Kidney Transplant: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एम्स (AIIMS) में सोनीपत के 5 साल के बच्चे का सफल एन-ब्लॉक किडनी ट्रांसप्लांट की गई. इससे वह इस प्रक्रिया से गुजरने वाला देश का सबसे कम उम्र का रोगी भी बन गया. दरअसल, यह भारत में अब तक सबसे छोटे बच्चे का किडनी ट्रांसप्लांट था, जो पूरी तरह से सफल रहा.
दरअसल, एन-ब्लॉक किडनी ट्रांसप्लांट में मरीज की दोनों किडनियों के साथ दिल तक जाने वाली नसों (Vena Cava and Aorta) को भी बदला जाता है. एन-ब्लॉक गुर्दा प्रत्यारोपण तब होता है, जब एक ही चाइल्ड डोनर के दो गुर्दे साथ में होते हैं. साथ ही वेना कावा और अओरटा को एक ही पेशेंट में ट्रांसप्लांट किया जाता है. इस मामले में एन-ब्लॉक किडनी को 20 किलोग्राम से कम वजन वाले डोनर से निकाला गया था. डॉक्टरों के अनुसार, अगर डोनर वयस्क होता तो केवल एक किडनी ली जाती है.
इस मामले में 16 महीने का बच्चा था, जिसे 24 अगस्त को एम्स में ब्रेन डेड घोषित किया गया था. इसके बाद उसके माता पिता ने उसका ऑर्गन डोनेट करने का फैसला किया था. बता दें कि अओरटा सबसे महत्वपूर्ण खून की नली होती है, जो शरीर के बीचों बीच होती है और इसी नली के जरिए खून दिल से शरीर के बाकी हिस्सों तक पहुंचता है. वहीं, आईवीसी शरीर की सबसे बड़ी खून की नली होती है, जो खून को शरीर के बाकी हिस्सों से दिल तक पहुंचाने का काम करती है.
एम्स के सर्जरी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. मंजूनाथ मारुति पॉल ने कहा कि जिस बच्चे का किडनी ट्रांसप्लांट किया गया. वह हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला 5 साल का है. वह लंबे समय से क्रॉनिक किडनी फेलियर से जूझ रहा था और उसे जिंदा रखने के लिए तुरंत किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी करने की जरूरत थी. उन्होंने बताया कि बच्चे को 24 अगस्त को अस्पताल में भर्ती किया गया था और वह उसी दिन से डायलिसिस पर था.
डॉ. मंजूनाथ मारुति पॉल ने कहा कि इससे पहले बच्चे में ट्रांसप्लांट की जाने वाली दो संभावित किडनी का भी इंतजाम किया गया था, लेकिन वे टेस्ट में निगेटिव निकली. इसकी सूचना बाद में नेशनल ऑर्गेन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन (NOTTO) को दी गई. उन्होंने कहा कि NOTTO ने बाद में 5 साल के बच्चे के लिए एन-ब्लॉक किडनी एलॉकेट की. उनकी अगुवाई में सर्जन की एक टीम ने यह ट्रांसप्लांट सर्जरी की. इस दौरान मृतक डोनर की दोनों नसों अओरटा और आईवीसी को जरूरतमंद बच्चे की नसों से जोड़ा गया. डोनर की किडनियों के दोनों यूरेटर्स को पांच साल के बच्चे के यूरिनरी ब्लैडर से अलग-अलग जोड़े गए.
डॉ. मंजूनाथ मारुति पॉल ने कहा कि सर्जरी के तुरंत बाद बच्चे को सामान्य यूरिन आया, जिससे सर्जरी सफल मानी गई. इसके बाद मरीज को आइसोलेशन वॉर्ड में सात दिनों तक रखा गया, जिसके बाद उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया. डॉक्टर का कहना है कि फिलहाल बच्चा स्वस्थ है और स्कूल जाने के लिए तैयार है.