Delhi Election 2025: दिल्ली में विधानसभा चुनाव की गतिविधियां तेज हैं लेकिन क्या आपको पता है कि 37 सालों तक दिल्ली का सीएम पड़ खाली था. इन सालों में दिल्ली बिना सीएम चेहरे के काम करती थी. लेकिन अब सवाल उठता है कि आखिर फिर दिल्ली में ऐसा क्यों हुआ? तो आइए आपको इसके पीछे की पूरी कहानी बताते हैं. आजादी के बाद जब देश में संविधान लागू हुआ तो राज्यों को अलग-अलग कैटेगरी में रखा गया था.
1955 में बना राज्य पुनगठन आयोग
दिल्ली की सियासत में बड़ा बदलाव 1956 में आया जब केंद्र सरकार ने दिल्ली विधानसभा को भंग करके केंद्र शासित प्रदेश बना दिया. इसके लागू होने के बाद प्रदेश में उपराज्यपाल का शासन आ गया. असल में साल 1955 में केंद्र सरकार ने राज्य पुनगठन आयोग बनाया. इस आयोग की कमान फजल अली को दी गई. इन्हीं के सिफारिश के बाद दिल्ली से पूर्ण राज्य का दर्ज छिन लिया गया. इसी कारणवश दिल्ली में 37 सालों तक कोई सीएम नहीं रहा था.
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कैसा मिला स्पेशल स्टेटस का दर्जा
साल 1980 के बाद से दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे की मांग तेज होने लगी. साल 1987 में सरकारिया कमेटी का गठन किया गया. फिर साल 1989 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दिया. इस रिपोर्ट में साल लिखा गया कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए भले ही कुछ क्षेत्रों पर केंद्र का क्यों न प्रभाव रहे. इसके बाद दिल्ली में चुनाव की सुगबुगाहट तेज हो गई. इसके बाद 1991 में नरसिम्हा राव की सरकार ने 69वां सविंधान संशोधन करके दिल्ली को नेशनल कैपिटल टेरिटरी एक्ट पास किया. इसके बाद दिल्ली में पहली बार 1993 में चुनाव हुआ और बीजेपी की सरकार बनी.
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