दिल्ली पुलिस का दावा है कि उन्होंने सबूतों के आधार पर बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पुख्ता मामला बनाया है. इससे पहले छह महिला पहलवानों की शिकायतों को एक साथ जोड़कर भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की थी, लेकिन गुरुवार को दायर आरोपपत्र में प्रत्येक मामले का अलग-अलग विवरण दिया गया है और इस दौरान जांच और सबूतों का हवाला दिया गया है. हर मामले में जांच पुलिस सूत्रों के अनुसार सिंह पर जहां सभी छह शिकायतकर्ताओं का यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया है, वहीं पीछा करने का अपराध केवल एक शिकायतकर्ता से संबंधित है और केवल दो महिला पहलवानों के साथ छेड़छाड़ का है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दावा किया, “अंडर -18 शिकायतकर्ता द्वारा अपने आरोपों से मुकर जाने के बाद हम पॉक्सो मामले में आगे नहीं बढ़ सकते थे, लेकिन हमने दूसरी प्राथमिकी में एक निर्विवाद मामला बनाया है और डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष के प्रति नरम नहीं हुए हैं.” वहीं ओलंपियन बजरंग पुनिया, विनेश फोगट और साक्षी मलिक के नेतृत्व में पहलवानों का विरोध समूह, भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के पूर्व अध्यक्ष बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ पॉक्सो मामले को बंद करने की दिल्ली पुलिस की सिफारिश से निराश हैं.
2012 में एक घटना के लिए पीछा करने का अपराध निर्धारित किया गया है. शिकायतकर्ताओं में से एक ने दावा किया कि सिंह ने एक टूर्नामेंट के दौरान उसकी मां से बात की और उसे अपने कमरे में बुलाकर पिता की तरह गले लगाया. उसने आरोप लगाया कि सिंह ने उसके घर लौटने के बाद अलग-अलग बहाने से कई बार उसकी मां के नंबर पर फोन करना शुरू कर दिया. उसने यह भी दावा किया कि सिंह के कॉल से बचने के लिए उसे अपना फोन नंबर बदलना पड़ा.
घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों ने बताया कि पुलिस मामलों में कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) जैसे तकनीकी साक्ष्य का हवाला देने में असमर्थ रही है क्योंकि अपराध हाल के नहीं हैं. सीडीआर विवरण आमतौर पर दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा लगभग एक वर्ष तक संरक्षित रखा जाता है. “एथलीटों के कोच और सहकर्मियों आदि जैसे कुछ गवाहों द्वारा आरोपों की पुष्टि की गई है, और वे चार्जशीट की प्रमुख सामग्री का गठन करते हैं. जहां भी जरूरी और उपलब्ध है, हमने पिछले एक साल के सीडीआर ब्योरे को रिकॉर्ड में रखा है.’
आपको बताएं इस साल जनवरी से सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों के बयानों के आधार पर पुलिस द्वारा मामले में प्राथमिकी दर्ज किए जाने के 50 दिन से भी कम समय बाद आरोपपत्र आया है, जिसे लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
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