

बदलते परिदृश्य में रक्षा रणनीति अहम

रक्षा मंत्री ने कहा कि युद्ध की पारंपरिक धारणाएं उभरती प्रौद्योगिकियों और विकसित होती रणनीतिक साझेदारियों द्वारा नया रूप ले रही हैं. इसके साथ ही खतरों और चुनौतियों की बदलती प्रकृति को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों के भीतर नए दृष्टिकोण, सिद्धांत और संचालन की अवधारणाएं उभर रही हैं. उन्होंने वर्तमान युग को ग्रे जोन और हाइब्रिड युद्ध बताया, जहां बचाव के पारंपरिक तरीकों को चुनौती दी गई है. उन्होंने कहा कि उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर अनुकूलन सबसे अच्छी रणनीति है. उन्होंने भारत के सामने आने वाली सुरक्षा संबंधी अनेक चुनौतियों पर प्रकाश डाला, जिसमें पारंपरिक सीमा-संबंधी खतरों से लेकर आतंकवाद, साइबर हमले और हाइब्रिड युद्ध जैसे अपरंपरागत मुद्दे शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि सरकार ने बदलते भू-राजनीतिक और तकनीकी परिदृश्य में एक अनुकूल रक्षा रणनीति की आवश्यकता को चिन्हित किया है और एक मजबूत तथा आत्मनिर्भर इकोसिस्टम बनाने के लिए कई पहल की हैं. इसमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की संस्था की स्थापना, तीनों सेनाओं के बीच एकजुटता को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार करना और दुनिया भर में नई रक्षा साझेदारियां बनाना शामिल है. डिजिटलीकरण और सूचना की अधिकता के वर्तमान युग में, दुनिया अभूतपूर्व पैमाने पर मनोवैज्ञानिक युद्ध का सामना कर रही है. 

दुनिया का ड्रोन हब बनने का लक्ष्य

सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ सूचना युद्ध के खतरे का मुकाबला करने के क्रम में अनुकूल रक्षा रणनीतियों को लागू करने के लिए दृढ़ संकल्प है. उन्होंने साइबरस्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में उभरती प्रौद्योगिकियों पर काम करने वाले अग्रणी देशों में भारत को शामिल रखने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि भारत के वृह्द आकार और संभावना वाले देश के पास रक्षा क्षेत्र में एआई के आसन्न वैश्विक नवाचारों से निपटने की क्षमता के साथ-साथ साधन भी होना चाहिए. उन्होंने कहा, “भारत दुनिया का ड्रोन हब बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.

इस संबंध में कई पहल की गई हैं. इससे न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी, बल्कि हमारे ’मेक इन इंडिया’ और ’आत्मनिर्भर भारत’ कार्यक्रम में भी महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा.इस अवसर पर डीजी, एमपी-आईडीएसए अंबेसडर सुजान आर चिनॉय, वायु सेना के उप-प्रमुख एयर मार्शल एसपी धारकर, नागरिक और सैन्य अधिकारी तथा देश एवं विदेश से प्रतिष्ठित प्रतिभागी मौजूद रहे.

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