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दिल्ली के प्रदूषण को कैसे कम कर रहा है स्मॉग टावर? जानें इसके काम करने का तरीका

आज दिवाली है और यदि पटाखा संबंधी सख्त प्रतिबंधों पर अमल किया गया तो रविवार को दिवाली के दिन दिल्ली की वायु गुणवत्ता आठ वर्ष में सबसे बेहतर रह सकती है. इस बीच लोगों के बीच स्मॉग टावर की चर्चा जोरों पर हो रही है

दिल्ली की हवा लगातार जहरीली होती जा रही है. दिवाली के दिन यानी आज भी वायु प्रदूषण गंभीर श्रेणी में रिकॉर्ड किया गया. पिछले एक दशक की बात करें तो सर्दी के मौसम में राजधानी दिल्ली को प्रदूषण का सामना करना ही पड़ता है. यह प्रदूषण बड़ी आबादी को प्रभावित करता है, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है. जब तापमान गिरता है और हवा की गति धीमी होती है, तो कार टेलपाइप, औद्योगिक चिमनी और निर्माण स्थलों से निकलने वाले जहरीले कण दिल्ली को नुकसान पहुंचाते हैं. इन्ही वजह से प्रदूषण खराब श्रेणी में पहुंच जाता है. यह प्रदूषण दिल्ली और इससे सटे इलाकों को प्रभावित करता है. यही नहीं यह ऐसा वक्त रहता है जब दिल्ली से सटे पड़ोसी राज्य के किसान फसल काटकर पराली जताते हैं. इसका भी बुरा असर पर्यावरण पर पड़ता है. हर साल इन दिनों दिल्ली घने सफेद धुंध में लिपटी नजर आती है. ऐसी दशा कई दिनों तक देखने को मिलती है. इस साल फिर इस प्रदूषण से निपटने के उपाय किये जा रहे हैं. यातायात को कम करना, पराली जलाने पर बैन लगाना और हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए शहर के स्मॉग टावरों को एक्टिव करने जैसे कुछ उपाय किये जा रहे हैं. इस बीच स्मॉग टावर को लेकर एक बह चल रही है कि आखिर यह कितना कारगर है.

स्मॉग टावर क्या हैं जानें?

दिल्ली के लोगों के घर में आपको अक्सर एयर प्यूरिफायर देखने को मिलेंगे जो हाई एफिशिएंसी वाले एयर फिल्टर होते हैं. इसका पंखा एक फिल्टर के माध्यम से हवा को धकेलता है जो प्रदूषण फैलाने वाले कारक को अपने में समाता है. स्मॉग टावर इसी टक्नोलॉजी पर काम करता है. यह खुले में लगाया जाता है जो काफी बड़ा होता है. टावर में हजारों फिल्टर लगे होते हैं जो बीस मीटर (66 फीट) तक ऊंचे होते हैं. इसे प्रदूषण कणों को नियंत्रित करने और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लगाया जाता है. हालांकि दिल्ली के लोग तो तकनीक अपनाते हैं वो सरल और सस्ता है जबकि, स्मॉग टावरों को बहुत अधिक रखरखाव की जरुरत होती है. इन्हें लगाना महंगा होता है. दिल्ली के सबसे फेमस जगहों में से एक कनॉट प्लेस में इसे 2021 में स्थापित किया गया था. उस वक्त इसकी लागत लगभग 2.5 मिलियन डॉलर थी.

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टावर को 20 मीटर से ऊंचा बनाया जाता है. ऐसा इसलिए ताकि आसपास मौजूद प्रदूषित हवा टावर में प्रवेश कर जाए. टावर के अंदर प्रदूषित हवा जाती है और अंदर चले एयर प्यूरिफायर हवा को फिल्टर करके टावर बॉटम से इसको रिलीज करने का काम करते हैं. टावर के अंदर कई तरह की लेयर लगी होती है. जो 10 माइक्रॉन या इससे कम के भी प्रदूषित कणों को छानने में सक्षम है. इससे बाहर वातावरण में प्रदूषित कण नहीं जाते हैं. सीधे तौर पर समझें तो स्मॉग टावर बाहर की प्रदूषित हवा को खींचकर उससे शुद्ध करके वापिस वातावरण में छोड़ देता है.

कैसे भारत में आई ये टेक्नोलॉजी

चीन के शी एन शहर में स्थापित एक स्मॉग टावर को देखते हुए भारत में इसे लाने का फैसला लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कुछ साल पहले सरकार को दिल्ली के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कहा था. साथ ही कोर्ट ने इस तरह के टावर को लगाने की बात कही थी. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के शोधकर्ताओं से तकनीकी सहयोग लेने की बात कोर्ट के द्वारा कही गई थी.

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क्या स्मॉग टावर हवा की गुणवत्ता सुधारने में मदद करते हैं?

स्मॉग टावर की बात करें तो ये बाहर काम करते हैं. यही वजह है कि स्मॉग टावर पर्याप्त मात्रा में साफ हवा देने में कारगर साबित नहीं होते हैं. जैसे ही फ़िल्टर की गई हवा छोड़ी जाती है, यह फिर से आसपास के प्रदूषण के साथ मिल जाती है और हवा में कोई सुधार होता नजर नहीं आता है. आईआईटी बॉम्बे की रिसर्च टीम ने कुछ दिन पहले कनॉट प्लेस में चल रहे टावर की जांच की. जांच के दौरान उन्होंने पाया कि यह 50% एफिशिएंसी के साथ हवा को साफ करता है जो फिल्टर से 50 मीटर की दूरी पर 30% और 500 मीटर दूर होने पर 10% से ऊपर हो जाता है. टीम ने यह भी पता लगाया कि फिल्टर को होल्ड करके रखने वाली चीज को कसकर सील नहीं किया गया था, जिससे प्रदूषित हवा उनके पास से गुजर सके.

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