समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की मांग, SC ने केंद्र और अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी कर मांगा जवाब
दो समलैंगिक जोड़ों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका देकर उनकी शादी को विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता देने की अपील की है. याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता के अधिकार व जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों की दो याचिकाओं पर केंद्र और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि को आज यानी शुक्रवार को नोटिस जारी किया है. बता दें, दो समलैंगिक जोड़ों ने अपनी याचिका में उनकी शादी को विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता देने की अपील की है. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने नोटिस जारी करने से पहले वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की ओर से दाखिल किए प्रतिवेदन पर गौर किया.
दो समलैंगिक जोड़ों ने की थी अपील: पीठ ने नोटिस पर चार सप्ताह में जवाब मांगा है. वहीं केंद्र सरकार और भारत के अटॉर्नी जनरल को भी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया गया है. गौरतलब है कि अपनी अपील में दो समलैंगिक जोड़ों ने अपनी शादी को विशेष विवाह कानून के तहत मान्यता देने का निर्देश दिए जाने की मांग की है. हैदराबाद में रहने वाले समलैंगिक जोड़े सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने एक याचिका दायर की है, जबकि दूसरी याचिका समलैंगिक जोड़े पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की ओर से दायर की गई है.
मान्यता नहीं देना संविधान के अनुच्छेद का उल्लंघन: गौरतलब है कि दोनों ने अपनी याचिका में एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) (लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर और क्वीर) समुदाय के लोगों को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार देने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत समानता के अधिकार व जीवन के अधिकार का उल्लंघन है.
उच्चतम न्यायालय की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2018 में सर्वसम्मति से भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत 158 साल पुराने औपनिवेशिक कानून के उस हिस्से को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था जिसके तहत ‘‘सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध को एक अपराध माना जाता था.”